कुश अग्रवाल-पलारी। नए साल के पहले दिन बलौदाबाजार जिले के सबसे प्रसिद्ध पयर्टन और धार्मिक स्थल तुरतुरीया मंदिर में बड़ी संख्या में भक्तजन पहुंचे हैं। श्रद्धालु अपने परिजनों के साथ यहां पर प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने पहुंचे हैं। तुरतुरिया छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। यहां पर ऊंची पहाड़ी पर माता का मंदिर है। इस स्थान को भगवान श्री राम के पुत्र लव-कुश की जन्मस्थली भी कहा जाता है।
बताया जाता है कि, माता सीता ने यहां पर काफी समय बिताया था। यहां पर महर्षि वाल्मीकि का आश्रम भी बना हुआ है। कहा जाता है कि, यहीं पर महर्षि वाल्मीकि ने महाकाव्य रामायण की रचना की थी। इसलिए यह स्थान धार्मिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है।
जलधारा के तुर-तुर ध्वनि के कारण कहते हैं तुरतुरिया क्षेत्र
यहां पर आश्रम के नीचे से 12 महीने तक प्राकृतिक जलधारा बहती रहती है। इसे गौ मुखी धारा भी कहा जाता है। छत्तीसगढ़ी भाषा में तुर तुर की ध्वनि के साथ बहते पानी के कारण ही इस क्षेत्र का नाम तुरतुरिया पड़ा। इसका जलप्रवाह एक लंबी संकरी सुरंग से होता हुआ आगे जाकर एक कुंड में गिरता है। जिस स्थान पर कुंड में यह जल गिरता है वहां पर गाय का मोख बनाया गया है, इस वजह से ही जल उसके मुख से गिरता हुआ नजर आता है।
शैव, वैष्णव और बौद्ध धर्म का केंद्र
इस कुंड के समीप दो प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं। इनमें से एक वीर को तलवार से सिंह को मारते हुए और दूसरे में एक वीर को जानवर की गर्दन मरोड़ते हुए दिखाया गया है। इस स्थान पर काफी संख्या में शिवलिंग, बौद्ध प्रतिमाएं और विष्णु जी की प्रतिमाओं के अवशेष मिलते हैं। इससे माना जाता है कि, यहां पर शैव, वैष्णव और बौद्ध धर्म की मिली-जुली संस्कृति रही होगी। सिरपुर के समीप होने के कारण इस बात को अधिक बल मिलता है। वहीं पूष के माह में यहां पर तीन दिवसीय मेला लगता है। इस मेले में शामिल होने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पर पहुंचते हैं।
पयर्टकों की सुविधा के लिए की जा रही व्यवस्थाएं
बता दें कि, पिछली सरकार ने तुरतुरिया क्षेत्र को राम वन गमन पथ में शामिल किया है। इस वजह से अब इस क्षेत्र का कायाकल्प होने लगा है। यहां पर पयर्टकों की सुविधा के लिए आकर्षक गार्डन, रेस्ट हाउस और अन्य व्यवस्थाएं भी की गई हैं।