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Opinion : प्राकृतिक जल स्रोतों के सूखने के कारण वहां जल संकट गंभीर हो रहा है, वहीं इन दिनों आरोप-प्रत्यारोपों और सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई को लेकर देश की राजधानी दिल्ली के जल संकट का मामला भी सुर्खियों में है। गजल स्रोतों के सूखने के कारण लोग पानी की समस्या से जूझते हैं तो कहीं विभिन्न राज्यों के बीच जल बंटवारे को लेकर खींचतान शुरू हो जाती है।

योगेश कुमार गोयल :  एक ओर जहां भीषण गर्मी के कारण देश के अनेक हिस्सों में प्राकृतिक जल स्रोतों के सूखने के कारण वहां जल संकट गंभीर हो रहा है, वहीं इन दिनों आरोप-प्रत्यारोपों और सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई को लेकर देश की राजधानी दिल्ली के जल संकट का मामला भी सुर्खियों में है। गर्मी के मौसम में हर साल की यही कहानी है। कहीं जल स्रोतों के सूखने के कारण लोग पानी की समस्या से जूझते हैं तो कहीं विभिन्न राज्यों के बीच जल बंटवारे को लेकर खींचतान शुरू हो जाती है। तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच कावेरी नदी के जल बंटवारे का मुद्दा समय-समय पर तूल पकड़ता है, वहीं 1966 में हरियाणा के अस्तित्व आने के बाद से ही हरियाणा और पंजाब के बीच भी सतलुज नदी के जल बंटवारे का विवाद गरमाया रहा है। भारत सहित दुनिया के अनेक देश पानी के अभूतपूर्व संकट से जूझ रहे हैं।

एक रिपोर्ट में चौंकाने वाले तथ्य सामने आये
पानी को लेकर कुछ समय पूर्व सामने आई वैश्विक संकट की एक रिपोर्ट में चौंकाने वाला यह तथ्य सामने आया था कि जल संरक्षण के प्रयासों को गति देने के बजाय दुनियाभर में पानी को बेतहाशा बहाया गया है। ऐसे में 'जल है तो कल है' जैसे नारे केवल किताबों तक ही सीमित दिखते हैं। वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट की इस रिपोर्ट में आशंका व्यक्त की गई थी कि यदि पानी नहीं बचाया गया तो दुनियाभर में आने वाले वर्षों में जीडीपी के नुकसान के साथ वैश्विक खाद्य सुरक्षा संकट तक का खतरा बन सकता है। दरअसल पानी न केवल ऊर्जा और कृषि उत्पादन के लिए आवश्यक घटक है बल्कि औद्योगिक उत्पादन भी पूरी तरह से पानी पर ही निर्भर करता है, ऐसे में जल संकट बढ़ने का सीधा सा अर्थ है विकास के पायदान पर तेजी से नीचे गिरना। वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट में चेताते हुए बताया गया था कि दुनिया की करीब एक चौथाई आबादी वाले 25 देशों में जल संकट तेजी से बढ़ रहा है और यदि ऐसा ही चलता रहा तो वर्ष 2050 तक इन देशों की जीडीपी को आधे से ज्यादा नुकसान हो जाएगा। चिंता की बात यह है कि जिन 25 देशों का इस रिपोर्ट में उल्लेख किया गया, उनमें भारत भी सूची में 24वें स्थान पर शामिल था।

बेंगलुरु में पानी के लिए कई दिनों तक हाहाकार मचा रहा
पानी को लेकर वैश्विक संकट की यह रिपोर्ट यह दर्शाने के लिए पर्याप्त है कि जल संरक्षण को लेकर किसी की कोई दूरगामी तैयारी नजर नहीं आती। जल संकट को यदि भारत के ही संदर्भ में देखें तो गहराते जल संकट की भयावहता को इसी से समझा जा सकता है कि इस साल गर्मी की शुरुआत से पहले ही बेंगलुरु में पानी के लिए कई दिनों तक हाहाकार मचा रहा था, जहां स्थिति अब तक सामान्य नहीं हो पाई है। देश में मानसून काल में अरबों-खरबों लीटर पानी व्यर्थ बह जाता है, जबकि दूसरी ओर बारिश के मौसम में अब हर साल कई राज्यों में पानी से भारी तबाही की तस्वीरें लगातार सामने आती रहती हैं, ऐसे में रेन वाटर हार्वेस्टिंग के नियम-कायदे किताबों से निकलकर धरातल पर आते प्रतीत नहीं होते। देश में जल संकट गहराते जाने की प्रमुख वजह है भूमिगत जल का निरंतर घटता स्तर। एक ओर जहां ग्रामीण इलाकों में सिंचाई के लिए भूजल का दोहन हो रहा है तो दूसरी ओर शहरी क्षेत्रों में उद्योगों में बड़े पैमाने पर भूजल का दोहन किया जा रहा है।

