रायपुर। प्रकृति के सबसे बड़े सफाईकर्मी के रूप में जाने वाले गिद्ध को बचाने और उनकी संख्या में इजाफा के लिए वन विभाग ने एनजीओ के माध्यम से अभियान प्रारंभ कर दिया है। यहां यह बताना लाजिमी है कि देश के साथ राज्य में गिद्धों की संख्या में वर्ष 1990 के बाद तेजी से गिरावट दर्ज की गई है। इसकी वजह कई ऐसे घातक वेटेनरी मेडिसिन थे, जो जानवरों के मांस के जरिए गिद्ध खा रहे थे। उन घातक दवाओं पर रोक लगाने के बाद गिद्धों की संख्या में एक बार पुनः वृद्धि होने की आस जागी है। राज्य में अलग-अलग जिलों में पांच सौ से भी कम गिद्ध होने का अनुमान लगाया जा रहा है। गिद्धों का संरक्षण, संवर्धन करने वन विभाग द्वारा अभियान चलाया जा रहा है।
गौरतलब है कि, राज्य के बस्तर क्षेत्र के इंद्रावती टाइगर रिजर्व में वर्तमान में दो से ढाई सौ के करीब गिद्धों की संख्या होने का अनुमान लगाया गया है। इसके साथ ही अचानकमार टाइगर रिजर्व के अलावा कटघोरा में 90 के करीब गिद्ध देखे गए हैं। इसी के साथ विलुप्त हो चुके सफेद गिद्ध इजिप्शियन वल्चर को कवर्धा, रायपुर, दुर्ग तथा महासमुंद के कुछ स्थानों में देखा गया है। इसके साथ ही इंडियन वल्चर जशपुर के साथ सरगुजा के क्षेत्र में देखे गए हैं।
गिद्धों की मौत की वजह बनी यह दवाएं
वल्चर कजर्वेशन एसोसिएट अभिजीत के मुताबिक वर्ष 1990 के पूर्व राज्य के साथ देश में गिद्धों की संख्या बहुतायत में थी। इसके बाद इनकी संख्या में तेजी से गिरावट दर्ज की गई। गिद्धों की संख्या कम होने की वजह जानने शवों का परीक्षण किया गया, तो गिद्धों में दर्द निवारक डाइक्लोफिनेक, सिक्लोफिनेक तथा किटो प्रोफेन के अंश पाए गए। इसके बाद वर्ष 2008 में इन वेटेनरी दवाओं पर प्रतिबंध लगाया गया।
ऐसे करेंगे संरक्षण, संवर्धन
वल्चर कंजर्वेशन एसोसिएट अभिजीत शर्मा के मुताबिक अचानकमार टाइगर रिजर्व के पांच सौ किलोमीटर के दायरे में जहां गिद्धों के घोसला देखे गए हैं, उनकी सुरक्षा करने के साथ लोगों को गिद्धों को संरक्षित करने जागरूक किया जाएगा।
संख्या बढ़ाने उपाय किए जा रहे
वाइल्ड लाइफ पीसीसीएफ सुधीर अग्रवाल ने बताया कि, गिद्धों के संरक्षण, संवर्धन के साथ उनकी संख्या बढ़ाने उपाय किए जा रहे हैं, इसी कड़ी में गिद्धों की गणना की जा रही है। इसके बाद गिद्धों की संख्या बढ़ाने आवश्यक कदम उठाए जाएंगे।