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राजधानी रायपुर के बाहरी इलाकों में बड़े पैमाने पर अवैध तरीके से लाल ईंट का निर्माण कार्य किया जा रहा है। प्रशासन की अनदेखी के कारण इन ईंट भट्ठा संचालकों के हौसले बुलंद हैं।

छन्नू खंडेलवाल-मांढर। राजधानी के आउटर इलाकों में बड़े पैमाने पर अवैध तरीके से लाल ईंट का निर्माण कार्य किया जा रहा है। भट्ठों में ईंट पकाने के लिए पेड़ की कटाई भी की जा रही है। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इसकी वजह से जैव विविधता की स्थिति लगातार खराब होती जा रही है। इससे न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है, बल्कि बिजली चोरी और जल स्रोतों की बर्बादी भी हो रही है। लेकिन जिम्मेदार विभाग को इसकी कोई परवाह नहीं है। बता दें कि, ग्राम टेकारी छपोरा मांढर अकोली नेऊरडीह बरबंदा गांव में बड़े पैमाने पर  लाल ईंट भट्ठों का कारोबार लगातार बढ़ते जा रहा है। प्रशासन की अनदेखी के कारण इन ईंट भट्ठा संचालकों के हौसले बुलंद हैं और वे प्रतिबंधित लाल ईंटों का उत्पादन खुलेआम कर रहे हैं। 

करोड़ों का बिजनेस बिना जीएसटी बिल के
टेकारी और नेऊरडीह छपोरा में अवैध रूप से ईंट भट्ठों का कारोबार चल रहा है। इसके बावजूद विभागीय अधिकारी ध्यान नहीं दे रहे हैं। प्रत्येक दो हजार ईटों को दस हजार रूपये में बेची जा रही है। हर साल करोड़ों का बिजनेस होता है। वह भी बिना जीएसटी बिल के जिसके चलते केंद्र और राज्य सरकार को भारी क्षति हो रही है। ईंट संचालकों द्वारा बड़े पैमाने पर ईंट का निर्माण करने के लिए शासकीय और निजी जमीन का खनन किया जा रहा है। इससे पर्यावरण तो प्रभावित हो रहा है।

क्षेत्र में गिर रहा लगातार जल स्तर
गर्मी के मौसम में पीने के पानी की बड़ी समस्या होती है। तालाबों और सरकारी नल-जल के बोर का जलस्तर जवाब देने लग जाता है। ऐसी स्थिति में ईंट भट्ठा संचालक बोर और तालाबों से पानी लेकर लाखों की तादात में ईंट का निर्माण कर रहे हैं, जिसके प्रति विभाग के अधिकारी कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं। वहीं ईंट भट्ठा मजदूरों का अब तक ठेकेदार के द्वारा कोई पंजीयन नहीं कराया गया है, जबकि मजदूरों का पंजीयन कराना अनिवार्य होता है। ठेकेदार सारे नियम कायदे कानून को ताक पर रखकर मजदूरों से ईंट भट्ठा में ईंट का निर्माण करा रहा है।

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