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Opinion: नेपाल में हिंदू राष्ट्र घोषित किए जाने की मांग के लिए शंखनाद शुरू हो गया है। वहां अनेक संगठन सड़कों पर उतरकर राजशाही के पक्ष में आंदोलन कर रहे हैं। इस मांग में पुरुषों के साथ महिलाएं भी कंधे से कंधा मिलाकर आंदोलन में शामिल हैं।

Opinion: भारत के पड़ोसी देश नेपाल में एक बार फिर से सत्ता परिवर्तित हो गई है। नेपाल में फिर से चीन के करीबी माने जाने वाले नेता सीपीएन-यूएमएल के प्रमुख केपी शर्मा ओली ने सत्ता की कमान संभाल ली है। नेपाल में जबसे कम्युनिस्ट दलों की सरकार बनने लगी है, तब से चीन के दबाव के चलते वहां लगातार अस्थिरता बनी हुई है। पुष्प कमल दहाल उर्फ प्रचंड संसद में विश्वास मत प्राप्त करने में विफल रहे। 

डेढ़-डेढ़ वर्ष के लिए प्रधानमंत्री पद संभालेंगे
सीपीएन-यूएमएल नेता केपी शर्मा ओली सबसे बड़े दल नेपाली कांग्रेस के समर्थन से गठबंधन की नई सरकार बनने जा रहे हैं। ओली ही नए पीएम होंगे। सीपीएन-यूएमएल व नेपाली कांग्रेस के बीच हुए सत्ता समझौते के अनुसार ओली और नेपाली कांग्रेस नेता शेर बहादुर देउबा बारी बारी से डेढ़-डेढ़ वर्ष के लिए प्रधानमंत्री पद संभालेंगे। नेपाल में अस्थिर सरकार होने का पता इस बात से चलता है कि नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के अध्यक्ष प्रचंड प्रधानमंत्री के पद पर आसीन होने के बाद से चार बार विश्वास मत का सामना कर चुके हैं। पांचवीं बार विफल रहे। साफ है, नेपाल के हालात दुरुस्त नहीं है। वहां हिंदू राष्ट्र घोषित करने की मांग लगातार उठ रही है। इधर चीन नेपाल को कर्ज देकर अपने शिकंजे में कसता जा रहा है। 

पड़ोसी और धार्मिक व सांस्कृतिक एकरूपता से जुड़े देश नेपाल में हिंदू राष्ट्र घोषित किए जाने की मांग के लिए शंखनाद शुरू हो गया है। वहां अनेक संगठन सड़कों पर उतरकर राजशाही के पक्ष में आंदोलन कर रहे हैं। इस मांग में पुरुषों के साथ महिलाएं भी कंधे से कंधा मिलाकर आंदोलन में शामिल हैं। इस मांग को मुख्य रूप से राष्ट्रवादी राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी कर रही है। यह नेपाल की पांचवीं सबसे बड़ी पार्टी है। इस दल के प्रवक्ता मोहन श्रेष्ठ की मांग है कि नेपाल में राजशाही की पुनर्बहाली हो, देश में संघीय व्यवस्था लागू हो और इसे हिंदू राष्ट्र घोषित किया जाए। इस समय नेपाल और भारत में जिस तरह से धर्म और संस्कृति का पुनरुत्थान हो रहा है, उसका अनुसरण भी देखने में आ रहा है। नेपाल को 2007 में पंथनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया गया था। 

व्यवस्था समाप्त कर दी गई
नतीजतन 2008 में राजशाही व्यवस्था समाप्त कर दी गई थी। इस आंदोलन को 'राष्ट्र, राष्ट्रवाद, धर्म, संस्कृति और नागरिकों की रक्षा के लिए अभियान' का दर्जा दिया जा रहा है। 2008 में नेपाल के गणराज्य बनने के बाद से कारोबारी दुर्गा प्रसाई आंदोलन को हवा दे रहे हैं। एक समय प्रसाई के प्रधानमंत्री प्रचंड और ओली के साथ घनिष्ठ संबंध थे, लेकिन अब वह नियमित रूप से आलोचना कर रहे हैं। इसी समय राजशाही के दौर में गृहमंत्री रहे कमल थापा ने हिंदू राष्ट्र की मांग के लिए नया गठबंधन बनाया है। पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र शाह भी एकाएक सक्रिय होकर सार्वजनिक कार्यक्रमों में भागीदारी करने लगे हैं। वे मंदिरों में होने वाली पूजा में शामिल हो रहे हैं। दरअसल, नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी का चीन की गोद में बैठना और भारत विरोधी अभियान चलाना देश की जनता को नागवार गुजर रहा है। 

