Mahalakshmi Vrat katha: (आकांक्षा तिवारी) महालक्ष्मी व्रत भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से शुरू होता है। जिसका समापन आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को होता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। इस बार यह व्रत 11 सितंबर से शुरू होकर 24 सितंबर को खत्म होगा। इस दिन पूजा-अर्चना के साथ-साथ व्रत कथा भी पढ़नी चाहिए। आइये जानते हैं महालक्ष्मी व्रत कथा।
महालक्ष्मी व्रत कथा
बहुत समय पहले की बात है, एक गांव में एक ब्राह्मण रहता था। ब्राह्मण प्रतिदिन नियमानुसार भगवान विष्णु की पूजा करता था। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु उसके सामने प्रकट हुए और उसे उसकी इच्छा के अनुसार वरदान देने का वचन दिया।
ब्राह्मण ने इस दौरान भगवान से अपने घर में माता लक्ष्मी का वास होने का वरदान मांगा। भगवान विष्णु ने इस दौरान ब्राह्मण से कहा कि मंदिर में प्रतिदिन एक स्त्री आती है वह कोई और नहीं बल्कि मां लक्ष्मी हैं। वह यहां गाय के गोबर से उपले बनाती हैं। तुम उन्हें अपने घर में आमंत्रित करो। देवी लक्ष्मी के चरण तुम्हारे घर में पड़ने से तुम्हारा घर धन-धान्य से भर जाएगा।
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इतना कहकर भगवान विष्णु अदृश्य हो गए। अब अगले दिन सुबह से ही ब्राह्मण मंदिर के सामने बैठकर माता लक्ष्मी का इंतजार करने लगा। जब उसने लक्ष्मी जी को गोबर के उपले थापते हुये देखा, तो उसने उन्हे अपने घर पधारने का आग्रह किया। ब्राह्मण की बात सुनकर मां लक्ष्मी जी समझ गईं कि यह बात विष्णु जी ने ही ब्राह्मण से कही है।
मां लक्ष्मी ने ब्राह्मण को महालक्ष्मी व्रत करने की सलाह दी। लक्ष्मी जी ने ब्राह्मण से कहा कि तुम 16 दिनों तक महालक्ष्मी व्रत करो और व्रत के आखिरी दिन चंद्रमा की पूजा करके अर्ध्य देने से तुम्हारा व्रत पूरा हो जाएगा। ब्राह्मण ने भी महालक्ष्मी के कहे अनुसार व्रत किया और देवी लक्ष्मी ने भी उसकी मनोकामना पूर्ण की। उस दिन से यह व्रत श्रद्धापूर्वक मनाया जाता है।