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हाईकोर्ट ने नगरीय निकायों के वार्ड परिसीमन पर रोक लगा दी। हाईकोर्ट ने राज्य शासन से पूछा है कि वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर अभी निकायों का क्यों परिसीमन किया जा रहा है?

बिलासपुर। हाईकोर्ट ने नगरीय निकायों के वार्ड परिसीमन पर रोक लगा दी है। हाईकोर्ट ने राज्य शासन से पूछा है कि वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर अभी निकायों का क्यों परिसीमन किया जा रहा है? प्रदेश में नगरीय निकायों के परिसीमन पश्चात दावा-आपत्ति का काम चल रहा है, किन्तु कोर्ट के आदेश बाद पूरी प्रक्रिया पर रोक लग गई है। 

हाईकोर्ट में राजनांदगांव नगर निगम, कुम्हारी नगर पालिका व बेमेतरा नगर पंचायत में वार्डो के परिसीमन को चुनौती दी गई थी। तीनों याचिकाओं की प्रकृति समान थी, इसलिए हाईकोर्ट ने तीनों याचिकाओं को एकसाथ मर्ज करते हुए साथ-साथ सुनवाई प्रारंभ की। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि राज्य सरकार ने प्रदेशभर के नगरीय निकायों के वार्ड परिसीमन के लिए जो आधार माना है। इसी आधार पर परिसीमन का कार्य करने कहा गया है। याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ताओं का कहना था कि वार्ड परिसीमन के लिए बनाए गए नियमों के अनुसार अंतिम जनगणना को आधार माना गया है। राज्य सरकार ने अपने सर्कुलर में भी परिसीमन के लिए अंतिम जनगणना को आधार माना है। अधिवक्ताओं का कहना था कि राज्य सरकार ने इसके पहले वर्ष 2014 व 2019 में भी वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर परिसीमन का कार्य किया है। जब आधार एक ही है तो इस बार क्यों परिसीमन का कार्य किया जा रहा है।

सरकार के तर्कों से जताई असहमति 

इस मामले की सुनवाई जस्टिस पीपी साहू के सिंगल बेंच में हुई। कोर्ट के सवालों का जवाब देते हुए महाधिवक्ता कार्यालय के लॉ अफसरों ने कहा कि परिसीमन मतदाता सूची के आधार पर नहीं जनगणना को ही आधार मानकर किया जा रहा है। परिसीमन से वार्डों का क्षेत्र व नक्शा बदल जाएगा। लॉ अफसरों के तों से कोर्ट ने असहमति जताई और पूछा कि वर्ष 2011 की जनगणना को आज के परिप्रेक्ष्य में आदर्श कैसे मानेंगे। दो बार परिसीमन कर लिया गया है तो तीसरी बार क्यों। मौजूदा दौर में परिसीमन कराने का कोई कारण नहीं बनता और न ही कोई औचित्य है। कोर्ट ने आपत्तियों के निराकरण और अधिसूचना जारी करने पर रोक लगा दी है। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ महाधिवक्ता व पूर्व एजी सतीशचंद्र वर्मा, अमृतो दास, रोशन अग्रवाल तथा राज्य की ओर से उप महाधिवक्ता प्रवीण दास व निनय पांडेय एवं नगर पालिका कुम्हारी की तरफ से पूर्व उप महाधिवक्ता संदीप दुबे ने पैरवी की। 

फिर से परिसीमन क्यों  

याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ताओं के तकों से सहमति जताते हुए हाईकोर्ट ने पूछा कि वर्तमान में वर्ष 2024 में फिर से परिसीमन क्यों किया जा रहा है, अब क्या जरूरत पड़ गई। कोर्ट ने यह भी पूछा कि जब वर्ष 2011 की जनसंख्या को आधार मानकर वर्ष 2014 व 2019 में वार्डों का परिसीमन किया गया था। जनगणना का डेटा तो आया नहीं है और वर्ष 2011 के बाद जनगणना हुई नहीं है तो फिर उसी जनगणना को आधार मानकर तीसरी बार परिसीमन कराने की जरूरत क्यों पड़ रही है। 

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