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Opinion: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अत्यंत सशक्त शब्दों में कहा था कि किसी भी वैश्विक समस्या का समाधान विनाशकारी युद्ध द्वारा कदापि नहीं किया जा सकता है। दुनिया की सभी जटिल विवादों और समस्याओं को कूटनीतिक तौर पर बातचीत द्वारा सुलझाया जाना चाहिए।

Opinion: तकरीबन ढाई वर्ष से अधिक वक्त से रूस और यूक्रेन के मध्य भीषण युद्ध जारी है। यक्ष प्रश्न है कि क्या रूस-यूक्रेन युद्ध का कूटनीतिक शांति वार्ता द्वारा निपटारा करने में भारत एक अत्यंत महत्वपूर्ण विशिष्ट भूमिका का निर्वाह कर सकता है? रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा है कि युद्ध का समुचित निदान निकालने के लिए, अब वह तैयार हैं।

राष्ट्रपति पुतिन की कूटनीतिक मुलाकात
वह यूक्रेन के साथ कूटनीतिक रूप से शांति वार्ता करने के लिए तैयार हैं, बशर्ते यदि भारत, चीन और ब्राजील, वस्तुतः दोनों देशों में मध्यस्थता करने के लिए तैयार हो जाएं। उल्लेखनीय है कि पुतिन द्वारा उल्लेखित तीनों देश अंतरराष्ट्रीय संगठन ब्रिक्स के सदस्य देश हैं, जिसमें रूस और साउथ अफ्रीका भी शामिल हैं। व्लादिमीर पुतिन का यह बयान कुछ चौकाने वाला है, क्योंकि अभी हाल ही में उन्होंने फरमाया था कि यूक्रेन द्वारा रूस के कुसर्क इलाके पर आधिपत्य स्थापित करने का सैन्य प्रयास किया गया है और अब वह यूक्रेन के साथ कोई कूटनीतिक बातचीत कदाचित नहीं करेंगे। मास्को में 8 और 9 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ राष्ट्रपति पुतिन की कूटनीतिक मुलाकात हुई थी।

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कूटनीतिक तौर पर बातचीत
उल्लेखनीय है कि 6 सप्ताह के अंतराल के पश्चात 23 अगस्त को यूक्रेन की राजधानी कीव में यूक्रेन राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की के साथ नरेंद्र मोदी की मुलाकात हुई थी। अपनी मास्को यात्रा के दौरान नरेंद्र मोदी ने युद्ध को समाप्त करने की पुरजोर अपील राष्ट्रपति पुतिन से की थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अत्यंत सशक्त शब्दों में कहा था कि किसी भी वैश्विक समस्या का समाधान विनाशकारी युद्ध द्वारा कदापि नहीं किया जा सकता है। दुनिया की सभी जटिल विवादों और समस्याओं को कूटनीतिक तौर पर बातचीत द्वारा सुलझाया जाना चाहिए। राष्ट्रपति जेलेंस्की से मुलाकात के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि अगर दोनों देश यूक्रेन और रूस बाकायदा कूटनीतिक तौर पर चाहेंगे तो फिर इस भीषण युद्ध को समाप्त करने के लिए भारत मध्यस्थता करने के लिए तैयार है।

रजामंदी जाहिर की
व्यक्तिगत तौर पर भी वह भीषण युद्ध का समाधान निकालने में अपनी सेवाएं देने के लिए तैयार हैं। उल्लेखनीय है कि यूक्रेन रूस युद्ध के प्रारंभ होने के कुछ वक्त के पश्चात ही दोनों देशों ने तुर्की के इस्तांबुल शहर में शांति वार्ता की शुरुआत करने की अपनी रजामंदी जाहिर की थी, किंतु तुर्की के राष्ट्रपति द्वारा प्रस्तावित शांति वार्ता कभी प्रारंभ ही नहीं हो सकी ही और भीषण युद्ध लंबा खींचता चला गया। आजकल रूसी फौज हुए रूस के कुसर्क क्षेत्र में अंजाम दिए गए यूक्रेन के आकस्मिक आक्रमण को नाकाम करने में जुटी हुई है और डॉन बॉस इलाके को अपने सैन्य आधिपत्य में लेने की जबरदस्त कोशिश कर रही है। वस्तुतः दीर्घकालीन युद्ध से हैरान-परेशान हो चुके राष्ट्रपति पुतिन शांति वार्ता की ओर अब अपने कदम बढ़ा रहे हैं।

फ़ौज का कड़ा मुकाबला
राष्ट्रपति पुतिन ने स्वप्न में भी नहीं सोचा होगा कि यूक्रेन की बहादुर जनता अपनी फौज के साथ मिलकर अत्यंत ताकतवर रूसी फ़ौज का कड़ा मुकाबला कर सकेगी। यहां तक कि रूस के अंदर घुसकर रूस के कुसर्क क्षेत्र पर आधिपत्य स्थापित कर लेगी। सोवियत यूनियन को खुफिया एजेंसी केजीबी के लेफ्टिनेंट कर्नल रहे राष्ट्रपति पुतिन सोवियत यूनियन का इतिहास ही भूल गए कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सन 1943 में जब हिटलर की फासिस्ट फौज ने सोवियत यूनियन पर आक्रमण किया था, उस वक्त सबसे कड़ा मुकाबला करते हुए स्टालिन ग्राड के बाद यूक्रेन की वर्तमान राजधानी कीव में ही हिटलर की फौज की निर्णायक पराजय अंजाम दी गई थी। तभी सोवियत यूनियन के इतिहास में कीव को हीरोइक सिटी का दर्जा प्रदान किया गया था। इसलिए कहा जाता है कि राजनेताओं को राजनीति और कूटनीति शास्त्रों के साथ ही इतिहास का ज्ञान होना भी अत्यंत आवश्यक होता है।

