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बस्तर में मुठभेड़ भी आम बात है और उसपर उठने वाले सवाल भी। लेकिन मुडवेंदी में मुठभेड़ के दौरान बच्ची की मौत के बाद गांव में सन्नाटा पसरा हुआ है। बच्ची के माता-पिता को मुआवजा नहीं, बेटी के बदले बेटी चाहिए...

मुडवेंदी से लौटकर गणेश मिश्रा- बीजापुर। मैं घर में चारपाई पर बैठकर अपनी बेटी को दूध पिला रही थी। तभी घर की दूसरी ओर से शाम को करीब 4 बजे जवानों की ओर से फायरिंग शुरू हो गई। इसी फायरिंग की जद में आकर गोली लगने से मेरी बेटी की मौत हो गई और मैं घायल हो गई...

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 कैमरे पर अपनी आप बीती सुना रही यह महिला मासे सोढ़ी है। उसकी छह माह की मासूम संतान की 1 जनवरी की शाम पुलिस-नक्सली गोलीबारी के बीच मौत हो गई। घटना में मासे के हाथ में गोली लगी है और उसका उपचार जारी है।

साल 2024 का पहला ही दिन मुतवेण्डी गांव के रहने वाले बामन और मासे दंपत्ति के के जीवन का काला अध्याय साबित हुआ। इस दिन को वो जीते जी कभी भुला नहीं सकते। गंगालूर थाना क्षेत्र अंतर्गत मुतवेण्डी गांव जहां सुरक्षा के साए में सड़क बन रही है। एक जनवरी की शाम इसी गांव में बंदूक से निकली एक गोली ने छह माह की एक मासूम से उसकी जिंदगी छीन ली। घटना के फौरन बाद पुलिस की तरफ से दावा किया गया कि नक्सलियों से मुठभेड़ के दौरान क्रॉस फायरिंग में गोली मासूम को लगी। गोली भी नक्सलियों की तरफ से दागी गई थी। पुलिस के इस बयान को चंद घंटे हुए थे कि, नक्सलियों की तरफ से बयान आता है, जिसमें बच्ची की मौत के लिए नक्सल संगठन पुलिस को कसूरवार ठहराते हुए पुलिसिया दावे का खंडन करता है। जिस इलाके में यह घटना घटी वहां हालात खंदक जैसे हैं। समूचा इलाका नक्सलियों के प्रभाव में है, जहां सुरक्षा के सख्त पहरे में विकास का खाका खींचने की तैयारी है।

मीडिया के पहुंचने पर अघोषित पाबंदी

आखिर किसकी गोली से छह माह की मासूम की मौत हुई? पुलिस और नक्सलियों के दावों का आखिर सच क्या है ? इन्हीं सवालों का जबाव तलाशन हरिभूमि डाट काम के लिए हमारे संवाददाता गणेश मिश्रा ने घटना के अगले ही दिन मुतवेण्डी गांव का रूख किया। गंगालूर से बुरजी होकर मुतवेण्डी पहुंचा जा सकता है, क्योंकि यहां तक सुरक्षा के सख्त पहरे में कच्ची सड़क पहुंच चुकी है। लेकिन मीडिया के पहुंचने पर अघोषित पाबंदी होने से एड़समेटा गांव के रास्ते पहाड़ियों, पहाड़ी नालों को लांघकर मुतवेण्डी के सफर पर निकले।

रास्ते में हुई मृत बच्ची के पिता से मुलाकात

पड़ाव में जंगल-पहाड़ी नालों और पहाड़ियों को दुपहिया के सहारे पार करने की चुनौती सीना ताने खड़ी थी। करीब दो घंटे से ज्यादा थकान भरे सफर को पूरा कर देर शाम हम पहुंच चुके थे हिरुमगुंडा गांव। पहले ही पड़ाव में यहां हमारी मुलाकात मृत मासूम के पिता बामन से हुई, जो बीजापुर तक पहुंचे नहीं थे और वापस अपने गांव मुतवेण्डी लौट रहे थे। बामन से हमारी बातचीत यहीं हुई। उसने जो देखा कैमरे पर कह दिया और अपने गांव की ओर बढ़ गया।