राजशाही के साथ हिंदू राष्ट्र बहाली की मांग भी मुखर हुई है। नेपाल के मुसलमान भी देश को हिंदू राष्ट्र बनाने के पक्ष में हैं। नेपाल को हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग के समर्थन में हो रहे प्रदर्शनों में शामिल राप्ती मुस्लिम सोसायटी के अध्यक्ष अमजद अली ने कहा है कि इस्लाम को बचाने के लिए यह जरूरी है। समाज के कुछ नेताओं का मानना है कि हिंदू राष्ट्र का दर्जा खत्म होने के बाद से नेपाल में ईसाई मिशनरियां ज्यादा सक्रिय हो गई हैं। मिशनरी इस स्थिति का फायदा उठाकर लोगों का धर्म परिवर्तन करवा रही हैं। यूसीपीएन माओवादी के मुस्लिम मुक्ति मोर्चा भी मिशनरियों के बढ़ते प्रभाव को स्वीकार नहीं करता है। राष्ट्रवादी मुस्लिम मोर्चा भी देश की धर्मनिरपेक्ष पहचान नहीं चाहता है। 80 फीसदी मुस्लिम आबादी देश की हिंदू पहचान बहाल करने के पक्ष में है।

दर्जा देने के लिए अभियान
गौरतलब है कि राजशाही समर्थक राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी और कई हिंदूवादी संगठन काफी समय से नेपाल को फिर से हिंदू राष्ट्र का दर्जा देने के लिए अभियान चला रहे हैं। राजनीतिक दलों के बीच नए संविधान में देश की धर्मनिरपेक्षता की पहचान खत्म करने को लेकर सहमति बनी थी। इसके बाद से यह मांग और तेज हो गई है। देश के सभी समुदाओं के लोग मानते हैं कि हिंदू पहचान की बहाली का कोई विकल्प नहीं है। धर्मनिरपेक्षता हिंदू- मुस्लिम एकता तोड़ने की साजिश है। दरअसल सात साल पहले दो नेपाली युवकों को बुटवॉल में पुराने राष्ट्रगान को गाने की वजह से पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। इसके बाद से ही पूरे नेपाल में इस राष्ट्रगान को गाने का सिलसिला चलने के साथ हिंदू राज की पुनरुथापना की मांग उठ रही है।

हिमालय की गोद में बसा नेपाल एक छोटा और सुंदर देश है। पूरी दुनिया में नेपाल ही एकमात्र ऐसा देश है, जिसे आज तक कोई दूसरा देश परतंत्र नहीं बना पाया। इसलिए यहां स्वतंत्रता दिवस नहीं मनाया जाता। किंतु चीन के लगातार बढ़ रहे हस्तक्षेप के चलते लोगों को लगने लगा है कि कहीं यह हिंदू धर्मावलंबी देश अपनी मौलिक संस्कृति व स्वतंत्रता न खो दे? नेपाल एक दक्षिण एशियाई देश है। नेपाल के उत्तर में चीन का स्वायत्तशासी प्रदेश तिब्बत है। जिसे चीन निगलता जा रहा है। दक्षिण पूर्व व पश्चिम में भारत की सीमा लगती है। नेपाल की 85.5 प्रतिशत आबादी हिंदू है, इसलिए वह प्रतिशत के आधार पर सबसे बड़ा हिंदू धर्मावलंबी देश है। 

लंबे समय तक राजशाही
नेपाल में लंबे समय तक राजशाही रही है। किंतु राजशाही के खूनी दुखद अंत के बाद यहां माओवादी नेता प्रचंड के प्रधानमंत्री बनने से सामंतशाही सिमटती चली गई और 18 मई 2006 को राजा के अधिकारों में कटौती कर नेपाल को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित कर माओवादी लोकतंत्र की शुरुआत हो गई। तभी से चीनी हस्तक्षेप के चलते यहां के मूल स्वरूप को बदलने के अलावा भारत के साथ संबंध खराब होने की शुरुआत भी हो गई थी। केपी शर्मा ओली के प्रधानमंत्री रहते हुए चीन के दबाव में न केवल भारत से शत्रुतापूर्ण संबंधों की बुनियाद रखी थी, बल्कि चीनी सेना को खुली छूट देकर अपनी जमीन भी खोना शुरू कर दी। 

भारत और नेपाल के बीच सुलह
जाहिर है, नेपाल में लोकतांत्रिक व्यवस्था की स्थापना तो हो गई, लेकिन लचर नेतृत्व के चलते यह देश अपना अस्तित्व खोने की कगार पर आ खड़ा हुआ है। अब ओली के फिर से प्रधानमंत्री बन जाने से चीन का दखल फिर बढ़ता दिखाई देगा? भारत को सचेत रहने की जरूरत है। हमारे पड़ोसी देशों में नेपाल और भूटान ऐसे देश हैं, जिनके साथ हमारे संबंध विश्वास और स्थिरता के रहे हैं। यही वजह है कि भारत और नेपाल के बीच 1950 में हुई सुलह, शांति और दोस्ती की संधि आज भी कायम है। नेपाल और भूटान से जुड़ी 1850 किमी लंबी सीमा रेखा बिना किसी पुख्ता पहरेदारी के खुली है। बावजूद चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश की तरह कोई विवाद नहीं है। बिना पारपत्र के आवाजाही निरंतर जारी है। करीब 60 लाख नेपाली भारत में काम करके रोजी-रोटी कमा रहे हैं।
प्रमोद भार्गव: (लेखक वरिष्ठ पत्रकार है, ये उनके अपने विचार हैं।)

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