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बृजमोहन अग्रवाल को बीजेपी ने रायपुर लोकसभा सीट से प्रत्‍याशी बनाया है। 1996 से इस सीट पर हमेशा भाजपा को जीत मिली है। 

राजकुमार ग्वालानी - रायपुर। रायपुर लोकसभा भारतीय जनता पार्टी का अभेद गढ़ है। 1996 से इस सीट पर हमेशा भाजपा को जीत मिली है। भाजपा ने जहां अब तक सात बार विधानसभा का चुनाव जीतने वाले बृजमोहन अग्रवाल को मैदान पर उतारा है, वहीं कांग्रेस ने रायपुर पश्चिम से विधानसभा का चुनाव हारने वाले विकास उपाध्याय पर दांव खेला है। एक तरफ जहां भाजपा रिकॉर्ड मतों से जीत का दावा कर रही है, वहीं कांग्रेस भी जीत का भरोसा जता रही है। रायपुर लोकसभा की सीट कांग्रेस के लिए 1996 के बाद सपना ही बनकर रह गई है। वैसे 1952 से 1971 तक इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा है, लेकिन 1996 के बाद कांग्रेस इस सीट पर वापसी नहीं कर सकी। रायपुर की सीट से कांग्रेस के कई दिग्गज नेता हार चुके हैं। वैसे पहले जीते भी हैं। 

लोकसभा चुनाव में रायपुर की सीट का अपना बड़ा महत्व है। छत्तीसगढ़ के अलग राज्य बनने के बाद इस राजधानी की सीट का महत्व और बढ़ गया है। यह सीट हमेशा से चर्चा में रही है। इस पर कांग्रेस के कई दिग्गज नेता अपनी किस्मत आजमा चुके हैं। रायपुर लोकसभा में पहली बार 1952 में चुनाव हुआ था। तब इस सीट पर पहली बार कांग्रेस के भूपेंद्र नाथ मिश्रा जीते थे। इसके बाद से 1971 तक इस सीट पर पांच बार कांग्रेस का कब्जा रहा। पहली बार इस सीट 1977 में जनता पार्टी के पुरुषोत्तम कौशिक ने इस सीट से विद्याचरण शुक्ल को मात देकर कांग्रेस से यह जीत छीनी थी। 1980 के मध्यावधि चुनाव में कांग्रेस के केयर भूषण ने यह सीट जीतकर फिर से कांग्रेस के पाले में डाल दी। 1984 के चुनाव में एक बार फिर से केयर भूषण की जीत हुई। यह रमेश बैस का पहला लोकसभा चुनाव था, इसमें उनको मात मिली।

1989 में पहली बार जीते रमेश बैस

रायपुर लोकसभा से रमेश बैस ने 1989 में पहली जीत केयर भूषण को मात देकर प्राप्त की, लेकिन दो साल बाद हुए मध्यावधि चुनाव में रमेश बैस कांग्रेस के विद्याचरण शुक्ल से हार गए। तब श्री बैस महज 959 मतों से हारे थे। इस हार के बाद रमेश बैस ने 1996 के चुनाव से जीत का जो सिलसिला प्रारंभ किया, वह 2014 तक चला। उन्होंने लगातार छह बार यह सीट जीती।

नहीं टिक पाए कांग्रेस के दिग्गज

रायपुर की लोकसभा सीट ऐसी रही है जिस पर कांग्रेस के दिग्गज नेता विद्याचरण शुक्ल, पंडित श्यामा चरण शुक्ल से लेकर भूपेश बघेल तक नहीं टिक सके हैं। रमेश बैस से अपने दौर में कांग्रेस से सभी दिग्गज नेताओं को मात दी। रमेश बैस ने धनेंद्र साहू, जुगल किशोर साहू सत्यनारायण शर्मा को भी हराया। छत्तीसगढ़ राज्य अलग बनने के बाद 2004 में हुए चुनाव में रमेश बैस ने पंडित श्यामा चरण शुक्ल को हराया। इसके बाद 2009 के चुनाव में कांग्रेस ने रमेश बैस के सामने भूपेश बेघल को मैदान में उतारा। भूपेश बघेल को भी हार का सामना करना पड़ा। 2014 का चुनाव रमेश बैस का आखिर चुनाव था। इसमें रमेश बैस ने सत्यनारायण शर्मा को मात दी।

जब कटा बैस का टिकट

2019 के चुनाव में भाजपा ने एक अलग तरह का फैसला किया और छत्तीसगढ़ के सभी सांसदों का टिकट काट दिया। इसके पीछे का एक बड़ा कारण यह रहा कि 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को कांग्रेस से करारी हार का सामना करना पड़ा। जब सभी सांसदों का टिकट कटा, तो रमेश बैस का भी टिकट कट गया। सबको भरोसा था कि लगातार छह बार जीतने वाले रमेश बैस को जरूर मैदान पर उतारा जाएगा, लेकिन भाजपा ने उनका भी टिकट काट दिया और सुनील सोनी को मैदान पर उतारा। कांग्रेस ने एक बार फिर से अपनी परंपरा के मुताबिक नए चेहरे के रूप में प्रमोद दुबे को मैदान पर उतारा। कांग्रेस को भरोसा था कि 1996 के बाद इस बार तो जरूर उनको इस सीट पर जीत मिल जाएगी, लेकिन भाजपा ने नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ा और भाजपा के सुनील सोनी जीत गए।

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