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Opinion: केन्द्र सरकार ने किसानों को आत्मनिर्भर बनाने की पहल की है, जिसमें किसानों को घाटे से उबारने के बाबत सरकार ने प्राकृतिक खेती के उत्पादों को बेहतर दाम दिलाने के बाबत बाजार या उपभोक्ता मुहैया कराने की बात की है।

Opinion: चास बार के आम बजट में केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने खेती-किसानी को खास अहमियत दी है। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की सभी पुरानी योजनाओं को बरकरार रखते हुए कृषि-क्षेत्र में तमाम तरह के बदलाव किए हैं। जिसमें खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने के साथ-साथ अगले 2 वर्षों में प्राकृतिक खेती के लिए 1 करोड़ किसानों को प्रोत्साहित करने की योजना है। जिसके तहत केन्द्र सरकार किसानों को धन मुहैया कराएगी।

1 लाख 52 हजार करोड़ रुपये का आवंटन
गौरतलब है कृषि एवं इससे संबद्ध क्षेत्र के लिए 1 लाख 52 हजार करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। खेती के वर्तमान तरीके से निकालकर प्राकृतिक खेती अपनाने पर किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए बजट में मुहैया कराई गई राशि, किसानों को घाटे की खेती से उबारने का क्रांतिकारी कदम कहा जाना चाहिए। यह पहली बार है जब केन्द्र सरकार ने किसानों को आत्मनिर्भर बनाने की पहल की है, जिसमें किसानों को घाटे से उबारने के बाबत सरकार ने प्राकृतिक खेती के उत्पादों को बेहतर दाम दिलाने के बाबत बाजार या उपभोक्ता मुहैया कराने की बात की है। प्राकृतिक खेती में लागत प्रबंधन बेहतर है और उत्पाद महंगे बिकते हैं।

कृषि में पैदा हुए, उत्पाद महंगे बिकते हैं तो किसान की घाटे वाली खेती मुनाफे में आ जाएगी। बजट में किसानों की आय और फसलों की उत्पादकता बढ़ाने के मद्देनजर बागवानी समेत 32 फसलों की 109 सर्वाधिक पैदावार वाली किस्में जारी करने का प्राविधान है, ये फसलें जलवायु अनुकूल होंगी। बजट में किसानों के लिए नये सिरे से जो कदम उठाने के प्राविधान किये जाने की बात की गई है उससे गांवों की तस्वीर बदल सकती है, यदि ईमानदार कोशिश शासन-प्रशासन के जरिए लगातार होती रहे। बजट में कृषि क्षेत्र में सरकारी क्षेत्र के साथ निजी क्षेत्र को आमंत्रित करने की बात की गई है। पर निजी क्षेत्र में निवेश किस जगह पर किया जाएगा? इसे साफ-साफ सरकार को बताना चाहिए।

लगातार कृषि क्षेत्र के लिए बजट में वृद्धि
मोदी सरकार अपने तीसरे शासन काल में लगातार कृषि क्षेत्र के लिए बजट में वृद्धि करता आ रहा है। आंकड़े बताते हैं कि 2013-14 में कृषि का बजट जहां 21933.50 था, जो 2024-25 में बढ़कर 1.52 लाख करोड़ हो गया। आजादी के बाद खेती-किसानी के लिए इतना विशाल बजट पहली बार आवंटित किया गया है। पहली बार प्राकृतिक खेती को अपनाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए धन मुहैया कराने के लिए बजट में विधिवत प्राविधान किया गया है। प्राकृतिक खेती के प्रोत्साहन से जहां जल के दोहन में कमी आएगी वहीं पर खाद्यान्न की शुद्धता, जमीन की उर्वरता शक्ति का संरक्षण, जलवायु को अनुकूल रखने में मदद मिलने का साथ प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन देने से उर्वरकों, बीजों और छिड़काव करने वाले यंत्रों पर दी जाने वाली अरबों रुपये की सब्सिडी की बचत होगी और इससे देश की सेहत सुधारने में मदद मिलेगी।

जाहिर तौर पर प्रदूषित अन्न, फल, सब्जियों और दूध के सेवन से मानसिक और शारीरिक बीमारियां लगातार बढ़ रही हैं। प्राकृतिक खेती से किसानों की आय ही नहीं बढ़ेगी, बल्कि जलवायु परिवर्तन से बढ़ती तमाम तरह की समस्याओं से निजात मिलने लगेगा। आजादी के बाद वैज्ञानिक खेती के नाम पर रसायनिक जहरीली खेती की जाती रही है, जो हमेशा घाटे में ही रही। इसलिए बाजार को समझना और उसके अनुकूल फसल बोने को निश्चित करना ठीक है, लेकिन लागत में कमी करके किसानों का ज्यादा भला किया जा सकता है। गौरतलब है वित्त वर्ष 2022-23 में 1.23 ट्रिलियन भारतीय रुपये से अधिक मूल्य के उर्वरकों का आयात किया गया। इसलिए रसायनिक खेती की उपयोगिता और प्रासंगिकता पर भी गौर करने की जरूरत है।

खेती फायदेमंद और उपयोगी
नाम मात्र की लागत में अधिक उत्पादन और जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने में प्राकृतिक खेती ही सबसे ज्यादा फायदेमंद और उपयोगी है, इस हकीकत को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने से पर्यावरण, खाद्यान्न, भूमि, इंसान की सेहत, पानी की शुद्धता को और बेहतर बनाने में मदद मिलती है। आमतौर पर कृषि व बागवानी में बेहतर उपज लेने और बीमारियों के खात्मा के लिए फसलों में कीटनाशकों का इस्तेमाल जरूरी माना जाता है। लेकिन देशी तरीके से किए जाने वाली खेती और बागवानी ने इस धारणा पर सवाल खड़े कर दिए हैं। ये कीटनाशक बेहतर उपज के लिए या बीमारियों को खत्म करने के लिए भले ही जरूरी माने जा रहे हों, लेकिन इससे कई तरह की जटिलताएं और बीमारियों की वजह बन गई हैं। बजट में प्राकृतिक खेती ओर कदम बढ़ाना कृषि में बदलाव की तरफ कदम है।
अखिलेश आर्येन्दु: (लेखक पर्यावरण संरक्षण से जुड़े चिंतक विश्लेषक हैं. ये उनके अपने विचार हैं।)

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