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समोदा नहर अंचल के दर्जनों गांवों के लिए वरदान तो बना, लेकिन किसान कामराज वर्मा के लिए सिंचाई विभाग के अफसरों ने इस नहर को अभिशाप बना दिया।

कुश अग्रवाल- पलारी। छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार जिले में सिंचाई विभाग के अफसरों की कार्यशैली किसानों पर किस कदर भारी पड़ रही है, इसका जीता जागता उदाहरण पलारी तहसील के ग्राम वटगन के किसान कामराज वर्मा हैं। 15 साल पहले किसान कामराज वर्मा की 10 एकड़ की कृषि भूमि समोदा डायवर्सन नहर निर्माण के लिए अधिग्रहित कर ली गई है। यहां तक तो सब कुछ ठीक है लेकिन, किसान को बिना मुआवजा दिए ही जबरदस्ती जमीन पर नहर बना दी गई है। जिससे अब यह किसान जमीन रहते हुए भी भूमिहीन हो गया है।

करोड़ों की जमीन का मालिक दर-दर की ठोकरें खा रहा

कामराज वर्मा की करोड़ों की जमीन नहर में समा जाने के बाद किसान मुआवजे के लिए सालों से अफसरों की चौखट पर दस्तक दे रहा है। किसान ने मुआवजे के लिए न्यायालय का दरवाजा भी खटखटाया है। लेकिन सिचाई विभाग के अफसरों की दमनकारी नीति के आगे किसान बेबस नजर आ रहा है। किसान की समस्या पर ना ही जिले के आला अधिकारी कोई ध्यान दे रहे हैं। 

भूखों मरने की नौबत आई

किसान कामराज वर्मा की बजुर्ग मां भूरी बाई वर्मा 75 वर्ष के नाम से ग्राम वटगन में कृषि भूमि है, जिसमें भूरी बाई के दो बेटों के द्वारा खेती किसानी कर गुजर बसर करती थी। लेकिन बीते 15 वर्ष पूर्व उनकी जमीन समोदा डायवर्सन नहर निर्माण के लिए सिंचाई विभाग ने अधिग्रहित कर ली है। अब पिछले 10 वर्षों से किसान के सामने भूखों मरने की नौबत आ गई है। उसे अब तक अपनी जमीन का मुआवजा नहीं मिला, वही जो 10 वर्ष तक उसकी फसलों का नुकसान हुआ सो अलग। किसान अब दूसरे की जमीन ठेके में लेकर एवम मनरेगा में काम कर अपने परिवार का गुजर बसर कर रहा है। पीड़ित किसान कामराज वर्मा पर दो बेटियां, एक बेटा और 75 वर्षीय बुजुर्ग मां के भरण-पोषण की जिम्मेदारी है।

मां-बाप का सपना रह गया अधूरा

मां बाप का अरमान रहता है कि, अपने बेटे-बेटियों की शादी धूमधाम से करें, लेकिन सिंचाई विभाग के अफसरों की मनमर्जी के कारण उनकी खुशियों पर ग्रहण लग गया है। किसान की पत्नी ने बताया कि, आर्थिक मजबूरी की वजह से अपने बेटे-बेटियों की शादी एक वर्ष पूर्व मंदिर में जयमाला रस्म से करनी पड़ी। मां रोते हुए बताती हैं कि सभी माता-पिता का सपना रहता है कि, अपनी बेटी को अपने आंगन से विदा करूं, और बेटे की बारात घर से निकले। रिश्तेदारों, पास-पड़ोस के लोगों के साथ अपनी खुशियां बांटें, लेकिन आर्थिक मजबूरी की वजह से हमारे खुशियों पर ग्रहण लग गया है। मजबूरी में मंदिर में अपने बच्चो की शादी करनी पड़ी।

बुजुर्ग मां की आंखें भर आईं

वहीं बुजुर्ग मां भूरी बाई वर्मा ने भी कहा कि, मेरा बेटा किसी तरह रोजी मजदूरी कर मेरी देख-रेख एवं इलाज करवा रहा है। उन्होंने विनती की है कि, प्रशासन हमारी मजबूरी को देखते हुए हमें हमारी जमीन का पैसा दे। आज भी किसान का मकान कच्चा खपरेल का बना हुआ है ,जिस पर रहकर इनका परिवार गुजर बसर करता है। 

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