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उमा भारती ने एक्स पर लिखा, "बचपन से बृज क्षेत्र की परिक्रमा करने की मेरी इच्छा पूरी होने का अवसर भगवान ने दिया है। लगभग पौने चार सौ किलोमीटर की बृज क्षेत्र दर्शन यात्रा आज भैया दूज से प्रारंभ कर रही हूं।

बीजेपी नेता उमा भारती ने आज (3 अक्टूबर) को भाई दूज के दिन से बृज क्षेत्र की 42 दिन की परिक्रमा शुरू कर दी है। बृज क्षेत्र की परिक्रमा को लेकर ट्वीट किया है। उन्होंने एक्स पर लिखा, "बचपन से ही बृज क्षेत्र की परिक्रमा करने की मेरी इच्छा पूरी होने का अवसर भगवान ने दे दिया है। लगभग पौने चार सौ किलोमीटर की बृज क्षेत्र दर्शन यात्रा आज भैया दूज से प्रारंभ होकर दत्त पूर्णिमा को 42 दिन में समाप्त होगी।"

उन्होंने लगातार तीन एक्स पोस्ट किए जिसमें लिखा, "मैं X पर जानकारी इसलिए दे रही हूं कि यात्रा के मार्ग पर एकांत एवं मौन रहेगा, मेरे साथ सिर्फ आवश्यक लोग रहेंगे। यात्रा की समाप्ति वाले दिन दत्त पूर्णिमा 14 दिसंबर 2024 को बलदाऊ जी (बलदेव जी) में आप सबको आने की स्वतंत्रता दे दूंगी।

उन्होंने लिखा आप सब अवगत ही हैं कि मेरा बांया पांव पूरी तरह से खराब है, मैं बहुत थोड़ा पैदल चल पाती हूं, चढ़ाई बिल्कुल नहीं चढ़ पाती हूं यह स्थिति लगभग 20 साल से है इस यात्रा में मैं साधन, वाहन का इस्तेमाल करूंगी ताकि यात्रा निर्विघ्न संपन्न हो। मुझे शुभकामनाएं एवं आशीर्वाद दीजिए।

क्या है इस यात्रा का महत्व
उत्तर प्रदेश में वृंदावन वह स्थान है जहां भगवान श्री कृष्ण ने कई लीलाएं की हैं। वारह पुराण में ब्रज 84 कोस परिक्रमा के विषय में वर्णन मिलता है। कहा गया है कि पृथ्वी पर 66 अरब तीर्थ हैं और वे सभी चातुर्मास में ब्रज में आकर निवास करते हैं। ऐसा माना जाता है जब एक बार मैया यशोदा और नंद बाबा ने चार धाम यात्रा की इच्छा प्रकट की तो भगवान श्री कृष्ण ने उनके दर्शनों के लिए सभी तीर्थों को ब्रज में ही बुला लिया था।

इस यात्रा को लेकर यह भी मान्यता है कि 84 कोस परिक्रमा करने से व्यक्ति को 84 लाख योनियों से छुटकारा मिलता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही इस यात्रा को करने से व्यक्ति के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।

कब-कब की जाती है यह यात्रा
चातुर्मास में इस 84 कोस की यात्रा करने का विशेष महत्व है। ज्यादातर यात्राएं चैत्र, बैसाख मास में की जाती हैं। परिक्रमा यात्रा साल में एक बार चैत्र पूर्णिमा से बैसाख पूर्णिमा तक ही निकाली जाती है। कुछ लोग आश्विन माह में विजया दशमी के पश्चात शरद काल में परिक्रमा आरम्भ करते हैं। शैव और वैष्णवों में परिक्रमा के अलग-अलग समय है।
 

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