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प्रदेश की जेलों के बारे में अब तक दिए गए डाटा और जानकारी से हाईकोर्ट संतुष्ट नहीं हुआ।

बिलासपुर।  हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने महाराष्ट्र, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर छत्तीसगढ़ में ओपन जेल की संभावना और यहाँ जेलों की वास्तविक स्थिति पर राज्य शासन से शपथपत्र पर विस्तृत जानकारी मांगी है। अगली सुनवाई अगस्त में निर्धारित की गई है। शुक्रवार को चीफ जस्टिस की डीबी में हुई सुनवाई के दौरान शासन की ओर से प्रदेश की जेलों के बारे में अब तक दिए गए डाटा और जानकारी से हाईकोर्ट संतुष्ट नहीं हुआ। कोर्ट ने कहा कि राज्य शासन प्रदेश में अलग- अलग स्थानों पर जेलों की स्थिति को देखकर पूरी समीक्षा करे। किस जेल में बंदियों को किस तरह की परेशानी है इसकी जानकारी ली जाए। विशेषकर लंबी सजा काट रहे बंदियों की स्थिति को लेकर एक विस्तृत जानकारी अदालत में शपथपत्र पर प्रस्तुत की जाए। इसमें वास्तविक कार्य योजना जेलों को लेकर क्या चल रही है यह भी बताया जाए।

दरअसल,  प्रदेश में स्थित विभिन्न जेलों से एकत्र किए गए आंकड़ों के आधार पर स्वतः संज्ञान से एक प्रकरण हाईकोर्ट ने दर्ज किया है। इसमें यह देखा गया कि, ऐसे 340 कैदी है, जिन्हें कि 20 साल से अधिक कारावास की सजा सुनाई गई है और उनकी अपील भी सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी है। ऐसे में यह सवाल उठाया गया कि उन कैदियों की क्या दुर्दशा होगी, जिन्हें इतने लंबे समय तक कारावास में रहना पड़ेगा। एक मामले के आरोपी के परिजन आनम अंसारी ने विभिन्न तिथियों पर हाईकोर्ट को पत्र लिखकर कहा था कि, मो. अंसारी हत्या के मामले में धारा 302 के तहत 2010 से जेल में बंद है। हाईकोर्ट ने 21 अप्रैल 2023 को उनकी याचिका खारिज भी कर दी है। पत्र में कहा गया कि, घर में कमाने वाले एकमात्र व्यक्ति के जेल में बंद होने के कारण वे लोग बदहाली में जीवन जी रहे हैं। मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रवींद्र कुमार अग्रवाल की डिवीजन बेंच में चल रही है।

अपराधी के साथ उसका परिवार भी प्रभावित होता है

याचिका में यह भी बात सामने आई कि जब किसी अपराधी को जेल में बंद किया जाता है, तो न केवल उस व्यक्ति को कष्ट होता है बल्कि पूरा परिवार प्रभावित होता है। लंबे समय तक कारावास से गुजरने के बाद, जब कैदी को उसके जीवन के अंतिम समय में रिहा किया जाता है, तो वह किसी भी तरह से अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करने में असमर्थ होता है। ऐसे में, राज्य का यह कर्तव्य है कि वह सभी संभावनाओं का पता लगाए। किसी कैदी को रिहा होने पर कानून का पालन करने वाले नागरिक का सामान्य जीवन जीने में मदद कैसी की जा सकती है।

कुल 6 बिंदुओं पर डाटा एकत्र किए गए

ध्यान रहे कि इस पत्र के आधार पर ही कुल 6 बिंदुओं पर डाटा एकत्र किए गए। इसमें छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित केंद्रीय जेलों और जिला जेलों में महिला कैदियों के साथ रहने वाले बच्चे, 20 वर्ष से अधिक की सजा वाले कैदी, जेल की क्षमता और वास्तव में जेल में रखे गए कैदियों की कुल संख्या, बढ़ई, प्लंबर, पेंटर, माली, किसान आदि जैसे कुशल पेशेवर कैदियों की कुल संख्या, वरिष्ठ नागरिक की श्रेणी में आने वाले कैदी और जेल से भागने की कोशिश करने वाले कैदियों की संख्या कितनी है यह जानकारी जुटाई गई। इसमें पाया गया कि जेल में महिला कैदियों के साथ 82 बच्चे रह रहे हैं। साथ ही 340 अपराधी ऐसे हैं जिन्हें 20 वर्ष से अधिक कारावास की सजा हुई है और उनकी अपीलें सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी हैं।

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