बारिश के मौसम में पानी से तबाही की तस्वीरें नजर आने लगती हैं
हमारे यहां स्थिति इतनी विकट है कि गर्मी के मौसम की शुरुआत के साथ ही कई जगहों पर लोगों के बीच पानी को लेकर मारपीट की नौबत आ जाती है, लेकिन बारिश के मौसम में इसी पानी से तबाही की तस्वीरें नजर आने लगती हैं। हालांकि जल शक्ति मंत्रालय के आंकड़ों से यह अवश्य पता चलता है कि देश में भूजल दोहन में विगत पांच वर्षों के मुकाबले कुछ सुधार हुआ है और यह 63 से 60 प्रतिशत के स्तर पर आ गया है, लेकिन पांच वर्षों के अंतराल में भूजल दोहन में महज तीन फीसद की ही कमी आने को संतोषजनक नहीं माना जा सकता। विशेषज्ञों के मुताबिक आगामी 25- 25 वर्षों की जरूरत के लिए नदी जोड़ो योजनाएं तो स्वीकृत की गई हैं, लेकिन इसके साथ ही पुरानी जल संरचनाओं को सहेजने तथा नई विकसित करने की ओर भी विशेष ध्यान देने की जरूरत है। हालांकि तर्क दिया जा सकता है कि देश की बढ़ती आबादी के हिसाब से पानी की जरूरत भी बढ़ती गई है और 1960 के बाद से अभी तक पानी की मांग दोगुनी से भी ज्यादा हो गई है, लेकिन जल संकट की मूल समस्या पानी की मांग का बढ़ना नहीं बल्कि जल संरक्षण की बड़े स्तर पर अनदेखी है। जल शक्ति मंत्रालय की ही रिपोर्ट बताती है कि देश के कुछ राज्यों में अभी भी भूजल का जमकर दोहन हो रहा है, जिनमें राजस्थान, पंजाब, हरियाणा इत्यादि सबसे आगे हैं।

विकासशील देशों में तो यह समस्या ज्यादा ही विकराल
एक ओर पानी के बंटवारे को लेकर विभिन्न राज्यों के बीच आपसी विवाद और दूसरी ओर भूमिगत जल का गिरता स्तर, ये परिस्थितियां देश में जल संकट की समस्या को और विकराल बनाने के लिए काफी हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार इस समय दुनियाभर में करीब 3 बिलियन लोगों के समक्ष पानी की समस्या मुंह बाये खड़ी है और विकासशील देशों में तो यह समस्या ज्यादा ही विकराल हो रही है, जहां करीब 95 फीसदी लोग यह समस्या झेल रहे हैं। पानी की समस्या एशिया में और खासतौर से भारत में तो काफी गंभीर रूप धारण कर रही है। हालांकि पृथ्वी का करीब तीन चौथाई हिस्सा पानी से लबालब है लेकिन धरती पर मौजूद पानी के विशाल स्रोत में से महज एक- डेढ़ फीसदी पानी ही ऐसा है, जिसका उपयोग पेयजल या दैनिक क्रियाकलापों के लिए किया जाना संभव है। विभिन्न अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों के मुताबिक पृथ्वी पर उपलब्ध पानी की कुल मात्रा में से मात्र तीन फीसदी पानी स्वच्छ है और उसमें से भी लगभग दो फीसदी पानी पहाड़ों और ध्रुवों पर बर्फ के रूप में जमा है जबकि बाकी फीसदी पानी का उपयोग ही पेयजल, सिंचाई, कृषि उद्योगों के लिए किया जाता है। शेष पानी खारा होने अथवा अन्य कारणों की वजह से उपयोगी नहीं है।

शहरीकरण ने जलाशयों और छोटी नदियों को निगल लिया
स्पष्ट है कि पानी की हमारी अधिकांश आवश्यकताओं की पूर्ति भूमिगत जल से ही होती है लेकिन इस भूमिगत जल की मात्रा इतनी नहीं है कि इससे ही एक तथा लोगों की आवश्यकताएं पूरी हो सकें। हालांकि पर्यावरण विशेषज्ञों के मुताबिक भूजल के अलावा नदियों, जलाशयों और वर्षा से जितना पानी उपलब्ध है, वह हमारी न केवल वर्तमान बल्कि भविष्य की जरूरतों के लिए भी पर्याप्त है लेकिन बढ़ते शहरीकरण ने जलाशयों और छोटी नदियों को निगल लिया है। ऐसे में प्रभावी रूप से भूजल का दोहन कम करने के साथ-साथ प्राकृतिक जल स्रोतों का संरक्षण जरूरी है। गहराते जल संकट से बचाव का यही एकमात्र रास्ता नजर आता है। बहरहाल, केवल यह समझने से ही काम नहीं चलेगा कि पानी की एक-एक बूंद बेशकीमती है, बल्कि इसे सहेजने के लिए भी देश के हर नागरिक को संजीदा होना पड़ेगा। देश के अलग-अलग हिस्सों में मानसून दस्तक दे चुका है, जो इस महीने के अंत तक उत्तर भारत में भी पहुंच जाएगा। ऐसे में जल संकट की विकराल होती समस्या के मद्देनजर बेहद जरूरी है कि पानी की एक बूंद-बूंद सहेजने के लिए अभी से पूरी तैयारी कर लें।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है, ये उनले अपने विचार है।)

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