रायपुर। थोड़ी परेशानी अथवा नाकामी होने पर लोगों में जल्दी निराशा के भाव उत्पन्न हो रहे हैं और वे आत्मघाती कदम उठा रहे हैं। आंकड़े चौंकाने वाले हो सकते हैं कि एक जून से 31 जुलाई के बीच आंबेडकर अस्पताल के इमरजेंसी विभाग में 146 लोग जहर खाकर पहुंचे और इलाज के दौरान 21 लोगों की जान नहीं बचायी जा सकी। विशेषज्ञों का तर्क है कि लोगों की सहनशक्ति कम हो चुकी और सफलता नहीं मिलने पर वे पैनिक होकर इस तरह के कदम उठा रहे हैं। जहर खुरानी से संबंधित यह प्रकरण केवल एक अस्पताल से संबंधित है।
राज्य के अन्य मेडिकलकॉलेज , जिला और निजी अस्पताल के साथ अन्य हेल्थ सेंटर में भी आने वाले मामलों को अगर जोड़ा जाए, तो आंकड़ा बड़ा हो सकता है। मनोरोग से संबंधित विशेषज्ञों का तर्क है कि जहर खुरानी की घटनाओं में पांच प्रतिशत से भी कम केस एक्सीडेंटल होते हैं। ज्यादातर प्रकरण सुसाइडल अटैंप्ट के होते हैं। जब कोई शख्स विभिन्न कारणों से हताश हो जाता है और उसे ऐसा प्रतीत होने लगता है कि परिवार और समाज में उसे महत्व नहीं दिया जा रहा है, तो वह आत्मघाती कदम उठाता है। आंबेडकर अस्पताल में पहुंचे 50 फीसदी केस पारिवारिक विवाद से संबंधित हैं। घर में किसी बात पर पति-पत्नी अथवा अन्य रिश्तेदारों से होने वाले झगड़े के बाद आपा खोकर जहरीली वस्तु का सेवन आत्महत्या के लिए करते हैं।
अवसाद बन रहा बड़ी वजह
मनोस्वास्थ्य विशेषज्ञ डीएस परिहार के मुताबिक, जहर खुरानी के ज्यादातर मामले आत्महत्या की कोशिश से जुड़े होते हैं। इसकी प्रमुख वजह अवसाद है, जो कई कारणों से होता है। किसी भी मामले में मिलने वाली नाकामी के बाद लोगों को महसूस होता है कि उन्हें तवज्जो नहीं दिया जा रहा है, तो वे इस तरह का कदम उठाते हैं। आसपास के रहने वालों के स्वभाव में किसी तरह का बदलाव नजर आता है, तो उनसे इसका कारण जानकर समस्या का समाधान करना चाहिए।
मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना जरूरी
आंबेडकर अस्पताल के सीएमओ डॉ. विनय वर्मा के अनुसार, बदलते समय में मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना जरूरी है। बच्चों को बचपन से ही जीवन के संघर्षों के लिए तैयार करने की आवश्यकता है। अपनी परेशानियों के बारे में अगर दूसरे से चर्चा की जाए तो उसका समाधान मिल सकता है। अस्पताल में जहर खुरानी के मामले अक्सर पहुंचते हैं, जिन्हें त्वरित इलाज उपलब्ध कराया जाता है।