पंकज भदौरिया- दंतेवाड़ा। नक्सलगढ की महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ने की योजना सरकारें लंबे समय से बना रही है और बनाती रहेगी। सरकार कांग्रेस की हो या भाजपा की। दोनों ही अपने स्तर से बेहतर करने का प्रयास करती है। जैसे ही जमीनी स्तर पर आती है तो कुछ साल में ही जमींदोज हो जाती है। दंतेवाड़ा में ऐसे कई उदाहरण मिल जाएगें। इसी तरह की एक योजना की बात कर रहे हैं, जिसने लागू होते ही खूब सुर्खियां बटोरी थी। वर्ष 2014 में तत्कालीन कलेक्टर केसी देव सेनापति ने महिला शक्ति केंद्र को खुलवाया। लाखों रुपए की सिलाई मशीन खरीदी गई। इस इमारत को तकरीबन 45 लाख रुपए की लागत से निर्माण करवाया गया। उस दौरान के तत्कालीन मंत्री केदार कश्यप ने उद्घाटन किया था।
अब इस केंद्र में ताला पड़ा हुआ है। इस केंद्र से जिले भर के स्कूलों और अश्रमों में पढने वाले बच्चों के गणवेश तैयार करने का निर्देश भी जारी हो गया था। इतना ही नहीं जवानों की वर्दी भी यहां से सिलवाई जाती थी। भाजपा की सरकार जैसे ही सत्ता से गई और कांग्रेस सरकार आई यह योजना जमीं पर औंधे मुंह गिर गई। इस महिला शक्ति केंद्र में काम करने वाली महिलाएं कहां काम कर रही है अधिकरियों के पास मकबूल जबाब नहीं है। अधिकारी एक दूसरे पर ठीकरा फोड़ रहे हैं।
महिला सशक्तिकरण केंद्र में तीन वर्षों से लट रहा है ताला
स्वरोजगार के नाम पर महिलाओं को रोजगार से जोडऩे की बात कर योजनाओं को जमी पर उतारा जाता है। करोड़ों रुपए खर्च कर दिए जाते है। दंतेवाड़ा के महिला सशक्तिकरण केंद्र में भी कुछ ऐसा ही हुआ है। यहां बताया जाता है करीब 100 महिलाएं काम करती थी। 2020-21 तक महिलाओं ने काम किया। अब इन महिलाओं का अधिकारियों तक को पता नही है कहां काम कर रही है? महिला बाल विकास विभाग के अधिकारी से पूछा तो उन्होने कहा लाईबलीहुड कॉलेज को इस बात की जानकारी है। इस केंद्र के संचालन लाईवलीहुड कॉलेज से ही हो रहा था। फिलहाल ताला समूह की महिलाओं ने जड़ा है। उन्होंने ताला क्यों केंद्र में लगाया अधिकारी खुलकर नही बोल रहे हैं। जिला प्रशासन के पास इतनी भी शक्ति नही हैं कि करोड़ों रुपए की मशीनें कमरे में जंग खा रही है उनको बाहर निकालकर इस्तेमाल करवा सकें।
जिला प्रशासन की योजना पर पीपल का पेड़
यदि बैक फ्लैश में जाएं तो कभी ये महिला सशक्तिकरण गुलजार हुआ करता था। 100 से अधिक महिलाएं काम करती नजर आती थी। वीवीआईपी का जब भी दंतेवाड़ा दौरा होता था इसे मॉडल के रूप में प्रस्तुत किया जता था। सिलाई करती मशीनों की आवाज पूरे कारखाने में गूंजा करती थी। अब यहां ताला पड़ा है। मुख्य दरवाजे पर पीपल का पेड़ उग गया है। यह पेड़ जिला प्रशासन की योजना की छाती पर उगा है। इस कारखाने कपड़ा कैद है। मशीनें जंग खा रही है। महिला शसक्ति तो नहीं हो सकी, लेकिन उसकी शक्ति जरूर कैद नजर आ रही है।
एक दो वर्षों से बंद है केंद्र- जिला कार्यक्रम अधिकारी
इस मामले को लेकर जिला कार्यक्रम अधिकारी वरुण नागेश ने कहा कि, पिछले एक दो वर्षो से बंद हुआ है। महिला स्व सहायता समूह काम करती थी। ताला तो समूह ने डाला है। इस केंद्र से महिला बालविकास विभाग का कोई लेना-देना नहीं है। इसके संचालन की जिम्मेदारी लाईबलीहुड कॉलजे की है। उन्ही की लापरवाही के चलते केंद्र में ताला पड़ा है।
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प्राचार्य बोले- डीपीओ से चर्चा करने के बाद बताएंगे
लाईवलीहुड कॉलेज के प्राचार्य के हिरवानी ने कहा कि, महिला शक्ति केंद्र जब चलता था तब महिला समूह ही काम कर रहा था। वहां सिर्फ ट्रेनिंग देना का काम लाइवलीहुड ने किया है। इस संस्था को लाइवली हुड ने कभी संचालित नहीं किया है। अभी मै बाहर हूं। आने के बाद डीपीओ से चर्चा करने के बाद ही कुछ कहूंगा।