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डॉ. ओ. पी. त्रिपाठी : एनडीए के नेता नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बने हैं। जिस दौर में यह प्रतिष्ठा जवाहर लाल नेहरू को मिली थी, तब कांग्रेस का ही वर्चस्व था। तीनों बार कांग्रेस को बहुमत हासिल हुआ था। आज स्थानीय और क्षेत्रीय स्तर पर राजनीतिक दलों का प्रभाव है, लिहाजा जनादेश भी विभाजित आते हैं।

डॉ. ओ. पी. त्रिपाठी : एनडीए के नेता नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बने हैं। जिस दौर में यह प्रतिष्ठा जवाहर लाल नेहरू को मिली थी, तब कांग्रेस का ही वर्चस्व था। तीनों बार कांग्रेस को बहुमत हासिल हुआ था। आज स्थानीय और क्षेत्रीय स्तर पर राजनीतिक दलों का प्रभाव है, लिहाजा जनादेश भी विभाजित आते हैं। इस चुनाव में भाजपा को आशानुरूप सफलता नहीं मिली। हालांकि सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर वो उभरी है। सबसे ज्यादा सीटें भी भाजपा के ही खाते में हैं।

कब तक मोदी सरकार का समर्थन करते रहेंगे
नरेंद्र मोदी भाजपा-एनडीए संसदीय दल के नेता के तौर पर प्रधानमंत्री बने हैं। गठबंधन को 293 सीटें मिली हैं। लिहाजा लगातार तीसरी बार ताजपोशी भी चमत्कार है। सवाल और संदेह उठाए जा रहे हैं कि चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) और नीतीश कुमार का जद-यू आखिर कब तक मोदी सरकार का समर्थन करते रहेंगे? वे दोनों दल आंध्र प्रदेश और बिहार में भाजपा गठबंधन में हैं। आंध्र के नए जनादेश में प्रधानमंत्री मोदी के आह्वानों और संबोधनों का भी योगदान है, नतीजतन नायडू 12 जून को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे।

पूरी तरह मोदी और भाजपा के साथ हैं
बेशक नायडू 2019 में विपक्षी गठबंधन का एक हिस्सा थे और नीतीश ने 2023 तक विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' को लामबंद करने की कोशिशें की, लेकिन यह उनका 'राजनीतिक अतीत' था। अब वे पूरी तरह मोदी और भाजपा के साथ हैं। आम चुनाव भी साथ-साथ लड़े हैं। वे परस्पर पूरक हैं, क्योंकि आंध्र और बिहार को केंद्र सरकार से जो आर्थिक मदद चाहिए, वह मोदी सरकार ही दे सकती है। आंध्र पर 3.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज है और उसे अपनी नई राजधानी बनानी है। हालांकि मोदी सरकार के पहले कालखंड के दौरान नायडू की ऐसी ही मांगों के कारण केंद्र से खटपट हुई थी। आज टीडीपी 16 सांसदों के साथ एनडीए की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है और भाजपा की सरकार उसके भरोसे है। हमें नायडू को राजनीतिक शख्सियत के एक और पहलू पर भी ध्यान देना चाहिए कि वह बेहिसाब सियासी मोल-तोल के अभ्यस्त हैं।

आंध्र और बिहार दोनों ही संपन्न राज्य हैं
बहरहाल प्रधानमंत्री मोदी ने अगले दशक के लिए सुशासन, समग्र विकास और आम आदमी की जिंदगी में सुधार के लक्ष्य तय किए हैं, लेकिन कुछ विरोधाभास ऐसे हैं कि सुशासन के लिए जरूरी आर्थिक नीतियां प्रभावित हो सकती हैं। आंध्र-बिहार को विशेष दर्जा, अग्निवीर योजना, मुस्लिम आरक्षण और तुष्टिकरण, जातीय जनगणना, समान नागरिक संहिता आदि आर्थिक मुद्दे नहीं हैं, लेकिन इनके कारण सुशासन, समावेशी, समन्वय की दशा और दिशा जरूर प्रभावित होगी। यदि ये प्रभाव और दबाव प्रधानमंत्री मोदी को महसूस करने पड़ते हैं, तो सरकार और सुशासन के इकबाल पर सवाल उठाए जा सकते हैं। यह वक्ष-प्रश्न देश के सामने है कि ऐसे विरोधाभासी गठबंधन वाली सरकार कब तक चलेगी? आंध्र और बिहार दोनों ही संपन्न राज्य हैं। उन्हें केंद्र सरकार की विशेष आर्थिक मदद की दरकार है।

