रायपुर। नाम से परिलक्षित राज्य का राजकीय पशु वनभैंसा की शान छत्तीसगढ़ में अलग ही देखते बनती है। यही वजह है की राजकीय पशु की शान में कोई गुस्ताखी न हो इसके लिए वन विभाग ने असम से लाए गए पहले दो वनभैंसों को पौष्टिक आहार देने तथा स्वास्थ्य में महज एक साल के भीतर 17 लाख रुपए फूंक दिए। इसके बाद लाए गए चार अन्य वनभैसों सहित छह के लिए 25 लाख रुपए खर्च कर दिए। असम से लाए गए वनभैंसा अब वन विभाग के लिए गले की हड्डी साबित हो रहे हैं। वर्ष 2020 में दो तथा वर्ष 2023 में लाए गए चार वनभैंसों की वन विभाग के अफसर अब तक ब्रीडिंग भी नहीं करा पाए हैं। ऐसे में वनभैंसा लाने को लेकर विभाग पर सवाल उठ रहे हैं।
असम से वनभैंसा लाने का विरोध करने वाले वन्यजीव प्रेमी नितिन सिंघवी के मुताबिक असम से दो किस्त में जो वनभैंसा लाए गए हैं, उनमें नियमों की अनदेखी की गई है। असम से वनभैंसा लाने के बाद उनके रखरखाव तथा खान पान को लेकर वन्यजीव प्रेमी ने सूचना के अधिकार के तहत जानकारी हासिल करने के बाद वनभैंसों के खान- पान तथा रखरखाव में पिछले चार वर्षों के भीतर अब तक 17 तथा 25 लाख रुपए खर्च होने की जानकारी मिली है। वनभैंसों को चारा के रूप में घास, बीज रोपण, चना, खरी, पैरा कुट्टी, दलिया दिया जा रहा है।
नहीं करा सकते राज्य के वनभैंसों से ब्रीडिंग
असम से लाए गए वनभैंसों का उदंती- सीतानदी टाइगर रिजर्व के नर वनभैंसों के साथ ब्रीडिंग कराना था, लेकिन वहां के वनभैंसों के साथ असम के वनभैंसों का ब्रीडिंग करना संभव नहीं है। इसकी वजह यूएसटीआर के वनभैंसा क्रास ब्रीड के हैं। ऐसे में असम से लाए गए वनभैंसों का यूएसटीआर के वनभैंसों से ब्रीडिंग कराने से नस्ल खराब होगी। प्योर ब्रीड का एक छोटू नामक नर वनभैंसा है, वह भी अपनी उम्र के अंतिम पड़ाव पर है।
नहीं तो सभी एक ही पिता की संतान होंगे
असम से लाए गए वनभैंसों को बारनवापारा के जंगल में भी नहीं छोड़ा जा सकता। असम से जो वनभैंसा लाए गए हैं, उनमें एक नर है तथा शेष पांच मादा हैं। ऐसे में एक नर वनभैंसा का अन्य मादा वनभैंसों के साथ ब्रीडिंग होने की स्थिति में मादा वनभैंसों से जन्मे वनभैंसा एक ही पिता की संतान होंगे। इससे भी वनभैंसा की नस्ल खराब होने का अंदेशा है। उदंती-सीतानदी में छोड़े जाने की स्थिति में असम से लाए गए वनभैंसों की शुद्धता प्रभावित होगी।