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अनवर ढेबर आबकारी विभाग में मंत्री की हैसियत रखता था। ईडी द्वारा जारी बयान के मुताबिक, जांच में यह खुलासा हुआ है।

रायपुर। शराब घोटाले के आरोपी अनवर ढेबर तथा एपी त्रिपाठी को मेरठ जेल से वापस रायपुर लाने के बाद ईडी ने दोनों आरोपियों से पूछताछ करने रिमांड पर  लिया है। अनवर तथा एपी से पूछताछ के आधार पर ईडी ने बयान जारी कर दावा किया है कि,अनवर ढेबर ने पूर्व आईएएस अनिल टुटेजा के साथ मिलकर सिंडीकेट बनाया था। अनिल टुटेजा विभाग में अपने पसंदीदा अफसरों की नियुक्ति कराता था।

ईडी के अनुसार, अनवर ढेबर आबकारी विभाग में मंत्री की हैसियत रखता था। ईडी द्वारा जारी बयान के मुताबिक, जांच में यह खुलासा हुआ है कि अरुणपति त्रिपाठी ने सरकारी शराब दुकान, जिसे पार्ट-बी कहा जाता है, के माध्यम से बेहिसाब शराब बिक्री की योजना को लागू करने में अहम भूमिका निभाई। उसने ही 15 जिले, जहां अधिक शराब बिक्री होती थी और राजस्व आता था, उन जिलों के आबकारी अधिकारियों के साथ मीटिंग कर अवैध शराब बेचने के निर्देश दिए थे। इंडी के अनुसार, एपी त्रिपाठी ने ही विधु गुप्ता के साथ डुप्लीकेट होलोग्राम की व्यवस्था की थी। 

सिंडीकेट ने की 21 सौ करोड़ की अवैध कमाई 

 शराब घोटाले की जांच में ईडी ने पाया कि घोटाले की वजह से राजस्व का बड़ा नुकसान हुआ। घोटाले के माध्यम से सिंडिकेट ने 21 सौ करोड़ रुपए से ज्यादा अवैध कमाई की है। शराब घोटाला मामले में ईडी ने घोटाले में शामिल आरोपियों की 18 चल और 161 अचल संपत्तियों को जब्त किया है, जिनकी कीमत करीब 205.49 करोड़ रुपए आंकी गई है।

तीन वर्षों तक चला खेल

ईडी के दावों के मुताबिक, शराब घोटाले का खेल वर्ष 2019 से 2022 के बीच जारी रहा। घोटाला करने कई तरीके अपनाए गए, उनमें नकली होलोग्राम का इस्तेमाल भी शामिल है। ईडी ने घोटाले को तीन केटेगरी ए बी सी में बांटा है। तीन केटेगरी में जो घोटाला किया गया, वह इस तरह से है।

पार्ट ए - छत्तीसगढ़ स्टेट मार्केटिंग

कॉर्पोरेशन लिमिटेड (शराब की खरीद और बिक्री के लिए राज्य के निकाय) की ओर से शराब की प्रत्येक पेटी के लिए डिस्टलर्स से रिश्वत ली गई थी। इस पार्ट में सीएसएमसीएल के एमडी अरुणपति त्रिपाठी को अपने पसंद के डिस्टिलरी की शराब को परमिट करना था। जो रिश्वत-कमीशन को लेकर सिंडीकेट का हिस्सा हो गए थे।

पार्ट बी - सरकारी शराब दुकान के जरिए

बेहिसाब कच्ची और देशी शराब की अवैध बिक्री की गई। उक्त बिक्री नकली होलोग्राम से हुई, जिससे राज्य के खजाने में एक भी रुपया नहीं पहुंचा और बिक्री की सारी राशि सिंडीकेट की जेब में पहुंची।

पार्ट सी - कार्टेल बनाने और बाजार में

निश्चित हिस्सेदारी रखने की अनुमति देने के लिए डिस्टलर्स से रिश्वत ली गई और एफएल 10 ए लाइसेंस धारक, जो विदेशी शराब उपलब्ध कराते थे, उनसे भी कमीशन लिया गया।

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