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Neem Karoli Baba Gufa Rahasya: गांव में महाराज ने लंबे समय तक प्रवास किया और इसी दौरान जमीन से नीचे एक गुफा में तप किया था। करीब 30 वर्ष बाद गांव में एक खेत के नीचे नीम करोली बाबा की गुफा मिली, जिसका सालों तक महज अनुमान ही था। गुफा प्रकृति प्रकोपों से सुरक्षित थी।

Neem Karoli Baba Chamatkar: 20वीं सदी के महान संत रहे नीम करोली बाबा की ख्याति जनमानस में फैली हुई है। आज भले ही वह शारीरिक तौर पर हमारे बीच में मौजूद नहीं हैं, लेकिन उनके उपदेश संसार को सही राह दिखाने का काम कर रहे है। उत्तराखंड के कैंचीधाम में बाबा नीम करोली का आश्रम है, जहां देश-दुनिया से भक्त उनके समाधि स्थल पर दर्शन करने पहुँचते है। डॉ. जया प्रसाद पेंगुइन ने अपनी किताब ‘श्री सिद्धि मां’ में बहुत कुछ लिखा है। 

डॉ. जया प्रसाद पेंगुइन किताब में लिखती है कि, उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले में स्थित एक छोटा सा गांव है 'नीम करोली।' इस गांव को नीम करोली बाबा की वजह से आज दुनियाभर में जाना जाता है। इसी गांव में महाराज ने लंबे समय तक प्रवास किया और इसी दौरान जमीन से नीचे एक गुफा में तप किया था। करीब 30 वर्ष बाद गांव में एक खेत के नीचे नीम करोली बाबा की गुफा मिली, जिसका सालों तक महज अनुमान ही था। गुफा प्रकृति प्रकोपों से सुरक्षित थी। 

जया प्रसाद लिखती हैं कि, गुफा से कई वर्षों बाद भी हवन सामग्री की दिव्य सुगंध आ रही थी। जब गुफा को थोड़ा और गहराई में जाकर देखा गया, तो वह दो हिस्सों में विभाजित थी। गुफा के भीतरी हिस्से में कोयले के कुछ टुकड़े और हवन की विभूति दिखाई थी, जिससे स्पष्ट हुआ कि नीम करोली बाबा उस जगह पर अपनी साधना एवं आध्यात्मिक अनुष्ठान किया करते थे। यही नहीं, इस गुफा से लोहे के दो कंडे, दो मिट्टी के गोले और एक लोहे का चिमटा भी मिला। 

किताब में लेखिका ने बताया कि, चिमटे पर बाबा लक्षमन दास खुदा हुआ था। लेखिका बुजुर्ग ग्रामीण के हवाले से बताती है कि, नीम करोली बाबा ने उसे एक चिमटा दिया था और उसे सुरक्षित रखने को कहा। लेकिन महाराज जी वापस नहीं लौटे और  1973 में महासमाधि में चले गए। बुजुर्ग के अनुसार, महाराज जी ने उसके स्वप्न में आकर एक वृद्ध मां का संकेत देकर उन्हें चिमटा देने को कहा। उसने वो चिमटा वृद्ध मां को दे दिया, जो उसे लेकर कैंची धाम लौट गई। 

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