रायगढ़। धान की बोगस खरीदी को सही बनाने कोनपारा धान खरीदी केंद्र के प्रभारी ने जाली नोटों का सहारा लिया। एक करोड़ के असली नोटों के बदले तीन करोड़ के जाली नोट लिए जाने की डील हुई। केंद्र प्रभारी जाली नोट पश्चिम बंगाल गया, लेकिन वहां पकड़ा गया। उसके पास से 23.44 लाख रुपए के जाली नोट बरामद हुए हैं। कई बार जाली नोटों के कारोबार में रायगढ़ कनेक्शन सामने आ चुका है। अब एक धान खरीदी केंद्र प्रभारी के जरिए जाली नोट खपाए जा रहे थे। जशपुर के खरीदी केंद्रों में बचे हुए धान का उठाव करने के लिए रायगढ़ के मिलरों का डीओ काटा गया है। इसमें कोनपारा केंद्र भी है जिसका प्रभारी पश्चिम बंगाल में जाली नोटों के साथ पकड़ा गया है। इस साजिश में रायगढ़ के राइस गिलरों को जरिया बनाने की योजना थी। कोनपारा खरीदी केंद्र का प्रभारी संजीव कुमार 6 अप्रैल को कूचबिहार जिले के बशीरहाट थाना क्षेत्र में दो अन्य साथियों के साथ गिरफ्तार हो चुका है। उसके पास से 23.44 लाख रुपए के जाली नोट बरामद हुए हैं। इस मामले के तार धान खरीदी से जुड़े हुए हैं। वर्तमान में जशपुर जिले के खरीदी केंद्रों में 5.72 लाख क्विं धान उठाव के लिए बचा हुआ है।
मार्कफेड ने अंतर जिला आवंटन करते हुए करीब 3 लाख क्विं धान रायगढ़ के मिलरों को दे दिया है जिसका डीओ जारी किया जा चुका है। इसमें कोनपारा केंद्र भी है जिसका प्रभारी संजीव कुमार पिता सहरूराम निवासी कुचमुंडा, तुमला है। कोनपारा में करीब 27 हजार क्विं. धान शेष है जो सिर्फ कागजों में है। हकीकत में वहां धान है ही नहीं।धान की बोगस खरीदी को सैटल करने के लिए प्रभारी संजीव कुमार ने जाली नोटों का जुगाड़ किया। एक करोड़ असली नोटों के बदले तीन करोड़ के जाली नोटों की डील हुई। जशपुर के ही एक व्यक्ति सुलेमान खाखा ने संजीव को गिरोह से जोड़ा। संजीव को विक्रम, घनश्याम विश्वकर्मा रायपुर और उमर फारुख के जरिए नोट मिलने थे। बताया जा रहा है कि संजीव ने 10 लाख रुपए ऑनलाइन भुगतान किए थे जिसके बदले नकली नोट लेने वह गुवाहाटी असम पहुंचा। संजीव और उसके साथ दुर्गा प्रसाद निषाद को करीब 24 लाख के नकली नोट असम में ही डिलीवर किए गए। इसके बाद उन्होंने कार किराए पर ली और बशीरहाट पहुंचे। लेकिन चेकिंग के दौरान पकड़े गए। सवाल यह है कि यह नकली नोट संजीव कुमार किस लिए ला रहा था।
धान का करना था भुगतान
जानकारी के मुताबिक, कोनपारा में बोगस खरीदी करने के बाद अब धान का निराकरण करना था। जीरो शॉर्टेज के लिए रायगढ़ के राइस मिलरों को धान देना था। लेकिन धान नहीं होने के कारण अब उसके बदले नकद भुगतान करना था। नकद राशि का जुगाड़ करने के लिए नकली नोट लेने संजीव असम पहुंच गया। इस बात की भी संभावना है कि इससे पहले भी ऐसा किया जाता रहा हो।
डीओ बेचने का धंधा
कस्टम मिलिंग में भ्रष्टाचार का मुद्दा बुलबुले की तरह गायब हो चुका है जबकि कुछ भी नहीं बदला है। रायगढ़ के मिलरों को दूसरे जिलों का धान मिला है जिसका उठाव ही नहीं हुआ। डीओ को समिति प्रबंधकों को या वहीं के लोकल मिलरों को बेच दिया गया। जशपुर में भी यही हुआ है। रायगढ़ के मिलरों ने बिना धान उठाए डीओ बेच दिया। 1900-2200 रुपए में डीओ बेचे गए हैं। जीपीएस की जांच हुई तो पूरा खेल सामने आ जाएगा क्योंकि गाड़ी को खरीदी केंद्र से मिल तक की दूरी तय करनी होती है। ऐसा किए बिना ही ट्रिप क्लोज हो गया।