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कांगेर घाटी मॉनिटरिंग में घोसलों से पहाड़ी मैना के बच्चों को उड़ना सिखाते हुए देखे जा रहे हैं उद्यान के कर्मी और मैना मित्र। मैना के आवासों की सुरक्षा के लिए किए जा रहे हैं प्रयास।

महेंद्र विश्वकर्मा-जगदलपुर। छत्तीसगढ़ की प्रतिष्ठित राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना (ग्रैकुला रिलिजियोसा) अपनी मधुर आवाज और आकर्षक रूप-रंग के लिए मशहूर है। पहाड़ी मैना का संरक्षण और संवर्धन बस्तर के कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में किया जा रहा है। 

इन दिनों पहाड़ी मैना के प्रजनन काल का अंतिम समय है, जो इस क्षेत्र के एवियन कैलेंडर में एक महत्वपूर्ण चरण को दर्शाता है। पहाड़ी मैना का प्रजनन काल सीमा के आधार पर थोड़ा भिन्न होता है, लेकिन अधिकांश अप्रैल से जुलाई के बीच में प्रजनन करते हैं। एक मोनोगेमस जोड़ा एक पेड़ में कटफोड़वा द्वारा बनाए गए एक छेद की तलाश करता है। नर और मादा मिलकर टहनियों, पत्तियों और पंखों को लेजाकर अपने घोंसले में बिछाते हैं तथा अंडे देते हैं। इस वर्ष कांगेरघाटी में मॉनिटरिंग किए जा रहे घोंसलों से पहाड़ी मैना के बच्चों को उड़ना सीखाते हुए देखे जा रहे हैं। 

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बनाया गया है अनुकूल वातावरण

जैसे-जैसे मानसून करीब आता है, इन विशिष्ट पक्षियों के लिए प्रजनन अवधि के अंत का संकेत मिलता है। वन विभाग के कर्मचारियों और मैना मित्र समान रूप से उनके आवासों की सुरक्षा के लिए प्रयास पर किए जा रहे हैं। कांगेर घाटी के मैना मित्रों और मैदानी कर्मचारी द्वारा इनके घोसलों को संरक्षित करने और इन पक्षियों के लिए अनुकूल वातावरण सुनिश्चित करने में कोई कसर नहीं छोड़ा। साथ ही कांगेरघाटी के विभिन्न हिस्सों पर कटफोड़वा द्वारा बनाए गए घोंसलों में इनके रहवास को सुरक्षित बनाने हेतु इनके ब्रीडिंग सीजन में लगातार निगरानी (मॉनिटरिंग) किया जा रहा है। पहाड़ी मैना की विशिष्ट काली पंखुड़ी और जीवंत पीले कलगी ने इसे छत्तीसगढ़ के लिए गौरव का प्रतीक बना दिया है, जहां इसकी आबादी और आवासों के संरक्षण के प्रयास को प्राथमिकता दी जा रही है।

जागरूकता अभियान जुलाई से

उद्यान के निदेशक के दिशा निर्देश से मानसून सीजन में संरक्षण योजनाओं का प्रयास आरभ हो चुका है। मैना शोधार्थी युगल जोशी द्वारा 19 जून को मैना मित्रों के साथ बैठक कर मानसून सीजन में स्कूली बच्चों तथा ग्रामीणों में जागरूकता हेतु कांगेर घाटी से लगे 40 गावों में पहाड़ी मैना एवं वन्य जीव के संरक्षण हेतु जागरूकता अभियान के विषय पर चर्चा किया गया जो आने वाले जुलाई माह से शुरू किया जाना है। 

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कांगेर घाटी से लगे 25 गांवों में 600 से भी ज्यादा मैना विचर रहे

कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के निदेशक चूड़ामणी सिंह ने कहा कि, इन पक्षियों को निवास स्थान के नुकसान और अवैध व्यापार जैसे खतरों से बचाने के लिए निरंतर सतर्कता बरतने की अवश्यकता है और इनके संरक्षण के लिए लगातार प्रयास किया जा रहा है। इस वर्ष 11 मैना मित्रों द्वारा लगभग 150 घोसलों की निगरानी (मॉनिटरिंग) की गई। जिसके फलस्वरूप कांगेर घाटी से लगे 25 गांवों में 600 से अधिक मैना विचरण करते देखे जा रहे हैं।

पर्यटक जल्द सुन सकेंगे मैना की मधुर आवाज

इस सीजन की सफलता संरक्षण प्रयासों और जन जागरूकता पहलों के महत्व को देना होगा। जैसे-जैसे बस्तर की घाटियों और जंगल मानसून की बारिश के लिए तैयार होते हैं, पहाड़ी मैना का प्रजनन काल मानवीय गतिविधियों और जैव विविधता के संरक्षण के बीच नाजुक संतुलन की मार्मिक याद दिलाता है। कांगेर घाटी में चल रहे प्रयास यह सुनिश्चित करेंगे कि आने वाली पीढ़ियां जंगल में इन करिश्माई पक्षियों की उपस्थिति और मधुर ध्वनि का आनंद ले सकें।

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