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गरियाबंद के लचकेरा गांव में हजारों की संख्या में साइबेरियन पक्षी पहुंच चुके हैं। यहां पक्षी पीपल, आम, कहुआ, इमली के वृक्ष में अपना डेरा डालते हैं। 

गरियाबंद। मानसून की दस्तक से पहले ही गरियाबंद के लचकेरा गांव में हजारों की संख्या में साइबेरियन पक्षी पहुंच चुके हैं। यहां रहने वाले ग्रामीणों का कहना है कि मानसून तक यहां लाखों की संख्या में यह पक्षी पीपल, आम, कहुआ, इमली के वृक्ष में अपना डेरा डालते हैं। गांव के चारों तरफ आपको पक्षी ही पक्षी नजर आएंगे। इन पक्षियों को ग्रामीण अपने परिवार का सदस्य मानते हैं।

ग्रामीणों ने इन पक्षियों की सुरक्षा के लिए गांव में नियम कानून बनाए हैं। इसके मुताबिक अगर कोई इन्हें नुकसान पहुंचाता है तो 10 हजार का जुर्माना लगेगा। वहीं शिकार करते या नुकसान पहुंचाते देखकर बताने वाले को 1 हजार का इनाम दिया जाएगा। हालांकि शिकार पर प्रतिबंध के बाद कई दशकों से अर्थदंड की नौबत नहीं आई है।

क्षेत्र इन विदेशी पक्षियों के लिए अनुकूल

लचकेरा गांव और आस-पास का क्षेत्र इन विदेशी पक्षियों के लिए अनुकूल है, जो खास तौर पर प्रजनन के लिए यहां आते है। खाने के लिए काफी भोजन मिल जाता है। ओपन बिल स्ट्रोक पक्षी का खास आहार मछली, घोंघा, केकड़ा और कीट है। दीपावली के समय पक्षी वापस अपने देश के लिए उड़ जाते हैं। बताया जाता है कि यह पक्षी बांग्लादेश, कंबोडिया, चीन, भारत, आलोस, मलेशिया, म्यामार, नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका, थाईलैंड और वियतनाम में पाए जाते हैं।

गांव में मोबाइल टॉवर तक लगने नहीं देते

गांव के सरपंच उदय राम निषाद ने बताया कि जहां एक ओर इन्हें नुकसान पहुंचाने पर दंड रखे हैं। वहीं इन पक्षियों को किसी तरह के रेडिएशन से नुकसान न पहुंचे इसके लिए ग्रामीण गांव में मोबाइल टॉवर तक लगने नहीं देते। ग्रामीण बताते है कि यह पक्षी खास तौर पर गांव में प्रजनन के लिए आते है। घोसला बनाने के बाद करीब 1 से दो महीने के भीतर ये अंडे देते है। इन पक्षियों के आते ही ग्रामीण मानसून का दस्तक मानते है और खेती किसानी का कार्य शुरू कर देते हैं। ग्रामीणों ने बताया कि यह पक्षी कृषि कार्य में काफी फायदा पहुंचाते हैं। खेत में कीड़ों को खा जाते हैं, जिससे फसलों में बीमारी और कीड़े नहीं लगते इनके बीट से भी फसलों के लिए काफी फायदा होता है, जो खाद का काम करता है।

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