विकास शर्मा - रायपुर। रक्तदान-महादान के कहावत को चरितार्थ करते हुए राज्य में रक्तदान करने वालों की संख्या सात फीसदी तक बढ़ी है, पर जरुरत के हिसाब से इसकी उपलब्धता अभी भी कम है। राज्य में हर साल आबादी के एक प्रतिशत लोगों लिए 2.55 लाख यूनिट खून की जरूरत होती है मगर इसकी उपलब्धता 90 से 97 प्रतिशत के बीच सिमटकर रह जाती है। दावा किया जा रहा है कि अब खून की कमी की वजह से अस्पतालों में किसी भी मरीज की मृत्यु नहीं होती है, कहीं न कहीं से इंतजाम हो जाता है। आवश्यकताएं बढ़ने के साथ ही राज्य में ब्लड बैंक की संख्या में भी वृद्धि हुई है। पिछले पांच साल में इसकी संख्या 81 से बढ़कर 124 तक पहुंच चुकी है। इसके अलावा लोग अब रक्तदान की महत्ता को समझ चुके हैं और बड़ी संख्या में रक्तदान करने के लिए सामाजिक संगठन और व्यक्तिगत रुप से लोग सक्रिय हो चुके हैं।
रक्तदान के प्रति लोगों में जागरुकता तो बढ़ी है मगर वर्तमान में जितनी आवश्यकता है उतने की पूर्ति नहीं हो पा रही है। इसकी वजह से आज भी विभिन्न ब्लड बैंकों में जरूरी रक्त के लिए बीमार मरीजों के परिजनों को भटकते हुए देखा जा सकता है। अधिकारियों के अनुसार ब्लड बैंकों में रिप्लेस कर रक्त लेने वालों की संख्या कम और निर्धारित दाम देकर खरीदने वालों की संख्या अधिक है। इसकी वजह से भी मांग और उपलब्धता में अंतर बना हुआ रहता है। ये संस्थाएं विभिन्न स्थानों पर लगाए जाने वाले शिविर और व्यक्तिगत रुप से रक्तदान करने वालों की मदद से उपलब्धता बनाने का प्रयास करती हैं।
राजधानी में तीन प्रमुख ब्लड बैंक
राजधानी में शासकीय स्तर पर तीन प्रमुख ब्लड बैंक आंबेडकर अस्पताल, डीके अस्पताल तथा एम्स में संचालित हैं, जो वहां के 90 से 95 प्रतिशत मरीजों की आवश्यकतों को पूरा करते हैं। इसके अलावा जिला अस्पताल के साथ विभिन्न निजी अस्पतालों और सेक्टरों में ब्लड बैंक का संचालन किया जाता है। डीके अस्पताल में संचालित रेडक्रास का ब्लड बैंक विभिन्न स्वास्थ्य केंद्रों के ब्लड स्टोरेज का मेनेंटेंस भी करता है।
राज्य में कितने ब्लड बैंक
शासकीय-38 | शासकीय में ब्लड कलेक्शन- 133213 |
निजी- 89 | निजी में रक्त संग्रहित- 115237 |
वेस्टेज ज्यादा पर रखना जरूरी
रक्त में प्रमुख रूप से लोगों को प्लाज्मा, आरबीसी और प्लेटलेट्स की आवश्यकता होती है। प्लाज्मा को एक साल तक सुरक्षित रखा जा सकता है, मगर आरबीसी 35 से 40 और प्लेटलेट्स की लाइफ पांच से सात दिन की होती है। दोनों के वेस्टेज ज्यादा है, किंतु जरूरतों को ध्यान में रखते हुए ब्लड बैंकों में इन्हें स्टोरेज कर रखना जरूरी होता है।
कोरोना में सबकुछ स्थिर
राज्य में वर्ष 2020 से 2022 तक कोरोना महामारी का दौर था। इस दौरान ब्लड बैंकों में रक्त की भारी कमी हो गई थी। शिविर का आयोजन बेहद कम संख्या में होने की वजह से वर्ष 2020-21 में केवल दो लाख और 2021-22 में मात्र 1.87 लाख यूनिट के आसपास रक्त का संग्रहण किया जा सका था। महामारी के दौरान सर्जरी और एक्सीडेंट की संख्या में भी भारी कमी आ गई थी इसके लिए मामला किल्लत तक नहीं पहुंच पाया था।
विशेषज्ञों का कहना
ब्लड बैंक के नोडल अफसर डॉ. निधि अत्रीवाल ने बताया कि, रक्तदान के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ी है। मांग के अनुसार उपलब्धता लगभग पूरी हो जा रही है मगर इसके लिए ज्यादा से ज्यादा लोगों को आगे आने की आवश्यकता है।
ब्लड बैंक के रेडक्रास प्रभारी डॉ. सत्यनारायण पांडे ने बताया कि, रक्त की व्यवस्था दान के माध्यम से ही पूरी हो सकती है। आवश्यकता के अनुरुप उपलब्धता बनाए रखने के लिए लगातार शिविर का आयोजन किया जाता है।
आंबेडकर अस्पताल के ब्लड बैंक प्रभारी डॉ. अविरल मिश्रा ने बताया कि, आबादी के एक प्रतिशत आबादी को रक्त की आवश्यकता होती है। इसकी उपलब्धता के लिए रक्तदान आवश्यक है जिसके लिए लोगों को जागरुक होना जरूरी है।
भारत में हर साल 20 लाख यूनिट ब्लड की कमी
रिप्लेस में रक्त लेने वालों की संख्या कम, व्यवस्था का मुख्य जरिया शिविर
देश में हर दो सेकंड में एक रक्तदान की जरूरत पर एक फीसदी लोग करते हैं दान
शरीर से निकाले गए रक्त की मात्रा को शरीर में फिर से पूरा करने में लगते हैं 24- 48 घंटे