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बस्तर के वनांचल में बड़े पैमाने पर कुसुम के पेड़ हैं। ये पेड़ लाख लाख के कीड़े पालने के लिए सर्वोत्तम माने जाते हैं। इसे अपनाकर यहां के किसान जल्द ही समृद्धि की ओर अग्रसर हो रहे हैं।

महेंद्र विश्वकर्मा-  जगदलपुर। जंगलों में जनजातीय समुदायों के लिए लाख की खेती अब महज आजीविका चलाने का जरिया नहीं बल्कि उनकी जिंदगी में समृद्धि का सूचक है। छत्तीसगढ़ देश का सबसे बड़ा लाख उत्पादन राज्य है, यहां देश के लाख उत्पादन का 42 फीसदी हिस्सा है। जंगल से जुड़े क्षेत्र के किसानों में लाख की खेती तेजी से लोकप्रिय हो रही है। वजह है प्राकृतिक रूप से बहुतायत में पाए जाने वाले कुसुम के पेड़। इन्हीं पेड़ों पर लाख यहां के आदिवासी लाख का उत्पादन कर रहे हैं। 

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आदिवासी  किसान

लाख के कीड़े पलास, कुसुम और बेर के पेड़ों पर पाले जाते हैं। जिनकी शाखाओं से रस चूसकर भोजन प्राप्त करते हैं। अपनी सुरक्षा के लिए राल का स्राव कर कवच बना लेते हैं। यही लाख होता है, जिसे काटी गई टहनियों से खुरच कर निकाला जाता है। लाख का इस्तेमाल मुख्यत: श्रृंगार की वस्तुओं, सील, चपड़ा, विद्युत कुचालक, वार्निश, फलों एवं दवा पर कोटिंग, पॉलिश, सजावट की वस्तुएं तैयार करने में किया जाता है। 

बच्चों को अधिकारी बनाने की इच्छा

बस्तर जिले के मावलीपदर निवासी मंगलराम एवं रामेश्वर ने बताया कि, वह लाख का उत्पादन कर रहा है, जिससे उसकी आर्थिक स्थिति मजबूत हो रही है। हालांकि 10 किलो लगाकर लगभग 600 किलो उत्पादन हुआ। उसने बताया कि वह पढ़ाई नहीं कर सका पर अब बच्चों को पढ़ा लिखा कर अधिकारी बनाने की इच्छा है। 

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सीसीएफ आरसी दुग्गा

आर्थिक व सामाजिक बदलाव आया

वन विभाग जगदलपुर वृत्त के सीसीएफ आरसी दुग्गा ने बताया कि, लाख उत्पादन का निरीक्षण मावलीपदर में किया। उन्होंने बताया कि लाख उत्पादन से ग्रामीणों की जिंदगी में आर्थिक, सामाजिक बदलाव आया है, इससे कई किसान जुड़े हुए हैं। प्रत्येक रेंज में नियद नेल्ला नार के गांव के 10-10 किसानों को भ्रमण कराने का निर्देश दिया।

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