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Opinion: भेड़ियों का तांडव बेशक बहराइच में हो, पर भय पूरे भारत में फैल चुका है। घटनास्थल पर मीडिया का जमावड़ा लगा है। अखबारों और टीवी में भेडियों की ही खबरें चल रही हैं। भेड़िये क्यों आदमखोर बने और क्यों इंसानों के खून के प्यासे हुए? ये सवाल चारों ओर गूंज रहा है।

Opinion: भेड़ियों का आतंक एक जिले से दूसरे जिले तक फैलना शुरू हो गया है। भेड़ियों को अब कोई हल्के में नहीं लेगा, क्योंकि उन्होंने अपने खूनी खौफनाक रूप से परिचय करवाया है। उनके इतने खतरनाक मंजरों को पुराने बुजुर्गों ने भी कभी नहीं देखा। बुजुर्ग भेड़ियों से संबंधित गुजरे स्मरण सुनाते हैं कि भेड़िये अक्सर गांव-कूचों में देखे जाते थे, तब इतने हिंसक नहीं होते थे। 

घटनास्थल पर मीडिया का जमावड़ा
मुर्गी या अन्य छोटे-छोटे बेजुबान पशु-पक्षियों पर झपटा मारकर जंगलों में चले जाते थे, लेकिन इंसानों का खून उन्होंने कभी नहीं पिया। अब खून भी पी रहे हैं और मांस का सेवन भी? भेड़ियों का तांडव बेशक बहराइच में हो, पर भय पूरे भारत में फैल चुका है। घटनास्थल पर मीडिया का जमावड़ा लगा है। अखबारों और टीवी में भेडियों की ही खबरें चल रही हैं। भेड़िये क्यों आदमखोर बने और क्यों इंसानों के खून के प्यासे हुए? ये सवाल चारों ओर गूंज रहा है। भेड़िये इंसानों पर बिना वजह हमला नहीं करते, उनका शिकार मुख्यतः गाय, भैंस, कुत्ते या छोटे-बड़े बेजुबान जानवर होते हैं। शेर, बाघ, भेड़िये व अन्य जंगली जानवर आदमखोर तभी बनते हैं जब उन्हें जंगलों में पर्याप्त भोजन नहीं मिल पाता।

सच्चाई एक ये भी है कि ऐसे जानवर जो एक बार इंसानों का मांस खा लेते हैं या रक्त का स्वाद चख लेते हैं, तो वो उसके आदी हो जाते हैं। फिर वह इंसानों के मांस के अलावा कुछ भी खाना पसंद नहीं करते। हो सकता है बहराइच के आदमखोर भेड़िये के साथ भी ऐसा ही हुआ हो, महीनेभर पहले जब उसने एक बच्चे को निवाला बनाया था उसके बाद वह इंसानी मांस का ही आदी हो गया। भेड़ियों को काबू करने की जब प्रशासनिक कोशिशें नाकाम हुई, तो ग्रामीणों ने ईश्वर को याद करना शुरू किया। पूरी-पूरी रातें भगवान का नाप जपने और हनुमान चालीसा पढ़ने में गुजारी, लेकिन दहशत के निशान फिर भी बरकरार रहे।

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जानवर को पकड़ने में अब भी असमर्थ
प्रशासन द्वारा भेड़ियों को नहीं पकड़ने पर स्थानीय लोग ये भी कहने लगे कि हम चांद पर तो पहुंच गए, लेकिन 30-40 किलो वजन के जानवर को पकड़ने में अब भी असमर्थ हैं। सवाल वाजिब है। प्रशासन को ऐसी आलोचना पर गंभीर होना चाहिए। घटनास्थल पर लोगों में भय इस कदर बैठ गया कि उन्होंने कामधंधा करना तक छोड़ा हुआ है। बच्चों को स्कूल भेजना बंद करके उन्हें घरों में कैद कर दिया है। किसानों ने खेतों में जाना भी त्याग दिया। भेड़ियों को पकड़ने के लिए प्रशासन के आला अफसर भी गांवों में तैनात है। डीएफओ से लेकर जिलाधिकारी तक ने भी डेरा डाला हुआ है। उनकी मौजूदगी में भी भेड़िये शिकार करने से नहीं चूक रहे है।

संभावनाएं ऐसी भी जताई गई कि भेड़िया एकाध नहीं, बल्कि कई सारे हैं। बताया ये भी जाने लगा है कि ये भेड़िये हमारे वहां के नहीं है। पड़ोसी देश नेपाल से बहराइच इलाके में घुसे हैं, क्योंकि बहराइच की सीमाएं नेपाल से सटी हुई हैं। हिंसक जानवरों का वहां से आना-जाना लगा रहता है। घटना विचित्र है, इसलिए विज्ञान द्वारा या आधुनिक तकनीकों से इस पहेली को सुलझाने की सख्त जरूरत है। राज्य सरकार को तत्काल प्रभाव से सुनिश्चित करना चाहिए कि भेड़िये का आतंक बहराइच तक ही सीमित रहे, अन्य राज्यों में न फैले? इसके लिए प्रशासन को हर संभव कोशिश करनी चाहिए। क्योंकि जब से इन भेड़ियों के संबंध में दिल दहला देने सूचनाएं फैली हैं देशवासी घबराए हुए हैं। भेड़िये से उत्पन्न दहशत को जल्द से जल्द कम करने की दरकार है, क्योंकि घटना भय समूचे हिंदुस्तान में आग की भांति फैला हुआ है।
भावना सिंह: (लेखिका शिक्षिका हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)

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