जगदलपुर। देश में इन दिनों यूपी के देवरिया में शहीद कैप्टन अंशुमान की पत्नी के कीर्ति चक्र लेकर मायके जाने की चर्चा चल रही है, दूसरी ओर बस्तर की बेटी सास की सेवा करते हुए उसे चारधाम की यात्रा कराते हुए पूरा ख्याल रख रही है। हम बात कर रहे है शहीद प्रधान आरक्षक श्रवण कश्यप की, जिन्होंने वर्ष 2021 अप्रैल माह के पहले सप्ताह छग के बीजापुर जिले के तरेंम इलाके में नक्सलियों के मिलिट्री बटालियन हेड हिड़मा की बटालियन के साथ हुए मुठभेड़ में बहादुरी से लड़ाई लड़ते हुए देश के लिए अपनी जान दी थी।
श्रवण के शहीद होने के बाद उनकी पत्नी दुतिका कश्यप स्कूल में भृत्य की नौकरी कर अपना दायित्व निभाते न केवल घर परिवार की जिम्मेदारी उठा रही है, बल्कि सास व परिवार के साथ रहते हुए पूरी सेवा कर बेटे का फर्ज भी निभा रही है। शिक्षित होने के बावजूद वह स्वयं अनुकम्पा नियुक्ति नहीं लेने का फैसला लेते हुए अपने दो मासूम बेटों की परवरिश कर रही है, वह उन्हें शिक्षित कर अनुकम्पा नियुक्ति के लिए लायक बनाने प्रयासरत है।
चारधाम के दौरान ही पति की अस्थियां गंगा में विसर्जित कीं
दुतिका कश्यप ने बताया कि चारधाम की यात्रा के दौरान उसने परिवार के साथ वर्ष 2022 में पति की अस्थियों को प्रयागराज स्थित गंगा नदी में विसर्जित किया। इसके बाद उसने सासू मां, डेढ़ सास व स्वयं की मां के साथ चारधाम की यात्रा कर दर्शन लाभ लिया। उसने बताया कि पति श्रवण के एक भाई व एक बहन भी है, जिनके साथ भी वह पारिवारिक संबंध रखते हुए बेटे का फर्ज निभा रही है। हर तीज त्योहार में वह दुख सुख में वह अपने ससुराल में ही पूरे परिवार के साथ रहती है उन्हे बेटे की कमी महसूस होने नहीं देती है।
शहादत के समय गर्भवती थी
शहीद की पत्नी दुतिका कश्यप ने बताया कि पति के शहादत के समय बड़ा बेटा वरुण लगभग 4 साल का था। वहीं गर्भ में पल रहा दूसरा बेटा वेद इस समय तीन वर्ष का है। स्वयं शिक्षित होने के बावजूद उसने अनुकम्पा नियुक्ति नहीं ली और अपने दोनों बेटों को पढ़ा लिखाकर शिक्षित करना चाहती है, वहीं बड़े बेटे वरुण को इस समय निजी अंग्रेजी माध्यम स्कूल में पढ़ा रही है। उसके बालिग होने पर पिता की अनुकम्पा नौकरी उसे दिलाने प्रयासरत है। सास पैतृक घर बनियागांव में परिवार के अन्य सदस्यों के साथ रहती है और वह बकावण्ड कन्या छात्रावास में भृत्य के पद नौकरी कर रही है। बकावण्ड में ही उसका मायका भी, लेकिन हर माह वह अपने सास व परिवार के अन्य सदस्यों से मिलने जाती है और उनकी हर संभव मदद करती है, ताकि उन्हें बेटे की कमी महसूस न हो।