Who Is Padma Shri Awardee Purnamasi Jani: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार, 11 मई ओडिशा के कंधमाल पहुंचे। यहां रैली करने से पहले पीएम मोदी ने मंच पर पद्मश्री पुरस्कार विजेता पूर्णमासी जानी को सम्मानित किया। उन्हें अंगवस्त्र भेंट किया और उनके पैर छूकर आशीर्वाद लिया। पीएम मोदी ने पैर छूने के बाद उनसे कहा- आपने बहुत काम किया है। इस घटनाक्रम का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है।
पीएम मोदी ने पकड़ लिया जानी का हाथ
पीएम मोदी ने जानी को मंच पर शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया। पीएम मोदी ने उनके पैर छुए, हालांकि पूर्णमासी ने पीएम का हाथ पकड़ लिया। फिर वह खुद भी पीएम मोदी के पैर छूनें लगीं तो पीएम मोदी ने उनका हाथ पकड़ लिया और पैर छूने नहीं दिए। यह नजारा देख पूरा पंडाल मोदी-मोदी के नारों से गूंज उठा। पीएम मोदी ने कहा कि देश की करोड़ों माताओं का आशीर्वाद जब मुझे मिलता है तो दिल को संतोष होता है।
देखिए VIDEO...
#WATCH | Prime Minister Narendra Modi felicitates Padma Shri awardee Purnamasi Jani & seeks blessings by teaching her feet, during his public meeting in Odisha's Kandhamal. pic.twitter.com/sWjRAt69Jz
— ANI (@ANI) May 11, 2024
कौन हैं पूर्णमासी जानी?
80 साल की पूर्णमासी जानी एक कवि और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उन्होंने उड़िया, कुई और संस्कृत में एक लाख से अधिक भक्ति गीतों और कविताएं लिखी हैं। उन्होंने कभी भी अपनी कोई कविता या गीत को दोहराया नहीं है। खास बात है कि उन्होंने कभी भी स्कूल नहीं देखा। पढ़ी-लिखी नहीं हैं। उन्हें 2021 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। जानी को यह सम्मान आदिवासी संस्कृति और कला में उनके योगदान के लिए मिला था। उन्हें आदिवासी आध्यात्मिक गतिविधियों के गहन ज्ञान के लिए ताड़िसरू बाई के नाम से जाना जाता है।
वैश्विक नेता आदरणीय प्रधानसेवक श्री @NarendraModi जी ने ओडिशा के कंधमाल में एक सार्वजनिक सभा के दौरान पद्मश्री पुरस्कार विजेता पूर्णमासी जानी जी से आशीर्वाद लिया।#PhirEkBaarModiSarkar pic.twitter.com/GqNxw3Ogjv
— Mansukh Mandaviya Fan Club (@FanClubofMM) May 11, 2024
कम उम्र में शादी, 6 बच्चों के जन्म, एक भी जिंदा नहीं
पूर्णमासी का जन्म कंधमाल जिले के खजुरीपाड़ा ब्लॉक के अंतर्गत चारीपाड़ा गांव में 1944 में हुआ था। उनकी शादी कम उम्र में हो गई थी। अपने वैवाहिक जीवन के 10 वर्षों में उन्होंने छह बच्चों को जन्म दिया, लेकिन कोई भी जीवित नहीं रह सका। दर्द से उबरने के लिए उन्होंने भक्ति का रास्ता चुना। कुछ संतों के साथ तपस्या करने के लिए अपने गांव के पास ताड़िसरू पहाड़ी पर गईं। वर्षों बाद जब वह अपने गांव लौटीं तो लोगों ने उन्हें एक संत के रूप में माना और ताड़िसरू बाई कहने लगे। फिर उन्होंने भक्ति गीत और कविताएं लिखना शुरू कर दिया।
लोगों के लिए भगवान से कम नहीं पूर्णमासी
स्थानीय बिक्रम जानी कहते हैं कि आम तौर पर ताड़िसरू बाई पूरे दिन शांत रहती हैं। लेकिन जब वह ध्यान करती है तो भक्ति गीत गाना शुरू कर देती है। पूर्णमासी जानी, लोगों के लिए भगवान से कम नहीं है।
पूर्णमासी के जीवन पर हुए शोध
1990 में पूर्णमासी जानी के गीत और कविताएं उस क्षेत्र का दौरा करने वाले कुछ लेखकों की नजर में आईं। फिर उन्होंने उनके कामों का दस्तावेजीकरण करने का निर्णय लिया। आज उनके लगभग 5,000 गीत और कविताएं साहित्यकारों और साहित्यिक समितियों द्वारा रिकॉर्ड किए गए हैं। बाद में उनकी जीवनी डॉ. सुरेंद्रनाथ मोहंती द्वारा लिखी गई और एक शिक्षक दुर्योधन प्रधान ने उनके सभी गीतों का संकलन किया। हालांकि, संकलन अभी तक प्रकाशित नहीं हुए हैं। रेवेनशॉ विश्वविद्यालय सहित कई शोधकर्ताओं ने उनके काम और जीवन पर पीएचडी की है।