ULFA peace deal: दिल्ली में शुक्रवार को केंद्र, असम सरकार और यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (ULFA) के बीच ऐतिहासिक शांति समझौते पर हस्ताक्षर हुए। ULFA पूर्वोत्तर के प्रमुख विद्रोही समूहों में से एक है। यह असम में दशकों से आतंक की वजह रहा है। यह ऐतिहासिक समझौता उल्फा को खत्म करने की दिशा में उठाया गया अहम कदम माना जा रहा है। शांति समझौते के दौरान गृह मंत्री अमित शाह और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा मौजूद रहे। इसके 726 उग्रवादी ने हथियार डालने और आत्मसमर्पण करने पर सहमती दी है।
अमित शाह ने जाहिर की खुशी
इस समझौते के बाद गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि आज असम के भविष्य का उज्जवल दिन है। असम और पूर्वोत्तर को लंबे समय तक हिंसा से जूझना पड़ा। 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आने के बाद हमने इसे खत्म करने की कोशिश की। दिल्ली और पूर्वोत्तर के बीच खाई पाटने की कोशिश की। अब असम का सबसे पुराना विद्रोही समूह हिंसा छोड़ने के लिए तैयार हो गया। यह संगठन को खत्म करने और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल होने के लिए राजी हो गया है। कि 1979 से लेकर अब तक असम में 10 हजार से ज्यादा लोगों की जानें गई है। शाह ने समझौते का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कोशिशों को दिया।
उल्फा की मांगों को पूरा करने का वादा
गृह मंत्री अमित शाह ने उल्फा की उचित मांगों को तुरंत पूरा करने का भरोसा दिलाया। उन्होंने एक संगठन के रूप में उल्फा को खत्म करने का वादा किया। शाह ने कहा कि हमें उम्मीद है कि उल्फा इस समझौते का सम्मान करेंगे। शांति समझौते का उद्देश्य अवैध ढंग से घुसपैठ, आदिवासियों को जमीन का मालिकाना हक देने से जुड़े अधिकार और असम के लिए विकास-केंद्रित वित्तीय पैकेज जैसी अहम चिंताओं को दूर करना है।
कब शुरू हुई उल्फा की गतिविधियां
1979 में असम में स्थापित उल्फा का लक्ष्य शुरू में असमिया लोगों के लिए एक स्वतंत्र राज्य बनाना था। 1980 के दशक के अंत में उल्फा की गतिविधियां हिंसक हो गईं। यह जबरन वसूली, धमकियों और भारत सरकार पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाने की गतिविधियों में शामिल पाया गया। इसके बाद केंद्र सरकार ने एक्शन लिया और उल्फा को प्रतिबंधित संगठनों की सूची में डाल दिया।