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सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ में प्राइमरी शिक्षक के पद पर डीएड के बजाय बीएड वालों की नियुक्ति को अवैध करार दिया है। प्राइमरी स्कूलों में सहायक शिक्षक के पदों पर डीएड डिग्री वाले करीब 3 हजार लोगों की नियुक्ति की गई थी।

बिलासपुर। देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ में प्राइमरी स्कूलों में शिक्षक के पद पर बीएड वालों की नियुक्ति को अवैध करार दिया है। डिग्री धारकों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, तब हाईकोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया था। इस फैसले के विरोध में राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई, जहां जस्टिस सुधांशु धुलिया की डिवीजन बेंच ने हाईकोर्ट के फैसले पर दखल देने से इनकार कर दिया। छत्तीसगढ़ में प्राइमरी स्कूलों में सहायक शिक्षक के पदों पर बीएड डिग्री वाले करीब 3 हजार लोगों की नियुक्ति की गई थी।

डिवीजन बेंच ने हाई कोर्ट के फैसले पर दखल से किया इनकार

सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ बीएड अभ्यर्थियों और राज्य सरकार की विशेष अनुमति याचिका खारिज कर दी है। इससे जुड़ा सुप्रीम कोर्ट का 28 अगस्त को दिया गया फैसला बुधवार को जारी किया है। इसमें जस्टिस सुधांशु धुलिया की डिवीजन बेंच ने हाई कोर्ट के फैसले में दखल देने से इंकार कर दिया। देवेश शर्मा के मामले में दिए गए फैसले की कॉपी राज्य शासन (मुख्य सचिव) को भेजे जाने के बाद भी बीएड वालों की नियुक्ति की गई, यह अवैध है। 

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राज्य सरकार ने लगाई थी सुप्रीम कोर्ट में याचिका 

दरसअल, 2 अप्रैल 2024 को हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की डिवीजन बेंच ने प्राइमरी स्कूलों में सहायक शिक्षकों की भर्ती में बीएड करने वाले उम्मीदवारों की नियुक्तियां निरस्त कर दी थी। उन्होंने सरकार को 6 सप्ताह में पुनरीक्षित चयन सूची जारी करने के आदेश दिए थे। इसके खिलाफ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी लगाई गई थी। राज्य शासन ने सहायक शिक्षकों के करीब 6500 पदों पर भर्ती के लिए 4 मई 2023 को विज्ञापन जारी किया था। विज्ञापन में छत्तीसगढ़ स्कूल शिक्षा (भर्ती तथा शैक्षणिक संवर्ग) भर्ती नियम 2019 में संशोधन की सूचना दी गई थी। इसके अनुसार सहायक शिक्षक की भर्ती के लिए स्नातक के साथ बीएड और डीएड अनिवार्य योग्यता रखी गई। 10 जून 2023 को परीक्षा आयोजित की गई, जिसमें बीएड और डीएड करने वाले अभ्यर्थी शामिल हुए।

डीएड वालों ने दी थी विशेष ट्रेनिंग की दलील 

प्रक्रिया शुरू होने के बाद डीएड करने वालों ने शिक्षा विभाग को सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामले की जानकारी दी गई। जिसमें उन्होंने बताया कि, एनसीटीई द्वारा वर्ष 2018 में निर्धारित नियम के अनुसार सहायक शिक्षक पद के लिए बीएड करने वाले पात्र नहीं होंगे। परीक्षा से पहले ही विज्ञापन और भर्ती नियमों को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। वहीं डीएड करने वाले विकास सिंह, युवराज सिंह व अन्य ने याचिका में बताया कि, डीएड में प्राइमरी में पढ़ने वालों के अध्ययन-अध्यापन के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है। जबकि, बीएड में उच्चतर कक्षाओं में अध्ययन-अध्यापन के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है। इस बीच राजस्थान के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 11 अगस्त 2023 को फैसला दिया और प्राइमरी स्कूलों में सहायक शिक्षक के लिए बीएड वालों को अपात्र ठहराया। इसके बाद हाई कोर्ट में याचिकाकर्ताओं ने शिक्षक भर्ती नियम 2019 में किए गए संशोधन को निरस्त करने की मांग की थी।

फैसले के बाद सहायक शिक्षकों में निराशा 

इस फैसले के आने के बाद सहायक शिक्षकों का कहना है कि, हम सभी सहायक शिक्षक छत्तीसगढ़ व्यापमं द्वारा आयोजित परीक्षा पास कर मेरिट के आधार पर शासकीय सेवा में आए हैं। इसमें 71 फीसदी अनुसूचित जनजाति तथा अनुसूचित जाति से हैं। कुछ सेंट्रल और राज्य की नौकरी छोड़कर इस नौकरी में आए हैं। इस नियुक्ति को उच्च न्यायालय ने अमान्य घोषित कर दिया। इस फैसले के विरुद्ध छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी गई। 28 अगस्त को मामले की सुनवाई के बाद कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया।

फैसले के बाद आर्थिक के साथ आया मानसिक संकट 

उन्होंने आगे कहा कि, हम और हमारा परिवार इस नौकरी पर आधारित थे। लेकिन इस नौकरी के चले जाने से हम पर आजीविका और आर्थिक के साथ साथ मानसिक संकट आ गया है। इस संकट से उबारने के लिए कुछ विकल्प कर उनकी नौकरी सुरक्षित की जाए। जैसे - हमें सहायक शिक्षक के ही वेतन पर शिक्षक(यूडीटी) के 15588 रिक्त पद पर समायोजन किया जा सकता है। जिसमें इस पद के लिए विषय बाध्यता का प्रावधान नहीं है। हम सब इसके लिए आवश्यक अहार्ताएं रखते हैं।

प्रदेश सरकार अध्यादेश लाकर नियुक्ति को रख सकती है सुरक्षित 

इसके अलावा राज्य शासन ग्रेड-पे के समकक्ष नए पदों का सृजन कर माध्यमिक शाला या उच्चतर माध्यमिक शाला में शैक्षणिक सेवा प्रदान करने का अवसर हो, जो कि शिक्षक पद में पदोन्नति के बाद स्वत: ही समाप्त हो जाएगा। एक अन्य विकल्प के तौर पर यह कर सकते हैं कि, प्रदेश सरकार द्वारा एक अध्यादेश लाकर इस नियुक्ति को सुरक्षित रखा जाए। जिसमें कि, नियुक्ति को जारी रखने के लिए आवश्यक समाधान करने की अनुकंपा करें।
 

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