CAA Row: सुप्रीम कोर्ट में आज, मंगलवार (19 मार्च) को नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2024 (CAA) पर सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई में जस्टिस जेबी पारीदवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ सीएए के खिलाफ दाखिल 237 याचिकाओं पर सुनवाई की। सीएए के क्रियान्वयन पर रोक लगाने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को नोटिस जारी किया। इसके लिए केंद्र को तीन हफ्ते का समय मिला है। मामले की सुनवाई 9 अप्रैल को तय की गई है।
याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से नागरिक संशोधन नियम 2024 पर रोक लगाने का आग्रह किया। हालांकि, अदालत ने ऐसा कोई आदेश पारित नहीं किया।
Supreme Court issues notice to Centre on the pleas seeking stay on the Citizenship Amendment Act (CAA), 2019 and Citizen Amendment Rules, 2024.
— ANI (@ANI) March 19, 2024
Supreme Court asks the Centre to file its response by April 8 and posts the matter for hearing on April 9. pic.twitter.com/tC7UJ7AbJs
मुसलमानों के खिलाफ भेदभाव करता है सीएए
इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने 15 मार्च को इसका उल्लेख किया था, जिसके बाद अदालत ने मामले को सूचीबद्ध किया था। सिब्बल ने अदालत को बताया था कि जब 2019 में नागरिकता संशोधन अधिनियम को पारित किया गया था, तब इसे नोटिफाई नहीं किया गया। अब चुनाव नजदीक हैं। चार साल बाद इसके नियमों को चुनाव से पहले नोटिफाई करना सरकार की मंशा को संदिग्ध बनाता है।
याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि सीएए धर्म के आधार पर मुसलमानों के खिलाफ भेदभाव करता है। यह संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन है।
ये हैं प्रमुख याचिकाकर्ता
इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, तृणमूल कांग्रेस नेता महुआ मोइत्रा, कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश, ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन चीफ असदुद्दीन ओवैसी, असम के कांग्रेस नेता देबब्रत सैकिया, असम से कांग्रेस सांसद अब्दुल खालिक, एनजीओ रिहाई मंच और सिटीजन्स अगेंस्ट हेट, असम एडवोकेट्स एसोसिएशन, डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया (डीवाईएफआई)।
इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग 2019 में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष CAA को चुनौती देने वालों में से एक था। याचिका में कहा है कि सीएए कानून पूरी तरह से धार्मिक पहचान पर आधारित स्पष्ट रूप से मनमाना और भेदभावपूर्ण शासन लागू करता है।
तुषार मेहता ने याचिकाकर्ताओं की स्थिति पर उठाए थे सवाल
केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिकाकर्ताओं की स्थिति पर संदेह जताया। तुषार मेहता ने कहा कि किसी भी याचिकाकर्ता के पास नागरिकता देने पर सवाल उठाने का कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा कि सीएए के खिलाफ 237 याचिकाएं लंबित हैं। जिनमें चार अंतरिम आवेदन हैं, जिनमें नियमों के कार्यान्वयन पर रोक लगाने की मांग की गई है। हालांकि सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि हम इस पर मंगलवार को सुनवाई करेंगे। 190 से अधिक मामले हैं। उन सभी की सुनवाई की जाएगी। हम आईए (अंतरिम आवेदन) के साथ एक पूरा बैच रखेंगे।
11 मार्च को केंद्र ने जारी की थी अधिसूचना
केंद्र सरकार ने सीएए को 2019 में संसद से पास कराया था। इसे 11 मार्च को अधिसूचित किया गया। मतलब पूरे देश में सीएए नियम लागू किए गए। इसके तहत बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाइयों सहित सताए गए गैर-मुस्लिम प्रवासियों को भारतीय नागरिकता दी जाएगी। शर्त है कि वे 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए हों। नागरिकता पाने के लिए ऑनलाइन आवेदन करना होगा।