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Opinion: Rau IAS स्टडी सर्किल भारतीय सिविल सेवा के कोचिंग की दृष्टि से सबसे पुराना और सम्मानित नाम है। हालांकि पिछले ढाई दशकों में कई ऐसे कोचिंग संस्थान खड़े हो गए हैं, जिनका सम्मान और साख अभ्यर्थियों की दृष्टि में लगभग बराबर ही है।

Opinion: दिल्ली के एक कोचिंग सेंटर में तीन छात्रों की अकल्पनीय दुखद मृत्यु हर चिंतनशील व्यक्ति को अंदर से हिला दी है। यह घटना अगर हम सबको अंदर से नहीं झकझोरता तो मान लीजिए कि हमने अपने अतीत में ठीक प्रकार से झांकने, वर्तमान को संभालने और भविष्य की वास्तविक चिंता करने से अपने को अलग कर लिया है। निश्चित रूप से कोचिंग करने आए उन तीन दुर्भाग्यशाली छात्रों का कोई दोष नहीं है।

सबसे पुराना और सम्मानित नाम
रौ आईएएस स्टडी सर्किल भारतीय सिविल सेवा के कोचिंग की दृष्टि से सबसे पुराना और सम्मानित नाम है। हालांकि पिछले ढाई दशकों में कई ऐसे कोचिंग संस्थान खड़े हो गए हैं, जिनका सम्मान और साख अभ्यर्थियों की दृष्टि में लगभग बराबर ही है। कल्पना करिए अगर इतनी पुरानी और सम्मानित संस्था की आधारभूत संरचना ऐसी है, जहां संकट में छात्रों के बचाव की आपात व्यवस्था नहीं तो अन्य संस्थाओं की कैसी स्थिति होगी? दुर्घटना के बाद दिल्ली पुलिस और प्रशासन जिस त्वरित गति से कार्रवाई कर रहा है अगर इन सबने अपनी निर्धारित भूमिका का निर्वहन पूर्व में किया होता तो शायद यह भयानक घटना नहीं घटती। शायद इसलिए क्योंकि इसके दूसरे पहलू भी हैं।

व्यावसायिक क्षेत्र में भवनों का निर्माण, उसकी आंतरिक संरचना उसमें सुरक्षोपाय आदि के स्पष्ट मानक बने हुए हैं। बगैर उनके पूर्णता का प्रमाणपत्र नहीं दिया जा सकता। सुरक्षोपाय के पूरी जांच के बाद ही उनमें व्यावसायिक गतिविधियां चलाने के कानून और मानक निहित है। पहली दृष्टि में देखें तो सामान्य तौर पर हमारी आपकी सबकी दृष्टि में प्रतिदिन दिखने वाले प्रशासनिक सामाजिक भ्रष्टाचार का यह एक त्रासदीपूर्ण उदाहरण है। घटना के बारे में जानकारी इतनी ही है कि ओल्ड राजेंद्र नगर में बारिश का पानी सड़कों पर भर गया जो दुकानों -मकान में घुसने लगा और बड़ी गाड़ियों के यू टर्न लेने से कुछ मिनट के लिए पानी इतनी तेजी से आया कि स्टडी सर्किल के बेसमेंट में लगे शीशे के दरवाजे टूट गए और मिनट में अंदर पानी भर गया। कुछ सौभाग्यशाली छात्र बच के निकल गए। ये तीन नहीं निकल सके।

विभाग और लोग अपराधी दिखाई देते हैं
इसे अगर सामान्य दृष्टि से भी विश्लेषित करें तो नालियों, सड़कों पर जल जमाव के बीच यातायात की व्यवस्था, व्यावसायिक स्थलों के बचाव तथा भवन निर्माण में ऐसी सुरक्षित दरवाजे आदि के पहलू सामने आएंगे। इसके लिए कितने विभाग और लोग अपराधी दिखाई देते हैं यह बताने की आवश्यकता नहीं। कह सकते हैं कि जब बारिश काफी तेज हो तो एकाएक पानी का निकास संभव नहीं होता। बिल्कुल सही है। क्या इसके आधार पर ऐसी भयावह घटना को स्वाभाविक माना जा सकता है? बिल्कुल नहीं। दिल्ली के उपराज्यपाल का बयान है कि दोषी बख्शे नहीं जाएंगे। यह एक सामान्य सा बयान है। कौन-कौन दोषी हैं, इनकी पहचान अपने आपमें सबसे बड़ा प्रश्न होता है। घटना बिल्कुल ताजा है, देशभर का ध्यान है, लोगों में आक्रोश है तो ऐसे समय कार्रवाई होती है।

