18th Lok Sabha Session: 18वीं लोकसभा का पहला सत्र सोमवार, 24 जून से शुरू हुआ। सदन का कामकाज शुरू होने से पहले नवनिर्वाचित सांसदों ने संविधान के नियमों के तहत शपथ ली। सबसे पहले राष्ट्रपति भवन में प्रोटेम स्पीकर भर्तृहरि महताब को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शपथ दिलाई।
भर्तृहरि महताब ओडिशा की कटक सीट से लगातार सातवीं बार सांसद चुने गए हैं। महताब को संविधान के अनुच्छेद 95 (1) के तहत प्रोटेम स्पीकर नियुक्त किया गया है। महताब नए स्पीकर के चुनाव तक सदन की अध्यक्षता करेंगे और सभी सांसदों को शपथ दिलाएंगे। क्या होती है प्रोटेम स्पीकर की जिम्मेदारी? कब शुरू हुई संसद में ईश्वर के नाम की शपथ लेने की परंपरा? इसमें क्या कभी कोई बदलाव भी हुआ? यहां विस्तार से जानिए सबकुछ-
क्या होती है प्रोटेम स्पीकर की जिम्मेदारी
राष्ट्रपति ने भर्तृहरि महताब को नए स्पीकर के चुनाव होने तक संविधान के अनुच्छेद 95 (1) के तहत प्रोटेम स्पीकर की जिम्मेदारी दी है। प्रोटेम स्पीकर के रूप में उनकी मुख्य जिम्मेदारी सदन की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाना और सभी नवनिर्वाचित सांसदों को शपथ दिलाना है। महताब ने यह कार्य पहले भी निभाया है और उनकी इस जिम्मेदारी को निभाने की क्षमता पर किसी को संदेह नहीं है। वह अपने अनुभव और दक्षता से सदन के नए सदस्यों को शपथ दिलाकर उनका स्वागत करेंगे।
BJP MP Bhartruhari Mahtab takes oath as pro-tem Speaker
— ANI Digital (@ani_digital) June 24, 2024
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कितना होता है सांसद का कार्यकाल और क्या होते हैं अधिकार
किसी भी लोकसभा सांसद का पांच साल का कार्यकाल तब शुरू होता है जब चुनाव आयोग रिप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपल एक्ट 1951 के सेक्शन 73 के अंतर्गत चुनाव का नतीजा घोषित कर देता है। उस दिन से सांसद को चुने हुए जनप्रतिनिधि की तरह कुछ निश्चित अधिकार मिल जाते हैं। जैसे- चुनाव आयोग के द्वारा नोटिफिकेशन जारी किए जाने की तारीख से उन्हें अपनी सैलरी मिलनी शुरू हो जाती है और साथ ही भत्ते भी मिल जाते हैं। सांसद का कार्यकाल शुरू होने का मतलब यह भी है कि अगर सांसद अपनी पार्टी बदल लेते हैं तो जिस राजनीतिक दल से वह आते हैं, वह दल स्पीकर से उन्हें दल बदल कानून के तहत अयोग्य घोषित करने के लिए कह सकता है।
संसदीय शपथ का प्रारूप कैसा होता है
संविधान की तीसरी अनुसूची में संसदीय शपथ का प्रारूप दिया गया है। इसमें सांसद संविधान के प्रति सच्ची आस्था और निष्ठा रखने और देश की संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखने की शपथ लेते हैं। यह शपथ न केवल उनके संवैधानिक दायित्व को स्पष्ट करती है बल्कि यह भी सुनिश्चित करती है कि सांसद देश के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को ईमानदारी और निष्ठा से निभाएंगे। यह शपथ सांसदों के लिए एक महत्वपूर्ण औपचारिकता है जिसे पूरा किए बिना वे सदन की कार्यवाही में भाग नहीं ले सकते।
सेवा परमो धर्म: ॥
— Dharmendra Pradhan (@dpradhanbjp) June 24, 2024
୧୮ତମ ଲୋକସଭାର ସାଂସଦ ସଦସ୍ୟ ଭାବରେ ଶପଥ ଗ୍ରହଣ କରି ଗୌରବ ଅନୁଭବ କରୁଛି । ଲୋକଙ୍କ ଆକାଂକ୍ଷାକୁ ପୂରଣ କରିବା ସହ ନିଜ ସାମର୍ଥ୍ୟ ଅନୁଯାୟୀ ସମାଜର ସେବା କରିବା ପାଇଁ ସବୁବେଳେ ଚେଷ୍ଟା କରିବି ।
Honoured to take oath as a Member of Parliament of the 18th Lok Sabha. Will always strive to… pic.twitter.com/iBmyJjz5zC
जानिए संसद की शपथ में कब कब हुआ बदलाव