भाजपा-विरोधी राजनीति के पक्षधर रहे हैं
राज्यों को 'विशेष दर्जा' दिया जाए, यह मुद्दा और मांग दोनों ही राज्यों में प्रबल है। इस संदर्भ में वित्त आयोग और नीति आयोग की अपनी सीमाएं हैं। नायडू और नीतीश की विवशता यह भी है कि उन्हें अनुभव है कि यदि विपक्षी गठबंधन में शामिल हुआ जाए, तो कांग्रेस नेतृत्व की सरकार उन्हें आर्थिक मदद नहीं देगी, बल्कि मध्यावधि चुनाव के आसार ज्यादा बन जाएंगे, लिहाजा दोनों नेता फिलहाल मोदी सरकार के साथ ही रहना चाहते हैं। नायडू और नीतीश जानते हैं कि गठबंधन को लेकर देश उन पर शक कर रहा है, क्योंकि मानसिक तौर पर वे भाजपा-विरोधी राजनीति के पक्षधर रहे हैं, लिहाजा वे आगामी 5 साल भाजपा के साथ गठबंधन में रहने की गारंटी दे रहे हैं। बहरहाल, राजग सरकार के लगातार तीसरे कार्यकाल में भाजपा ने पार्टी, सहयोगी दलों तथा जातीय व क्षेत्रीय समीकरणों को साधने का भरसक प्रयास किया है। जैसे कि महत्वपूर्ण मंत्रालयों को लेकर गठबंधन के साथियों की दावेदारी को लेकर सवाल उठाए जा रहे, उस तरह का कोई टकराव नजर नहीं आया।

पहली बार गठबंधन सरकार का नेतृत्व करेंगे
इसके बावजूद मोदी सरकार के सामने महत्वपूर्ण फैसलों में सर्वसम्मति से निर्णय करने की चुनौती जरूर रहेगी। हालांकि, नेता चुने जाने से पहले नरेंद्र मोदी ने राजग को जैविक गठबंधन के रूप में वर्णित करते हुए अब तक का सबसे मजबूत सत्तारूढ़ गठबंधन बताया है। बहरहाल, नरेंद्र मोदी पहली बार गठबंधन सरकार का नेतृत्व करेंगे। उनके सामने मुख्य सहयोगी गठबंधन चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी और नीतीश कुमार के जनता दल (यू) के साथ तालमेल बनाने की जरूरत होगी। यही वजह है कि 72 सदस्यीय मंत्रिमंडल में गठबंधन दलों के बारह मंत्री बनाए गए हैं। वहीं जातीय समीकरण साधने के लिए 27 ओबीसी, पांच एसटी व अल्पसंख्यक वर्ग से पांच सांसदों को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया।

रुझान अपने राज्य की ओर ज्यादा होगा
कहा जा रहा है कि भाजपा सहयोगियों के प्रति उदार रवैया अपनाएगी। राजग की कोशिश है कि गठबंधन को मजबूत करके इस बार सशक्त होकर उभरे विपक्ष का मुकाबला किया जा सके। इतना तय है कि कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष अग्निपथ, समान नागरिक संहिता, बेरोजगारी व महंगाई जैसे संवेदनशील मुद्दों पर राजग सरकार के लिए कड़ी चुनौती पेश करता रहेगा। वहीं सवाल उठाया जा रहा कि क्या नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली राजग सरकार सहयोगी दलों की आकांक्षाओं के बीच पिछले दो कार्यकाल की गति से काम कर पाएगी? सहयोगी पार्टियों के नेता खास कर दो बड़ी सहयोगी पार्टियों, जनता दल यू और तेलुगू देशम पार्टी की ओर से क्षेत्रीय आकांक्षा को ज्यादा महत्व दिया जाएगा। उनका रुझान अपने राज्य की ओर ज्यादा होगा। वे अपने राज्य के लिए ज्यादा से ज्यादा फंड लेने और विकास के काम करने का प्रयास करेंगे। इससे भी संतुलन प्रभावित होगा।

बदलाव की बात शुरू हो चुकी है
ध्यान रहे तेलुगू देशम पार्टी ने आंध्र प्रदेश के लिए और जनता दल यू ने बिहार के लिए विशेष राज्य के दर्जे की मांग भी की है। अगर विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिलता है तो ये दोनों पार्टियां विशेष पैकेज की मांग करेंगी। यानी मंत्रालय के स्तर पर एक पूर्वाग्रह होगा और समर्थन हासिल करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर विशेष पैकेज देने की जरूरत भी होगी। चुनौती कुछ विवादित मुद्दों या नीतियों को लेकर है। सेना में भर्ती की अग्निवीर योजना भी इसमें शामिल है। इसमें बदलाव की बात शुरू हो चुकी है। प्रधानमंत्री मोदी का आकलन गुजरात के मुख्यमंत्री काल या बहुमत वाले प्रधानमंत्री से नहीं किया जाना चाहिए। अब नया दौर है और मोदी संगठन के माहिर नेता रहे हैं। मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने हैं, लिहाजा वह सत्ता की वर्णमाला बखूबी जानते हैं। मोदी पार्टी संगठन से सरकार में आए हैं और लगातार 23 साल से सत्तारूढ़ हैं। यह अनुभव सामान्य नहीं है। वह बिखरे हुए संगठन को एकजुट करना जानते हैं। फिलहाल एनडीए के सभी घटकों ने उनके नेतृत्व में भरोसा जताया है। पारी की शुरुआत हुई है। उसके साथ-साथ ही विश्लेषण करना चाहिए।
(लेखक चिकित्सक व विश्लेषक है. यह उनके अपने विचार हैं।)

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