इसके बाद न्यायालय की लड़ाई, साथ ही साथ पूरी स्थिति की समीक्षा और फिर भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति नहीं हो, इसके उपाय हमारे समाज और सत्ता प्रतिष्ठान के चरित्र में बहुत कम परिमाण में दिखता है। कोचिंग सेंटर को सील कर दिया गया। क्या सड़क के उस स्थान को सील किया जा सकता है जहां से पानी का तेज झोंका अंदर आया? क्या उन गाड़ियों की पहचान कर दंडित किया जाएगा, जिन्होंने ड्राइविंग मानकों का उल्लंघन कर गलत तरीके से यू-टर्न लिया और घटना घटा दी? क्या उस व्यावसायिक क्षेत्र के निर्माण की अनुमति और पूर्णता का सर्टिफिकेट देने वाले सारे लोगों की पहचान संभव है? इसी तरह युवाओं के करियर बनाने के नाम पर चारों तरफ दिख रहे कोचिंग सेंटरों में से कम से कम बड़े नामों की भी एक बार संपूर्ण जांच संभव है? इन प्रश्नों का उत्तर हम आप अच्छी तरह जानते हैं। किसी समस्या को संपूर्णता में देखने और दूरगामी सोच से स्थाई सामाधन की दिशा में बढ़ने की अवशयकता होती है।

कोचिंग सेंटरों की ट्रेजडी का उदाहरण
हमने अपनी पूरी शैक्षणिक सामाजिक आर्थिक व्यवस्था को इस स्थिति में पहुंचा दिया है जहां से लगता ही नहीं कि इसकी संभावना बची है। कोटा के कोचिंग सेंटरों की ट्रेजडी के का उदाहरण हमारे सामने हैं। नगरों में निर्माण और उसके संचालन का मुद्दा यहां शीर्ष पर दिखता है। इसके परे देखें तो क्या शिक्षा के लिए इस तरह के कोचिंग सेंटरों की वाकई आवश्यकता है? दिल्ली नहीं कोटा समेत समूचे देश में शायद ही कोई ऐसा शहर और कस्बा होगा, जहां छोटे-बड़े कोचिंग सेंटर नहीं होंगे।
अगर छात्र अतिरिक्त कोचिंग में न जाएं तो उनके लिए वर्तमान प्रतिस्पर्धा के दौर में सफल होना मुश्किल है। प्रश्न उठता है कि आखिर हमारा शिक्षा ढांचा इतना लाचार क्यों हो गया? क्या लोगों ने इस बात पर गहराई से विचार किया कि भारत कभी अगर विश्व के लिए आकर्षण का केंद्र था तो उसकी शिक्षा व्यवस्था कैसी थी, उन्हें इसका उत्तर मिला, हमारी शिक्षा छात्रों के लिए सच्चे ज्ञान की उच्चतम अवस्था को प्राप्त कर श्रेष्ठ मनुष्य बनने और समाज को दिशा देने जैसे कर्तव्य निर्वहन पर केंद्रित थी।

ज्ञात इतिहास में ऐसे विश्वविद्यालय उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम पूरे देश में थे जहां विदेशों से भी छात्र आते थे। इसलिए भारत को वर्तमान शिक्षा प्रणाली जैसा ढांचा खड़ा करने की जरूरत नहीं थी। स्वतंत्रता के बाद शिक्षा सुधार के नाम पर परिवर्तनों की कोशिशें की गई किंतु मूल ढांचा वही रहा जो हमें अंग्रेजों ने दिया। इस व्यवस्था में लक्ष्य केवल करियर है। इसलिए गलाकाट प्रतियोगिता है और इसमें सफल करने के लिए लाखों की संख्या में ऐसे ही संस्थान खड़े हो गए हैं। कोचिंग तो छोड़िए, देश में प्राथमिक से लेकर उच्च्च शिक्षा तक के कितने निजी संस्थान खड़े हो चुके हैं, इसकी गणना तक असंभव है। जो शिक्षा हमारे यहां स्वाभाविक रूप से समाज व्यवस्था में बिना अतिरिक्त व्यय के अपने आप मिलती थी वह इतना खर्चीला हो गया कि किसी सामान्य आदमी के लिए स्तरीय शिक्षा दिलाना असंभव है। दुर्भाग्य से पूरी व्यवस्था इसी शिक्षा व्यवस्था से निकले लोगों के हाथों है।

नैरेटिव और इकोसिस्टम बना है
इससे संबंधित नैरेटिव और इकोसिस्टम इसी तरह का बना हुआ है। नई शिक्षा नीति में वर्तमान परिस्थितियों के अनुरुप ढांचे और व्यवहार में परिवर्तन की कोशिश है। किंतु इस पूरे इकोसिस्टम और नैरेटिव से खड़े लोग आसानी से इसको साकार नहीं होने देंगे। इसमें लगे लोगों का अनुभव यही आ रहा है कि पाठ्यक्रम में भी भारतीय दृष्टि से एक अध्याय जोड़ने के लिए समितियों में कितना संघर्ष करना पड़ता है। पूरा वातावरण पिछले करीब डेढ़ सौ वर्षों में ऐसा बना है जिसमें इससे बाहर निकाल कर नई शिक्षा व्यवस्था की ओर बढ़ने की कल्पना से लोग डरने लगते हैं। देश में अलग-अलग प्रकार की अनेक त्रासदियां इस शिक्षा व्यवस्था के कारण हो रही हैं। ऐसी घटनाओं से सबक लेकर हमें इस सड़े हुए शिक्षा तंत्र को बदलना चाहिए।
अवधेश कुमार: (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)

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