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Opinion: चिरायता में मौजूद गुण पीलिया, खांसी, जुकाम, बुखार, जैसी समस्याओं को भी दूर रखते हैं। चिरायता से इम्यूनिटी भी बढ़ती है। लगातार बारिश होने से डेंगू संक्रमण के मामले भी बढ़ते जा रहे हैं। इसके अलावा दोहरे संक्रमण के रोगी भी खूब आ रहे हैं।

Opinion: आयुर्वेद मतानुसार भादों मास में चिरायता का सेवन करना चाहिए। चिरायता में एंटीवायरल गुण होते हैं और यदि महीना भर चिरायता का सेवन किया जाए तो डेंगू व अन्य वायरस रक्त में पहुंचने के बावजूद शरीर में संक्रमण उत्पन्न नहीं कर पाते हैं। इसके अलावा वर्षा ऋतु में पित्त दोष का संचय होता है और शरद ऋतु (वर्षा ऋतु के बाद के दो महीने) में पित्त दोष का प्रकोप शुरू हो जाता है। चिरायता विरेचन (दस्त लगने) का कार्य बहुत अच्छी तरह से करता है और पित्त दोष से शरीर की शुद्धि विरेचन द्वारा ही की जाती है, इसलिए भादों मास में चिरायता के सेवन से शरीर में पित्तजन्य विकार भी नहीं होंगे।

शुगर लेवल कंट्रोल में रहता है
इसके अलावा चिरायता सेवन करने से शुगर लेवल कंट्रोल में रहता है, कब्ज से राहत मिलती है, लिवर को डिटॉक्सिफाई करने में मदद मिलती है। चिरायता में मौजूद गुण पीलिया, खांसी, जुकाम, बुखार, जैसी समस्याओं को भी दूर रखते हैं। चिरायता से इम्यूनिटी भी बढ़ती है। लगातार बारिश होने से डेंगू संक्रमण के मामले भी बढ़ते जा रहे हैं। इसके अलावा दोहरे संक्रमण के रोगी भी खूब आ रहे हैं जिनमें जांच के बाद डेंगू के साथ कोई अन्य वायरल (जैसे हैपेटाइटिस) या बैक्टीरिया (टायफाइड) संक्रमण भी मिल रहा है। ऐसे मरीजों के इलाज में आयुर्वेदिक दवाएं कारगर हैं, जिनका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं है।

बुखार के सभी रोगी पहले दिन से ही संजीवनी वटी, आरोग्यवर्धिनी वटी, महासुदर्शन चूर्ण, कालमेघ, भुंई आंवला, पपीते के पत्तों का रस, गिलोय का काढ़ा और हरसिंगार के पत्तों के काढ़े का प्रयोग करें, ताकि डेंगू व अन्य कोई भी संक्रमण गंभीर स्थिति में न पहुंचे। बुखार आने पर पहले दिन से ही इन दवाओं का प्रयोग करने से डेंगू के मरीजों में न तो प्लेटलेट्स की संख्या ज्यादा घटेगी और न ही शरीर में ब्लीडिंग होगी। ये दवाएं हर तरह के बुखार में लाभकारी हैं और अगर डेंगू के साथ कोई अन्य बैक्टीरियल या वायरल संक्रमण भी हो तो इन दवाओं के प्रयोग से संक्रमण काबू आ जाएगा। बुखार डेंगू के बजाय किसी और संक्रमण के कारण हो तो उसमें भी ये दवाएं फायदा ही करेंगी। संजीवनी वटी, आरोग्यवर्धिनी वटी, कुटकी, महासुदर्शन चूर्ण, पपीते के पत्तों का रस, भुंई आंवला, गिलोय, कालमेघ आदि दवाएं टेबलेट, कैप्सूल और सिरप के रूप में बाजार में उपलब्ध हैं, जबकि हरसिंगार के पत्तों का काढ़ा घर पर आसानी से बनाया जा सकता है।

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शरीर की इम्युनिटी को भी बढ़ाती हैं
काढ़ा बनाने के लिए हरसिंगार के 20 से 25 पत्ते आधा लीटर पानी में उबालें और पानी आधा रह जाने पर छानकर रख लें। यह काढ़ा बीस मिलीलीटर (चार चम्मच) की मात्रा में हर 2 घंटे के बाद रोगी को पिलाएं। काढ़े में हरसिंगार के पत्तों के साथ काली मिर्च, तुलसी और गिलोय को भी मिला सकते हैं। ये दवाएं संक्रमण को खत्म करने के साथ- साथ शरीर की इम्युनिटी को भी बढ़ाती हैं। साथ ही शरीर में किसी भी तरह की हानि नहीं पहुंचाती। इसके अतिरिक्त जय मंगल रस, हिंगुलेश्वर रस, शुण्ठी चूर्ण, आरोग्यवर्धिनी वटी, अमृतारिष्ट, सुदर्शन चूर्ण, कुटकी, नवायस लौह, गुडूची सत्व आदि दवाएं भी डेंगू के इलाज में प्रभावी हैं। डेंगू की रिपोर्ट पॉजिटिव आने पर इन दवाओं का प्रयोग करें तो भी एक से दो दिन में प्लेटलेट्स की संख्या बढ़नी शुरू हो जाती है और शरीर में आंतरिक रक्तस्राव की संभावना भी समाप्त हो जाती है।
डॉ. आर. पी. पाराशर: (लेखक दिल्ली नगर निगम में मुख्य चिकित्सा अधिकारी (आयुर्वेद) हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)

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