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आज समाज में प्रेम-करुणा के भाव लुप्त हो रहे हैं। बंधुत्व घटता जा रहा है। ऐसे में हमारे आस-पास रीतापन आएगा ही। खुशियां खो जाएंगी, हम उदासी से घिर जाएंगे। लोग अपने को अकेला, निस्सहाय समझेंगे। ऐसे में प्रभु यीशु के जन्मदिन के रूप में मनाया जाने वाला क्रिसमस का पर्व ना सिर्फ हमें नई आशाओं और उमंगों से भरता है, उनके प्रेम-सद्भाव के संदेश हमें मानवता की राह पर आगे बढ़ने की प्रेरणा भी देते हैं। 

Christmas Festival:  खुशी और आपसी स्नेह से भरे क्रिसमस के त्योहार का इंतजार सभी को रहता है। विदा होते साल में अपनों के साथ स्नेह-प्रेम और प्रकाश के साथ मनाया जाने वाला यह पर्व पूरे समाज को इंसानी भाव और जुड़ाव से जगमग करने का संदेश साथ लेकर आता है। अपनों का साथ इस सेलिब्रेशन को और अहम बना देता है। बंधुत्व और प्रेम-सद्भाव की भावनाओं को पोषित करने वाले प्रभु यीशु को समर्पित प्रार्थना के स्वर हर ओर गूंजते हैं।
 
संवेदनाओं की सीख 
पारिवारिक जीवन हो, हमारा परिवेश या सार्वजनिक स्थलों पर हमारी साझी मौजूदगी हो या फिर काम-काजी दुनिया, करुणा और संवेदना के भाव आज कहीं गुम हो गए हैं। सूखते इमोशंस और रूखा बर्ताव, जिंदगी की कड़वी हकीकत बन गया है। ऐसे में दया-करुणा और प्रेम की सकारात्मकता के लिए प्रभु यीशु के संदेश, संवेदनाओं को पोसते हैं। करुणा और दया के भाव इंसान को सेवाभावी बनाकर दूसरों की पीड़ा समझने की संवेदनाएं जगाते हैं। भविष्य के प्रति सकारात्मकता और वर्तमान को लेकर आभार का भाव मन में भरते हैं। प्रभु यीशु ने कहा है, ‘भला उस आदमी का क्या लाभ, यदि वह पूरी दुनिया पा जाए और अपनी आत्मा को खो दे।’ आज हर ओर सब कुछ पा लेने की भागम-भाग में संवेदनाएं खत्म हो गई हैं। ना तो एक दूजे का दुःख महसूस किया जाता है, ना ही किसी के टूटने-बिखरने की मनःस्थिति समझी जाती है। ऐसे में क्रिसमस के उत्सवीय रंग एक-दूसरे को समझने, शांति और प्रेम के साथ रहने के विचार को बल देते हैं। यीशु ने भी यही कहा, ‘ईश्वर अपने सभी बच्चों से बेहद प्यार करता है। हमें सभी के साथ प्रेम-सम्मान का रिश्ता बनाना चाहिए।’ घर के आंगन से लेकर गिरिजाघरों की जगमगाती सजावट के बीच क्रिसमस का उत्सव, प्रेम-सम्मान की ऐसी ही सकारात्मक उमंगों का संचार करता है। 

Christmas Festival
Christmas Festival

आशाओं में विश्वास
केक, केरोल्स और कैंडीज के साथ मनाया जाने वाला यह उत्सव, उम्मीदों को भी आधार देता है। बहुत से देशों में क्रिसमस के आस-पास छुट्टियां शुरू हो जाती हैं। छुट्टियों के इन दिनों में बच्चे, युवा और बुजुर्ग सभी सेलिब्रेशन के मूड में आ जाते हैं। इससे हंसी-खुशी के परिवेश में साथ रहते हुए, दूसरों की मदद करने और भाईचारे को बनाए रखने की सीख मिलती है। परोपकार की सीख देने वाला यह पर्व आशाओं को मन में जगह देने और पूरा होने के निश्छल विश्वास की भी सीख देता है। सैंटा के आने और उपहार दे जाने में बच्चे ही नहीं, बड़े भी एक विश्वास का भाव महसूस करते हैं। देवदूत के काल्पनिक अवतार के रूप में उपहार लेकर सैंटा क्लॉज का आना, फेस्टिव उमंगों का सबसे सुंदर हिस्सा है। सवालों से परे भरोसे को पोसता यह मानवीय आस्था का बहुत ही प्यारा भाव है, जो असल जिंदगी में भी बेहतरी की उम्मीदों को बल देता है। स्वयं को हर हाल में थाम लेने की शक्ति देता है। स्वयं अपने जीवन और समाज में सुख, शांति और समृद्धि के लिए विश्वास का यह भाव बेहद आवश्यक है। यीशु का यह सुंदर संदेश सदैव स्मरणीय है, ‘जीवन को बहुमूल्य समझो और स्वयं पर विश्वास करो।’

यूनिवर्सल सेलिब्रेशन 
क्रिसमस का त्योहार एकता, खुशी और आशा के यूनिवर्सल मनोभाव पैदा करता है। मान्यता है कि इस दिन मदर मैरी के घर ईसा मसीह का जन्म हुआ था। प्रभु यीशु ने कम आयु में ही मानवता, आपसी मेल-मिलाप और सामाजिक सौहार्द को बनाए रखने के लिए समग्र संसार को प्रेरणा दी। मानवीय मूल्यों को बचाने वाले ईसा मसीह के संदेशों में दयालुता, क्षमा, दूसरों का भला करने की सोच और सभी का सम्मान करने का भाव शामिल है। आज जब पूरी दुनिया में अस्थिरता छाई है, उनकी बातों का अनुसरण शांति और सद्भाव की राह सुझाने वाला है। एक-दूजे से उलझते पड़ोसी देश हों या समाज में फैलती नकारात्मकता, प्रभु यीशु का यह विचार ‘जैसा व्यवहार तुम लोगों से चाहते हो, वैसा व्यवहार उनसे करो।’ सभी उलझनों का यह हल है। ऐसे में क्रिसमस यानी प्रभु यीशु का जन्मदिन, दुनिया के हर इंसान को सत्य, निष्ठा, करुणा और सह-अस्तित्व की राह पर चलने की प्रेरणा देने वाला एक विशेष दिन है।  

डॉ. मोनिका शर्मा

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