राजनांदगाव। छत्तीसगढ़ के राजनांदगाव जिले के डोंगरगढ़ में विश्व प्रसिद्ध जैन मुनि आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने 18 फरवरी को रात ढाई बजे अंतिम सांस ली थी। वे पिछले कई दिनों से अस्वस्थ चल रहे थे। लगभग छह महीने से डोंगरगढ़ के चंद्रगिरी में रुके हुए थे। तीन दिन तक उपवास करने के बाद उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया था।
आचार्य श्री की विनयांजलि सभा रविवार को राजनांदगाव के सकल जैन संघ द्वारा दिगंबर जैन मंदिर के सामने गंज लाइन में शाम 7 बजे आयोजित की गई है। उसके बाद आचार्य की भक्ति जाएगी। जैन समाज के सूर्यकांत जैन ने जानकारी देते हुए बताया कि, आचार्य श्री 36 मूल गुणों के धारी ने छत्तीसगढ़ की धरा पर अपने सारगर्भित जीवन से मृत्यु को महोत्सव बनाने का उत्कृष्ट संदेश देते हुए, रत्नत्रय का पालन करते हुए, यम संलेखना समतापूर्वक धारण की और तीन दिनों के उपवास उपरांत अरिहंत भगवान का स्मरण करते हुए ओम शब्द के उच्चारण के साथ ब्रह्मलीन हुए।
भजन के बाद इंडिया नहीं भारत बोलो का नारा होगा बुलंद
उन्होंने आगे कहा कि, आचार्य श्री ने समस्त मानव समाज के लिए धर्म प्रभावना की वहीं राष्ट्र हित में इंडिया नहीं भारत बोलो का नारा भी बुलंद किया जायेगा। उन्होंने भारत की शिक्षा के स्तर को उत्कृष्ट एवं संस्कारित करने के लिए प्रतिभास्थली ज्ञानोदय विद्यापीठ की स्थापना की तो देश को आत्मनिर्भर और अहिंसक रोजगार की दिशा में पहल करने के लिए चल चरखा के माध्यम से कई हथकरघा का आशीर्वाद भी दिया। सैकड़ो गौशाला आचार्य श्री के आशीर्वाद से संचालित हो रही है। उन्होंने समाज सुधार के लिए तिहाड़ जेल में भी जैन धर्म की अलख जगाते हुए ब्रह्मचारिणी दीदियों के माध्यम से हथकरघा संचालित कर अपना आशीष प्रदान किया। आचार्य श्री द्वारा रचित मुकमाटी जैसी अलौकिक पुस्तक लिखी जिसपर ढाई सौ लोगों से भी अधिक लोगों ने पीएचडी की और पूरे विश्व को अहिंसक और आत्मज्ञान के लिए प्रेरित होने का आशीष प्रदान किया। आज शारीरिक रूप से वह हमारे साथ नहीं है लेकिन उनके विचारों की उत्कृष्ट श्रृंखलाओं में से किसी एक का भी अनुसरण हमारे जीवन को मोक्ष मार्ग की ओर प्रशस्त करने के लिए प्रभावी होगा।
18 फरवरी को आचार्य श्री ने ली थी समाधि
सूर्यकांत जैन ने आगे बताया कि, आचार्य श्री जी ने अपनी संलेखना के पूर्व निर्यापक मुनि श्री 108 योग सागर जी महाराज एवं अन्य मुनियों के समक्ष आगामी आचार्य पद हेतु आचार्य गुरुवर विद्यासागर महाराज के प्रथम शिष्य निर्यापक मुनि 108 समय सागर जी महाराज को योग्य मानते हुए आगामी आचार्य पद देने का अंतिम आदेश दिया। 22 फरवरी को बालाघाट से पैदल विहार करते हुए मुनि समय सागर जी महाराज ससंघ चंद्रगिरी पहुंचे उन्होंने आचार्य भगवान को विनियांजलि देने के लिए पूरे भारत में एक ही दिन एक साथ 25 फरवरी दिन रविवार को विनयांजलि देने का निर्देश भारत के सभी जैन समाज एवं आचार्य भगवन विद्यासागर जी महा मुनिराज के अनुयायियों को दिया। गुरुवर के प्रति कृतज्ञता एवं विनयांजलि व्यक्त करने के लिए सकल जैन समाज के अध्यक्ष मनोज बैद, दिगंबर जैन समाज के अध्यक्ष अशोक झांझरी, सचिव रविकांत जैन ने समस्त जैन समाज एवम् सभी समाज के अनुयायियों एवं शहरवासियों को विनम्र आग्रह पूर्वक आमंत्रित किया है।