संदीप करिहार- बिलासपुर। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में ब्लाइंड टीचर की स्मार्ट क्लास सुर्खियों में है। शिक्षा के प्रति टीचर का सेवाभाव देखकर हर कोई उनकी प्रशंसा कर रहा है। समाज में जो भेद-भाव का सामना ब्लाइंड टीचर ने खुद के लिए झेला है, उसे बच्चों में नहीं देखना चाहते हैं। इस नेत्रहीन शिक्षक के संकल्प ने बच्चों की पढ़ाई में किसी तरह की कोई कमी नहीं छोड़ी है और बच्चों को काबिल इंसान बनाने का बेड़ा उन्होंने उठाया है। वे ब्रेल लिपि की किताबों और अंकलिपी के माध्यम से बच्चों को पढ़ाते हैं। इसके साथ ही उन्होंने स्मार्ट क्लास के जरिए अपनी पूरी योग्यता और काबिलियत को मासूमों के भविष्य को उज्जवल बनाने के लिए झोंक दिया है।
जन्म से हैं ब्लाइंड
हम यहां बिलासपुर जिले के तिफरा स्थित अंध-मूक, बधिर शाला के ब्लाइंड टीचर देवेंद्र कुमार चंद्रा की कहानी से आपको रूबरू कराने जा रहे हैं। वे पारिवारिक हिस्ट्री के मुताबिक जन्म से ब्लाइंड पैदा हुए हैं। वे देख पाने में असमर्थ है, किंतु उनके सपने और हौसले इतने मजबूत और बड़े हैं कि, ईश्वर की लीला भी उनके आगे बाधा नहीं बन सकी। भले ही जन्म से ईश्वर ने देवेंद्र कुमार चंद्रा को नेत्रहीन ही धरती पर भेजा है, लेकिन उनके हौसले, सपने और भरोसे के आगे ईश्वर को भी झुकना पड़ा है। ईश्वर की ऐसी कृपा हुई कि, उन्हें लो विजन होता है। लेकिन इस लो विजन के लिए भी उन्हें पूर्ण रूप से अपने चश्मे पर ही निर्भर रहना पड़ता है।
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बच्चों को पढ़ाने के लिए किया बीएड स्पेशल कोर्स
देवेंद्र कुमार चंद्रा ने एमए की डिग्री हासिल की है। साथ ही नेत्रहीन और मूकबधिर बच्चों को पढ़ाने के लिए के लिए देहरादून से बीएड का स्पेशल कोर्स किया है। 2005 में चंद्रा ने टीचर बनकर ब्लाइंड बच्चों को शिक्षा देने की ठान ली। इस आधुनिक दौर में भी नेत्रहीन एवं मूक- बधिर असहायों के प्रति समाज की आज भी उसी तरह है, जैसे की पहले से धारणा बनी हुई है। लेकिन अपने पढ़ाई में देवेंद्र कुमार चंद्र बच्चों को यह पाठ पढ़ाते हैं कि, वह किसी से कम नहीं हैं, क्योंकि यह बच्चे स्पेशल बच्चे हैं। भले ही बच्चे देख और सुन नहीं सकते हैं लेकिन इनके एहसास करने की क्षमता एक सामान्य लोगों की कल्पना में अधिक होती है। वे आहट से महसूस कर लेते हैं और एक बार सुनकर ही अपने दिमाग में उस बात को बिठा लेते हैं। क्योंकि उनकी याददाश्त मजबूत होती है।
18 सालों से दे रहे हैं सेवा
आज के समय में भी नेत्रहीन होना किसी अभिशाप से काम नहीं है। भले ही सामान आकार को लेकर समाज में जन जागरूकता फैलाया जा रहा है। देश के प्रधानमंत्री ने नेत्रहीन और मूकबधिर जैसे दिव्यांगों को दिव्य अंग की संज्ञा दी है। इसके बावजूद भी दिव्यांगो को संघर्ष पथ पर चल कर खुद की काबिलियत को साबित करना पड़ रहा है। बावजूद इसके शिक्षक पिछले 18 सालों से स्कूल में सेवाएं देकर बच्चों को शिक्षित कर उनके जीवन को रोशन करने और भविष्य को संवारने का काम कर रहे हैं।
स्टूडेंट्स की सफलता गौरवान्वित करती हैं - चंद्रा
ब्लाइंड टीचर देवेंद्र कुमार चंद्रा के पढ़ाए छात्र देशभर के अलग-अलग क्षेत्र में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। यह बात उनकों बहुत गौरवान्वित करती है, कि उनकी मेहनत कहीं जाया नहीं हो रही है। बल्कि उनके पढ़ाए बच्चे आज देशभर में अपना नाम रोशन कर रहे हैं। भले ही ईश्वर ने असहाय बनाकर भेजा है, किंतु ऐसे दिव्यांग बच्चों के हौसलों में मजबूत जान देकर भेजा है। जिससे ये सभी छात्र नामुमकिन को भी, मुमकिन बना रहे हैं।