Seemanchal Muslim appeasement: बिहार के सीमांचल क्षेत्र में मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति हाल के वर्षों में चर्चा का विषय बन गई है। किशनगंज, अररिया, कटिहार और पूर्णिया जैसे जिलों में मुस्लिम आबादी में भारी वृद्धि देखी गई है। आलोचकों का मानना है कि यह बदलाव न केवल अवैध बांग्लादेशी घुसपैठ के कारण हो रहा है, बल्कि क्षेत्र की सामाजिक और राजनीतिक स्थिरता को भी खतरे में डाल रहा है।
तुष्टिकरण की राजनीति और उसका प्रभाव
राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और अन्य दल मुस्लिम बहुल सीटों पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए तुष्टिकरण की राजनीति पर निर्भर हैं। राबड़ी देवी द्वारा इस्लामी अनुष्ठानों का आयोजन और कुछ स्कूलों में शुक्रवार की छुट्टियों की घोषणा जैसे कदम, इन पार्टियों की मुस्लिम समुदाय के प्रति झुकाव को स्पष्ट करते हैं। हालांकि, ऐसे कदम अन्य समुदायों के साथ विभाजन को बढ़ावा दे सकते हैं।
बिहार के मुस्लिमों की चर्चा पाकिस्तान में
इतिहासकारों के अनुसार, बंटवारे और बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान बिहार के मुस्लिम समुदाय की भूमिका पर सवाल उठते रहे हैं। सिंध विधानसभा के एक सदस्य की हालिया टिप्पणियों ने इन दावों की पुष्टि की है, जिसमें पाकिस्तान के निर्माण में बिहार मूल के मुसलमानों के योगदान पर प्रकाश डाला गया है।
Syed Ejaz Ul Haque, a Member of the Provincial Assembly (MPA) from Sindh, Pakistan, recently made a controversial statement declaring, "We Bihari Muslims proudly contributed to the division of Bharat to create Pakistan."
— Radical Watch (@RadicalWatchOrg) December 19, 2024
This remark holds no water as it is framed entirely… pic.twitter.com/ta9X1HzCVt
सीमांचल क्षेत्र में बढ़ती मुस्लिम आबादी और तुष्टिकरण की राजनीति के कारण, यह क्षेत्र देश की एकता और आंतरिक सुरक्षा के लिए संवेदनशील बन गया है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, सीमांचल क्षेत्र के कई जिलों में मुसलमानों की आबादी 40-70% है, जिसमें किशनगंज में सबसे अधिक आबादी है। इस बदलाव ने आरजेडी, कांग्रेस और एआईएमआईएम को इस क्षेत्र में प्रभुत्व के लिए प्रतिस्पर्धा करने के लिए प्रेरित किया है, जो मुस्लिम बहुल निर्वाचन क्षेत्रों पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं।
राष्ट्रीय एकता के लिए क्या है रास्ता?
तुष्टिकरण की राजनीति ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) जैसे सुधारों का भी विरोध किया है, जो धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए लाया गया था। आलोचक चेतावनी देते हैं कि अगर सीमांचल में बढ़ते सांप्रदायिक असंतुलन पर ध्यान नहीं दिया गया, तो यह क्षेत्र भारत की संप्रभुता के लिए चुनौती बन सकता है।