बच्ची को खोने वाले पिता ने क्या बताया

बामन को हिंदी नहीं आती। उसने पूरी बात गोंडी बोली में कही। जानकारों की मदद से हिंदी अनुवाद इस तरह है- जवानों द्वारा कहा गया था कि, सड़क निर्माण किया जाना है। इसलिए सड़क निर्माण की साइट पर आकर ये बता दें कि आपकी जमीन कौन सी है और कहीं पेड़ पौधे तो सड़क की जद में तो नहीं आ रहे। इसलिए हम सब उसी तरफ जा रहे थे, तभी फायरिंग शुरू हो गई, वही पास ही स्थित मकान में मेरी पत्नी छह माह की बेटी को दूध पिला रही थी। तभी गोली आकर पत्नी की हाथ को घायल करते हुए बेटी को जा लगी, जिससे घटनास्थल पर ही उसकी मौत हो गई। अब मुझे मुआवजा नहीं बल्कि बेटी के बदले बेटी चाहिए।

दूसरे दिन पहुंचे घटनास्थल

अंधेरा होने की वजह से हम मुतवेण्डी तक पहुंच नहीं पाए। इसलिए रात हिरुमगुंडा में बितानी पड़ी। अगली ही सुबह पुनः मोटरसाइकिल पर सवार होकर मुतवेण्डी के लिए रवाना हुए। ग्रामीणों के कहे अनुसार आधे घंटे जंगल-पहाड़ियों पर सफर कर हम मुतवेण्डी पहुंचे। गांव में घुसने के बाद कुछ घरों के बाहर केवल बच्चे खेलते-कूदते नजर आए। बाकी पूरे गांव में सन्नाटा पसरा हुआ था। ग्रामीणों की मदद से हम बामन के घर पहुंचे। पता चला कि, यह उसका नहीं बल्कि बड़े भाई का घर है। लेकिन गोलीबारी के वक्त मासे अपने दुंधमुंहे बच्चे के साथ यहीं मौजूद थी। घटना के वक्त मासे आंगन में चारपाई पर बैठी अपनी दुंधमूही बच्ची को स्तनपान करा रही थी। 

सुरक्षा घेरे में अंतिम संस्कार

इस बीच मृत बच्ची के अंतिम संस्कार की खबर मिली। घटनास्थल से कुछ दूरी पर सुरक्षा के बीच बच्ची का अंतिम संस्कार किया गया। इस दौरान जरूरी मजिस्ट्रयल प्रक्रिया भी पूरी की गई। मीडिया वहां पहुंचती, इसके पहले ही जवानों ने रोक लिया। कुछ देर बाद मृत बच्ची की मां मासे और ग्रामीण लौटे। मासे से हमारी बातचीत हुई। गोंडी में बोलते मासे ने घटना दोहरा दी।

एसपी ने किया ये दावा

मौके पर बीजापुर एसपी आंजनेय वार्ष्णेय मौजूद थे। परिजनों के कथन और पुलिस के दावों और नक्सलियों के खंडन को लेकर उनका कहना था कि बच्ची की मौत नक्सलियों की गोली से हुई। एसपी के मुताबिक एक जनवरी को जवान इलाके में एरिया डॉमिनेशन पर थे। इस दौरान नक्सलियों की तरफ से ब्लास्ट किया गया। जवानों ने पोजिशन लिया। नक्सली फायर करते भाग रहे थे, इसी दौरान नक्सलियों की फायर में एक गोली बच्ची को लगी।

निरुत्तर रह गया सवाल

दो दिन एक रात और चुनौतीपूर्ण सफर के बावजूद मुतवेण्डी में घटी घटना, परिजनों के आरोप और पुलिस-नक्सली दावों पर अब भी सवालों के धुंध छाए हुए हैं। सवालों के जबाव भले ना मिल रहे हों लेकिन इस घटना ने एक मां की गोद सूनी कर दी। पिता की आंखों में आंसू उसके जख्म को बया कर रहे हैं। सवाल तो अब भी यही कि, आखिर किसकी गोली से किसका अंत हुआ।

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