सरहद पर आकर तैनात
यह तथ्य एकदम ठीक है कि राष्ट्रपति जेलेंस्की ने बाकायदा नाटो सैन्य संगठन में शामिल होने का निर्णय लिया था। राष्ट्रपति पुतिन कदापि नहीं चाहते थे कि यूक्रेन के नाटो में शामिल हो जाने के पश्चात, नाटो सैन्य संगठन की सेनाएं रूस के ढाई हजार किलोमीटर लंबी सरहद पर आकर तैनात हो जाएं। राष्ट्रपति पुतिन ने यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की को नाटो सैन्य संगठन में शामिल नहीं होने के लिए मनाने का भरसक प्रयास किया। जेलेंस्की ने पुतिन की सलाह को कदाचित स्वीकार नहीं किया। परिणाम स्वरूप पुतिन ने 22 फरवरी 2022 को यूक्रेन पर सैन्य धावा बोल दिया। पुतिन को शायद अंदाजा भी नहीं था कि रूस-यूक्रेन के मध्य प्रारंभ हुआ भीषण युद्ध इतना लंबा खींच जाएगा। राष्ट्रपति पुतिन ने यूक्रेन के सैन्य प्रतिरोध और नैतिक बल को बहुत कम करके आंका।

यूक्रेन के पीछे नाटो सैन्य शक्तियां सन्नद होकर खड़ी हो गई। नाटो सैन्य शक्ति का नेतृत्व अमेरिका कर रहा है। यूक्रेनियन को हथियारों का अभाव कदापि नहीं होने दिया गया। यूक्रेन की तकरीबन 3 लाख फौज ने अपनी तकरीबन चार करोड़ जनता के साथ मिलकर तकरीबन 15 करोड़ आबादी वाले रूस और उसकी 20 लाख रूसी फ़ौज का जबरदस्त तौर पर मुकाबला जारी रखा है। भारत ने प्रारंभ से ही रूस-यूक्रेन युद्ध को शांतिपूर्ण वार्ता द्वारा समाधान करने का सुझाव रूस के राष्ट्रपति पुतिन और राष्ट्रपति जेलेंस्की के समक्ष पेश किया था। अपनी कूटनीतिक वार्ताओं के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा यह बारम्बार दोहराया गया कि वर्तमान दौर विनाशकारी युद्ध का दौर कदापि नहीं है, वरन यह दौर निर्माण और विकास का दौर है। अब प्रतीत होता है कि राष्ट्रपति पुतिन युद्ध से काफी हद तक थक चुके हैं, यहां तक कि हताश भी हो चुके हैं।

चीन की कूटनीतिक यात्रा
राष्ट्रपति पुतिन को रूस द्वारा यूक्रेन पर निर्णायक विजय प्राप्त करने की कोई उम्मीद भी शेष नहीं रह गई है। अतः अब पुतिन इस युद्ध का समाधान शांति वार्ता द्वारा निकालने के लिए तत्पर हो उठे हैं। ब्रिक्स के तीनों देशों को संबोधित कर रहे हैं कि वह इस युद्ध का समाधान करने के लिए पहल करें। रूस- यूक्रेन युद्ध से सबसे अधिक आहत हुए यूरोप के देशों ने यूद्ध के समाधान करने के लिए बड़ी उम्मीद के साथ सबसे पहले चीन की तरफ देखा था। फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों ने इसी सिलसिले में चीन की कूटनीतिक यात्रा भी अंजाम दी थी, लेकिन इस उम्मीद का कोई सार्थक नतीजा नहीं निकल सका।

इसका सबसे बड़ा कारण रहा कि चीन का रूस के साथ जबरदस्त सैन्य गठजोड़ स्थापित हो चुका है। नाटो सैन्य संगठन का लीडर राष्ट्र अमेरिका वस्तुतः चीन को रूस की तरह ही अपना शत्रु राष्ट्र समझता है। ब्रिक्स के तीनों देशों में भारत ही एक अकेला देश है, जिसके कूटनीतिक ताल्लुकात अमेरिका, यूरोप के पश्चिम देशों और रूस के साथ समान रूप से मैत्रीपूर्ण हैं। तृतीय विश्व युद्ध के कगार पर खड़ी दुनिया को भयानक विनाश से बचाने के लिए भारत को अपनी ऐतिहासिक भूमिका का निर्वाह करते हुए आगे बढ़कर रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के लिए प्रबल कूटनीतिक पहल अंजाम देनी चाहिए।
प्रभात कुमार रॉय: (लेखक विदेशी मामले के जानकार है. ये उनके अपने विचार है।)

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