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प्रत्येक वर्ष गणेश चतुर्थी के अवसर पर शिव-गौरी के दुलारे पुत्र गणेश जी हम सभी को सुख, समृद्धि और आनंद का आशीष देने पधारते है। यह उत्सव जहां पारिवारिक-सामाजिक प्रेम को बढ़ाने का संदेश देता है तो गजानन का विनायकी रूप स्त्री शक्ति के सम्मान के लिए भी प्रेरित करता है।

Ganesh Chaturthi Special: प्रथम पूज्य श्री गणेश ईश्वरीय अवतार होकर बहुत अपने से लगते हैं। औपचारिकताओं से परे सहज, सरल और मन के करीब। महादेव के प्यारे गजानन के जितने रूप, उतनी ही उनके प्रति आस्था भाव से जुड़ी कहानियां। चमत्कारी शक्तियों और अनगिनत कथाओं के बावजूद आराधना रूप में गजानन से जुड़ा सारा मानवीय भाव-चाव अपनेपन से भरा होता है। 

यही वजह है कि बुद्धि और समृद्धि का आशीर्वाद देने वाले मां गौरी के दुलारे भगवान गणेश की आराधना से जुड़ा गणेश चतुर्थी का उत्सव भी देश के हर हिस्से में अलग ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। कहीं मेहमान बनकर आए बप्पा का परिवार के सदस्य की तरह स्वागत तो कहीं पंडालों में पूजा-अर्चना की भाव भरी रौनक। जितनी धूमधाम से स्वागत, उतनी ही धूम के साथ विदाई। आध्यात्मिक जीवन से जुड़ा यह प्यारा पक्ष ही है कि भक्त बिदा करते हुए गजानन को अधिकार पूर्वक यह कहना नहीं भूलता, अगले बरस जल्दी आना बप्पा। 

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मनमोहक गणपति की छवि
मां पार्वती की गोद में बैठे बाल गणेश का रूप भक्त के चेहरे पर मुस्कुराहट से आता है तो शेर पर सवार हेरंब गणपति, दुर्बलों के रक्षक प्रतीत होते हैं। श्री गणेश को आलौकिक छवि हर रूप में मन मोहती है। कार्य सिद्धि का आशीष और कर्मठता की राह पर चलने, शक्ति और सद्बुद्धि के दाता गणपति का हर रूप विलक्षण है। भगवान गणपति की स्तुति के लिए पढ़े जाने वाले गणेश चालीसा में 'वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन' पंक्ति भी शामिल है। जिसका अर्थ है कि हाथी के सुंद सा मुड़ा हुआ आपकी नाक सुहावनी है, पवित्र है। आपके मस्तक पर तिलक रूपी तीन रेखाएं भी मन को भाती हैं। सचमुच श्रीगणेश का हर रूप बेहद आकर्षक है।

दस दिवसीय गणेश जन्मोत्सव 
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन भगवान गणेश का जन्म हुआ था। लोक मान्यता यह भी है कि दस दिन के लिए अपने भक्तों को आशीर्वाद देने भगवान गणेश धरती पर आते हैं। इसलिए पंडालों में लोग सपरिवार दर्शन के लिए जाते हैं। घर में गणपति स्थापना कर मित्रों और रिश्तेदारी और आस-पड़ोस के लोगों को दर्शन करने को बुलाते हैं। गौरी पुत्र गणेश की प्यारी प्रतिमाएं, सभी का मन मोहती हैं। ईश्वरीय शक्ति से जुड़ने की यह सहजता मन को सुख-संतोष देती है। 

