रायपुर। प्रदेश के शासकीय विद्यालयों में छात्रों को जो भोजन परोसा जा रहा है, उससे नन्हे बच्चों का पेट तो भर रहा है, लेकिन उन्हें प्रोटीन नहीं मिल पा रहा है। बच्चों की तंदुरुस्ती के लिए फिक्रमंद सरकार ने उनको सेहतमंद बनाने एक जिले में नाश्ते की शुरुआत भी की है, लेकिन मध्यान्ह भोजन की थाली की सेहत नहीं सुधर सकी है, इसकी वजह है खर्च। कई समूह कम खर्च में बच्चों को सेहतमंद भोजन उपलब्ध नहीं करा पा रहे हैं। बच्चों को अंडा और सोया मिल्क जैसी प्रोटीनयुक्त वस्तुएं देने के लिए पायलेट प्रोजेक्ट भी शुरू किया गया, लेकिन कोरोना के बाद यह प्रोजेक्ट भी ठंडे बस्ते में चला गया। अब हालात यह हैं कि अधिकतर जिलों में छात्रों को भोजन के नाम पर सिर्फ चावल और पतली दाल ही परोसी जा रही है। थाली में प्रोटीन शामिल होना तो दूर की बात, हरी सब्जी भी नहीं है।
राजधानी रायपुर में छात्रों को सेंट्रल किचन से खाना परोसा जा रहा है, इसलिए यहां खाने की गुणवत्ता कई जिलों की तुलना में अच्छी है, लेकिन जिस मात्रा में सब्जी होनी चाहिए उस मात्रा में हरिभूमि की पड़ताल में सब्जी नहीं मिली। अधिकतर दिन छात्रों को फ्राइड राइस और तड़के वाले दाल ही परोसे ही जा रहे हैं। गुरुवार को मेनू में हल्दी वाले चावल और पतली दाल ही रही। राजधानी सहित प्रदेश के अधिकतर जिलों में यही हालात हरिभूमि की पड़ताल में सामने आए।
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कर्ज और इमदाद के बूते मिल रहा भोजन
रायगढ़ शहर समेत ग्रामीण अंचल के ज्यादातर सरकारी स्कूलों में मध्याह्न भोजन व्यवस्था कर्ज और मदद के बदौलत चल रही है। मध्याहन भोजन पकाने के लिए सिलेंडर और व्यवस्थित शेड तक स्कूल परिसर में नहीं है। इसके बावजूद कुछ स्थानों पर मिड डे मील सिर फुटव्वल की वजह भी बन रहा है। बीते माह कलेक्टर जन दर्शन में अपनी शिकायत लेकर पहुंची धरमजयगढ़ के एक शासकीय विद्यालय की प्राचार्य ने बताया कि स्कूल के कुछ पुराने शिक्षक मध्याहन भोजन में गड़बड़ी कर फर्जी दर्ज संख्या दर्शाकर मीड डे मील की राशि की बंदरबांट कर रहे हैं, हालांकि न्योता भोज के नाम पर जिले के आला अधिकारियों से लेकर जन प्रतिनिधियों ने सरकारी स्कूलों में मध्याहन भोजन का स्वाद जरुर चखा था किंतु वर्षों से एक ही ढर्रे पर चल रहे मीड डे मील की गुणवत्ता अथवा इससे जुड़ी दिक्कत जानने समझने की जनमत ना तो निर्वाचित जनप्रतिनिधियों ने उठाई और ना ही अधिकारियों ने।
मानदेय बढ़ाने की बात हुई थी, 1500 ही नहीं मिले
मिड डे मील योजना के अंतर्गत रसोईया का काम करने वाले का कहना है कि, पिछले 3 महीने से हमें मानदेय नहीं मिला है। सरकार ने मानदेय 1500 से 1800 और फिर 2500 तक देने के बाद कही थी, लेकिन अब हमें 1500 रुपए ही नहीं मिले हैं। 1500 रुपए में आजकल घर की सब्जी भाजी तक नहीं आती।
एक कप चाय से भी कम है मध्याह्न भोजन की कीमत
महंगाई के दौर में जहां लोगों को 10 रुपए में एक कप चाय भी नहीं मिलती, वहीं सरकार पहली से पांचवीं कक्षा तक के बच्चों को 5 रूपए 69 पैसे और छठवीं से आठवीं तक के विद्यार्थियों को 8 रूपए 17 पैसे में हेल्दी बनाने का प्रयास कर रही है। स्कूलों में भोजन बनाने वालों को दाल, तेल, नमक, गैस, मसाला, सब्जी आदि की खरीदी इसी दर के अनुपात में करनी पड़ रही है, इसीलिए बच्चों को पतली दाल, पानी वाली सब्जी परोसी जा रही है। बच्चों को खीर, चना, गुड़, मौसमी फल भी देने की बात कही गई थी। यह भी गायब है।
