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आज महाशिवरात्री है। अंचल के सभी शिव मंदिरों में श्रद्धालुओं की कतारें लगी हैं। छपोरा के स्वयंभू चंडिकेश्वर मंदिर का अपना एक अनूठा इतिहास है। यहां मेला लगता है। 

हेमन्त वर्मा- धरसींवा। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 15 किलोमीटर दूर ब्लाक मुख्यालय धरसींवा से 14 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम छपोरा मांढर का स्वयंभू चंडिकेष्वर महादेव का आकार लगातार बढ़ रहा है। अद्भुत और अलौकिक दिखने वाला यह शिवलिंग अष्टकोणीय है, जो शिव महापुराण में किए गए वर्णन के अनुरूप है। मनोकामना पूर्ण करने वाला मानकर श्रद्धालु दूर-दूर से दर्शन करने छपोरा मांढर आते हैं। सावन के बाद महाशिवरात्रि में विषेश पूजा और भव्य मेले का आयोजन होता है। आज महाशिवरात्रि में ग्रामीण अंचल में भी महाशिवरात्रि की धूम रही।

 विधानसभा भवन से उत्तर दिशा में 5 किलोमीटर दूरी पर स्थित छपोरा गांव की आबादी लगभग तीन हजार है। इस गांव में सभी जाति समुदाय के लोग निवासरत हैं। ज्यादातर लोग सरल और ग्रामीण मान्यताओं पर विश्वास करने वाले हैं। गांव के बीचोबीच में एक कुंडनुमा तालाब है। तालाब के किनारे एक पुराना पीपल और बरगद का पेड़ स्थित है। पीपल पेड़ के नीचे भूमि से निकले शिवलिंग विराजमान हैं, जिसे क्षेत्रीय श्रद्धालु स्वयंभू चंडिकेश्वर महादेव के नाम जानते हैं। लगभग पचास वर्ष पूर्व आकार छोटा होने से श्रद्धालुओं की संख्या कम होती थी, लेकिन जैसे-जैसे महादेव का आकार बढ़ता जा रहा है, वैसे वैसे यहां श्रद्धालुओं की संख्या भी बढ़ते जा रही है।

1986 में पहली बार बना मंदिर

सन् 1986 में पहली बार ग्राम के बुधराम वर्मा ने यहां एक मंदिर का निर्माण करवाया। इसके पहले भगवान महादेव खुले में ही विराजमान थे। इसके साथ-साथ जब ग्रामीणों ने नीम पेड़ के नीचे मां शीतला की प्राचीन प्रतिमा देखी, तो ग्रामीणों ने वहां मां शीतला मंदिर का भी निर्माण करवा दिया। भगवान महादेव और मां शीतला की प्राचीन मूर्ति का पैराणिक और ऐतिहासिक महत्व है। 

सभी समुदाय एक साथ करते हैं भोजन 

अब वर्तमान में मंदिर का देखरेख मंदिर समिति और ग्रामीण मिलकर करते हैं। मंदिर समिति में मनीश दुबे, चंपेष्वर साहू, अरूण शुक्ला, त्रिलोकी वर्मा, कैलाष धीवर, पूनाराम निशाद, दुर्गेष देवांगन, केवल देवांगन, मोहित धीवर, अष्वनी वर्मा, जयराम साहू, हिमांषु वर्मा श्रीमती नमिता वर्मा, श्रीमती बिंदु वर्मा, श्रीमती शांति साहू, श्रीमती आरती दुबे आदि ग्रामीण शामिल हैं। सावन और शिवरात्रि में विषेश पूजा की जाती है। शिवरात्रि में भव्य मेला, भंडारा, भजन-कीर्तन, जसगीत तथा रामायण का आयोजन किया जाता है। इस वर्श भी अंचल के ख्यातिप्राप्त श्रीराम चरित मानस के वक्ता व मंडली ने भजनों की प्रस्तुति दिया। शिवरात्रि के दिन भोजन-भंडारा में गांव के सभी जाति-समुदाय के लोग एक साथ बैठक भोजन करते हैं। 

इस वर्ष मेले की रजत जयंती 

मंदिर समिति के अध्यक्ष मनीश दुबे ने बताया कि सन् 2000 से मेले की षुरूआत की थी, जो धीरे-धीरे बढ़ते क्रम पर है। मैं लगातार देखते आ रहा हूं कि शिवलिंग का आकार लगातार बढ़ रहा है। आप चाहें तो पुरानी फोटो और वीडियो भी देख सकते हैं। उन्होंने बताया कि शिवमहापुराण में उल्लेखित है, जहां कुंडनुमा जलाषय और पीपल का पेड़ उसके नीचे यदि शिवलिंग है तो उसे कोई प्रमाण की आवष्यक नहीं वह स्वयं सिद्ध है। लोग आस्था से यहां आते हैं और उनकी मनोकामना पूरी होते जाती है। इस साल मेला-उत्सव की रजत जयंती मनाई जा रही है।

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