संविधान सभा में शपथ में 'ईश्वर' के उल्लेख की मांग केटी शाह और महावीर त्यागी ने की थी। इस मांग को डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने स्वीकार किया। संविधान सभा के सदस्य इस मसौदे पर चर्चा कर रहे थे तो उस वक्त राष्ट्रपति की शपथ को लेकर सवाल उठा था। संविधान सभा के सदस्य जैसे केटी शाह और महावीर त्यागी ने ईश्वर के नाम पर शपथ को जोड़े जाने के लिए संशोधन किए जाने की मांग रखी। बीआर अंबेडकर ने इस संशोधन को स्वीकार किया था। उन्होंने कहा था कि कुछ लोग ईश्वर को मानते हैं, वे सोचते हैं कि अगर वे ईश्वर के नाम पर शपथ लेते हैं तो ईश्वर जो दुनिया को चलाने वाली ताकत है और साथ ही उनके व्यक्तिगत जीवन की भी ताकत है, यह शपथ अच्छे कामों के लिए जरूरी है।
क्या होती है सांसदों की शपथ लेने की प्रक्रिया
सांसदों को शपथ के लिए बुलाए जाने से पहले अपना चुनाव जीतने से संबंधित सर्टिफिकेट लोकसभा स्टाफ को देना होता है। संसद ने यह कदम 1957 में हुई एक घटना के बाद सुरक्षा के मद्देनजर उठाया था। इस घटना में मानसिक रूप से विक्षिप्त एक व्यक्ति ने सदन में आकर सांसद की शपथ ले ली थी। जांच पड़ताल पूरी होने के बाद सांसद अपनी शपथ अंग्रेजी में या संविधान में तय की गई 22 भाषाओं में से किसी भी एक भाषा में ले सकते हैं। यह सुनिश्चित किया जाता है कि सांसद अपने चुनाव सर्टिफिकेट में लिखे गए नाम का ही उपयोग करें और शपथ में लिखे गए शब्दों का पालन करें।
As usual the clown @RahulGandhi was late and not present during the National Anthem.
— BALA (@erbmjha) June 24, 2024
Just as "Jana Gana Mana" ended he entered the Parliament! pic.twitter.com/Z9WCtfALbi
शपथ कौन-कौन सी भाषाओं में ली जाती है
मुश्किल से लोकसभा के आधे सांसद अपनी शपथ हिंदी या अंग्रेजी में लेते हैं। पिछली दो लोकसभा में संस्कृत भी एक लोकप्रिय भाषा के रूप में सामने आई है। 2019 में बीजेपी के टिकट पर लोकसभा का चुनाव जीती साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने शपथ पढ़ते हुए अपने नाम के आगे एक शब्द जोड़ा था लेकिन पीठासीन अधिकारी ने कहा था कि नियमों के मुताबिक चुनाव सर्टिफिकेट पर जो नाम लिखा गया है वही रिकॉर्ड में जाएगा। सांसदों को शपथ के दौरान अपने चुनाव प्रमाणपत्र में दिए गए नाम का पालन करना चाहिए।
क्या शपथ सांसदों की व्यक्तिगत पसंद है
शपथ सांसदों के लिए उनकी व्यक्तिगत पसंद का मामला है। पिछली लोकसभा में 87% सांसदों ने ईश्वर के नाम पर शपथ ली जबकि 13% ने संविधान के प्रति अपनी निष्ठा के नाम पर शपथ ली। ऐसा भी हुआ है कि सांसदों ने अपने एक कार्यकाल में ईश्वर के नाम पर शपथ ली है जबकि दूसरे कार्यकाल में संविधान के प्रति निष्ठा के नाम पर। 2024 में राज्यसभा की सांसद स्वाति मालीवाल ने अपनी शपथ पूरी होने के बाद इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाया था और तब राज्यसभा के सभापति ने स्वाति मालीवाल से कहा था कि उन्हें फिर से शपथ लेनी होगी। यह शपथ की प्रक्रिया को सुनिश्चित करता है कि सांसद अपने व्यक्तिगत विश्वासों और संवैधानिक दायित्वों को सही तरीके से निभाएं।
जेल में बंद सांसद शपथ ले सकते हैं या नहीं
संविधान कहता है कि अगर कोई सांसद 60 दिन तक संसद की कार्यवाही में भाग नहीं लेता है तो उसकी सीट को रिक्त घोषित किया जा सकता है। अदालतों ने जेल में बंद सांसदों को शपथ देने की अनुमति के मामले में इस बात को आधार बनाया है। उदाहरण के लिए जून, 2019 में जब लोकसभा सांसदों का शपथ ग्रहण कार्यक्रम होना था तो उत्तर प्रदेश की घोसी लोकसभा सीट से चुनाव जीते अतुल कुमार सिंह गंभीर आपराधिक मुकदमों के मामले में जेल में थे। लेकिन अदालत ने जनवरी 2020 में उन्हें संसद में जाकर शपथ लेने की अनुमति दे दी थी और अतुल कुमार सिंह ने हिंदी भाषा में संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ ली थी। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि सभी सांसद, चाहे वे किसी भी परिस्थिति में हों, अपनी संवैधानिक जिम्मेदारियों को पूरा कर सकें।