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स्वास्थ्य विभाग की अधोसंरचना एवं सेवाओं के प्रबंधन पर ऑडिट के बाद इसमें भारी अनियमितता की ओर ध्यान खींचा है। 

रायपुर। महालेखाकार ने स्वास्थ्य विभाग की अधोसंरचना एवं सेवाओं के प्रबंधन पर ऑडिट के बाद इसमें भारी अनियमितता की ओर ध्यान खींचा है। यहां पर अरबों की खरीदी और वित्तीय आवंटन का उपयोग  सही ढंग से नहीं कर पाने की भी टिप्पणी की है। सीएजी के द्वारा मार्च 2022 को समाप्त हुए वर्ष तक की ऑडिट का ब्योरा दिया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 33 करोड़ रुपए से ज्यादा की दवाएं कालातीत हो गईं। 50 करोड़ के मेडिकल उपकरण अनुपयोगी पड़े रहे। 24 करोड़ रुपए की दवाएं ब्लैक लिस्टेड कंपनियों से खरीदी गई। कोविड के दौरान बिना अनुशंसा 23 करोड़ रुपए की दवाएं खरीदी गईं। 838 स्वास्थ्य संस्थानों के पास अपना भवन नहीं। 

सीएजी ने वर्ष 2016-22 के दौरान राज्य किए आंकलन के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है। विधानसभा में शुक्रवार को सीएजी की रिपोर्ट सदन के पटल पर रखी गई। मार्च 2022 को समाप्त वर्ष तक के लिए तैयार ऑडिट रिपोर्ट में बताया गया कि जिन कंपनियों ने घटिया दवा की सप्लाई की, आपूर्ति कर्ताओं से 1.69 करोड़ का शास्ति लगाया न ही 24.60 लाख की डैमेज शुल्क लिया गया। सीजीएमएससी में दवाओं की सामाग्री प्रबंधन में कमी थी। उनके गोदामों में उपलब्ध भंडार, पिछली खपत एवं भविष्य की आवश्यकताओं पर विचार किए बिना क्रय आदेश दिए गए। इसके परिणाम स्वरूप 33.63 करोड़ की दवाएं कालातीत हो गई।

डॉक्टरों-स्टाफ नर्स व अन्य स्टाफ की कमी 

स्वास्थ्य विभाग में स्वीकृत पदों की तुलना में अधिकारी-कर्मचारियों की भर्ती में बहुत बड़ा अंतर है। रिपोर्ट के मुताबिक, 23 जिला अस्पतालों में 33 प्रतिशत विशेषज्ञ डॉक्टर की कमी है। पैरामेडिकल स्टाफ 13 प्रतिशत तक कम हैं। सीएचसी की हालत और खराब हैं, यहां 72 प्रतिशत विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी हैं। 32 प्रतिशत नर्स और 36 प्रतिशत पैरामेडिकल स्टाफ की कमी है। राज्य के कई सरकारी मेडकिल कॉलेजों में एक भी विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं है, जिसके चलते आठ-आठ साल से वो विभाग भी शुरू नहीं हो पाया है। जगदलपुर मेडिकल कॉलेज में कैंसर यूनिट नहीं शुरू हो सकी। इसी तरह राजनांदगांव मेडिकल कॉलेज में विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं होने के चलते हृदय रोग विज्ञान, किडनी और तंत्रिका विज्ञान विभाग का ओपीडी नहीं शुरू हो सका। 

स्वास्थ्य नीति तैयार नहीं

छत्तीसगढ़ शासन ने एनएचसी के व्यापक उद्देश्यों एवं लक्ष्यों को प्राप्त करने राज्य स्वास्थ्य नीति तैयार नहीं की है। स्वास्थ्य विभाग के अंतर्गत इन वर्षों में 34100 करोड़ रुपए का बजट आवंटन में से 27989 करोड़ रुपए व्यय किया गया। जो 82 प्रतिशत है। 2016-22 के दौरान छत्तीसगढ़ शासन की हिस्सेदारी 61 से घटकर 58 प्रतिशत हो गई। भारत सरकार की हिस्सेदारी 39 से बढ़कर 42.7 प्रतिशत हो गई। राज्य में असंचारी रोग जैसे हृदय रोग, मधुमेह, फेफड़ों के रोग, कैंसर एवं उच्चरक्त चाप मामले 2016-17 में 24144 से बढ़कर 2021-22 में 12,13113 हो गए। हालांकि एनसीडी कार्यक्रम के अंतर्गत प्राप्त 36 करोड़ रुपए की निधि मार्च 2022 तक उपयोग में नहीं लाई गई।

3753 करोड़ की खरीदी में अनियमितता

सीएजी रिपोर्ट में सीजीएमएससी की गंभीर खामियों को लेकर कहा गया है कि वर्ष 2016 से 2022 के बीच, सीजीएमएससी ने 3753 करोड़ रुपये की दवा, उपकरण और अन्य समान खरीदे हैं, इसमें भारी अनियमितताएं की गई हैं। मेडिकल सामानों की सेंट्रल एजेंसी होने के बावजूद 27 से 56 प्रतिशत खरीदी लोकल स्तर से करनी पड़ी, क्योंकि जरूरत के अनुसार क्रय नियमावली तैयार नहीं की जा सकी। 278 निविदाएं सीजीएमएससी की ओर से निकाली गई, लेकिन इनमें से 165 टेंडर दो-दो साल तक फाइनल नहीं किए जा सके। ऐसा होने के कारण समय पर दवाओं की सप्लाई नहीं हुई और महंगे दाम पर स्थानीय स्तर पर खरीदी करनी पढ़ी। अस्पतालों में मशीनों की जरुरत कितनी है, इसे ऑपरेट कैसे किया जाएगा, इसका परीक्षण किए बिना उपकरण खरीदे गए। ऐसे 50 करोड़ के उपकरण बेकार पड़े हैं। सीजीएमएससी ने ब्लैकलिस्टेड कंपनियों से करीब 24 करोड़ की दवाएं खरीद लीं।

दूसरी तरफ जरूरी दवाएं ही नहीं

सात जिलों में डीएच के लिए आवश्यक 272 दवाओं में से 103 दवाएं उपलब्ध नहीं थी। 14 सीएचसी में आवश्यक 143 ईडीएल दवाओं में से 39 दवाएं उपलब्ध नहीं थी। लेखा परीक्षा में वहीं कोविड-19 से संबंधित वस्तुओं के क्रय में अनियमितता मिली है। सीजीएमएससी ने कोविड समिति की अनुसंशा के बिना 23.13 करोड़ रुपए की वस्तुओं की खरीदी की थी, जो कि अनियमित थी। कोविड काल में ऑक्सीजन प्लांट लगाए गए। लिक्विड टैंक खरीदे गए, लेकिन उसका इस्तेमाल नहीं हुआ। यही नहीं, दवा और उपकरण खरीदी के लिए सीजीएमएससी के सॉफ्टवेयर में इंटीग्रेशन नहीं होने के कारण पेमेंट की ओवरलैपिंग भी हुई।
 

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