गहराए सामाजिक जुड़ाव
मोदक की मिठास और हंसते-मुस्कुराते अपने-पराए, जाने-अनजाने चेहरे। गणेश उत्सव के दिनों में पूरा समाज एक सूत्र में बंध जाता है। हर कोई समृद्धि, खुशहाली और सुख-शांति की प्रार्थना में रत होता है। पंडाल हो या किसी परिजन का घर, गणपति दर्शन में औपचारिकताएं कम आत्मीयता अधिक होती है। अपने आराध्य की छत्रछाया में इंसानी साथ-स्नेह को जीने के दिन। मूषक की सवारी करते गणपति बच्चों को भी प्रिय लगते हैं तो मोदक का भोग लगाने से खुश होते गजानन बड़ों के जीवन में मिठास भर देते हैं। हर पल तकनीकी स्क्रीन में झांकते लोग इस उत्सव परिवेश में थोड़ा सहज जीवन की ओर मुड़ते हैं। 

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अकेलेपन के इस दौर में मेल-जोल की बढ़ाने बाला यह उत्सव आपसी जुड़ाव का प्यारा पुल बनाता है। ऐसे में गणेश उत्सव के मायने केवल परंपरागत पर्व मानने भर की बात नहीं है। हर कोई अपनी व्यस्तता को भूल मेल-मिलाप के लिए समय निकालने का प्रयास करता है। समझना कठिन नहीं कि इस मेल-जोल की धुरी महिलाएं ही होती हैं। बात पूजा- अर्चना की तैयारियों की हो या लोगों को  निमंत्रण देने की। स्त्रियां उल्लास भरे मन से इस त्योहारी मेल-मिलाप का परिवेश बनाती हैं। जाग्रत, उदार और विवेकशील व्यक्तित्व का आशीष देने वाले बप्पा समझाते हैं कि समाज से जुड़कर रहना भी चेतनामय सोच का ही प्रतीक है।

कार्य सिद्धि का मंगल आशीष देने वाले भगवान गणेश का एक रूप स्त्री शक्ति का संदेश भी देता है। इतना ही नहीं दोनों पत्नियों, रिद्धि-सिद्धि के साथ पूजे जाने वाले गणपति, स्त्रियों के प्रति समानता के भाव को भी पोसते हैं। श्री गणेश का स्त्री रूप विनायकी है। इस सौम्य रूप का विध्नेश्वरी, गणेश जी, गजरूप, गणेशी, गजानंदी, स्त्री गणेश और गजानना जैसे कई नामों से अलग-अलग ग्रंथों में वर्णन किया गया है। इनकी प्रतिमाओं का स्वरूप भी श्रीगणेश के जैसा ही है। हाथी का सिर और धड़ स्त्री का होता है। मान्यता है कि हर पुरुष देवता की शक्तियों में उसके ही समान एक स्त्री दैवीय शक्ति भी होती है। आमतौर पर देवताओं की पत्नियां उनकी स्त्री शक्ति का प्रतीक होती हैं। यह स्त्री शक्ति देवताओं की चेतना में समाहित शक्ति भी हो सकती है। 

रिद्धि-सिध्दि के संग पूजे जाते हैं गणेश
जैसे भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मी तो उनकी शक्ति है ही, उनकी स्त्री शक्ति का नाम योग माया भी है। इसी तरह विनायक की स्त्री शक्ति उनका विनायकी रूप है। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार मां पार्वती के अनुरोध पर जब शिव जी ने अंधक नामक राक्षस का अपने त्रिशूल से वध किया, तब राक्षस के रक्त की हर बूंद राक्षसी अंधका बन गई। उस समय मां पार्वती ने समस्त दैवीय शक्तियों के स्त्री तत्व को आमंत्रित किया। मां गौरी के आवाहन पर हर दैवीय शक्ति के स्त्री रूप ने आकर राक्षस के रक्त को अपने भीतर समा लिया। जिससे अंधका का उत्पन्न होना कम तो हुआ पर अंधका के रक्त को पूरी तरह से खत्म नहीं किया जा सका। तब भगवान गणेश ने अपने स्त्री रूप विनायकी में प्रकट होकर अंधक का सारा रक्त पी लिया। आम जीवनशैली में बहुत सी परेशानियां स्त्रियां ही सुलझाती हैं। अपनों के बिगड़े काम महिलाएं ही सवारती हैं। वे परिजनों को संकट से बचाने में पीछे नहीं रहती हैं।

डॉ. मोनिका शर्मा

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