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यहां तो डेढ़ साल से सब्जी ही गायब
अंदरूनी क्षेत्रों में स्थिति अधिक खराब है। बस्तर संभाग के बीजापुर एवं नारायणपुर जिले के अंदरूनी एवं सर्वाधिक नक्सल प्रभावित गांवों के स्कूलों में मध्यान्ह भोजन में बच्चों को पोषक आहार नहीं मिल पा रहा है। ऐसा मामला बीजापुर जिले के प्राथमिक शाला चिन्नाजोजेर में मिला, जहां बच्चों को सिर्फ चावल मिल रहा है। कई बच्चे दाल और सब्जी घर से लेकर आ रहे हैं। गरीब घरों के कई बच्चे सिर्फ चावल ही खा रहे हैं। ग्रामीणों ने बताया कि पिछले साल भी राशन की राशि मध्यान्ह भोजन संचालित करने वाले समूह को नहीं दी गई थी। इस साल भी नए सत्र से लेकर अब तक किसी भी प्रकार की राशि मध्यान्ह भोजन समूह को प्रदान नहीं की गई है। ऐसे दर्जनों स्कूल जिले में मौजूद हैं, जिनकी हालत इससे भी बद्दतर हैं।
सहयोग से चल रही योजना
बिलासपुर के मध्याह्न भोजन प्रभारी रामगोपाल नायक ने बताया कि, मिड डे मील योजना केन्द्र व राज्य सरकार के सहयोग से चलाई जा रही है। अप्रैल 2023 में प्रायमरी कक्षा के बच्चों को 5 रुपए 69 पैसे और मिडिल क्लास के बच्चों का 8 रुपए 17 पैसे में भोजन दिया जा रहा है।
मंगाएंगे जानकारी
बस्तर शिक्षा संभाग के संयुक्त संचालक संजीव श्रीवास्तव ने बताया कि, बच्चों के पोषण में डाका की शिकायत नहीं मिली है, शिकायत होने पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। इसकी जानकारी लेंगे और सातों जिले के डीईओ को निर्देश देंगे कि बच्चों को नियमानुसार भोजन दें।
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किए हैं बदलाव
अंबिकापुर जिला शिक्षा अधिकारी एके सिन्हा ने बताया कि, कलेक्टर के निर्देश पर मध्याह्न भोजन की क्वालिटी में बड़ा बदलाव आया है तथा बच्चों को नियमित पौष्टिक भोजन प्रदान किया जा रहा है।
चखा ही नहीं खीर और चना-गुड़
मध्याहन भोजन योजना के तहत बिलासपुर से लगे ग्राम लोखंडी प्राथमिक शाला के बच्चों को सोमवार से शनिवार तक चावल, दाल, हरी सब्जी, पंचरत्न दाल, फ्राई दाल, आलू मटर, आलू झुरगा, अचार, वेज पुलाव, टमाटर की फ्राई, पापड़, दूध के साथ खीर, अंकुरित चना, चना गुड़, मौसमी फल आदि परोसा जाना है, लेकिन बच्चों को मटर आलू, दाल, कुम्हड़ा, लौकी आदि की सब्जी ही परोसी जा रही है। बच्चों ने बताया कि खीर, चना-गुड़ और मौसमी फल उन्हें आज तक नहीं मिला। गुरुवार को इस स्कूल में बच्चे पतली दाल और चावल खाते नजर आए।
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दूसरे स्कूलों का भी यही हाल
बिलासपुर जिले के सभी ब्लाक में ग्रामीण इलाके के स्कूलों में मध्याहन भोजन योजना का बुरा हाल है। शहर के आसपास मंगला, घुटकू सहित अनेक गांवों के स्कूलों में बच्चों को मेनू के अनुसार भोजन नहीं परोसा जा रहा है, इसका मुख्य कारण भोजन के लिए कम राशि स्वीकृत होना बताया जा रहा है।
आलू खाओ, सेहत बनाओ!
जांजगीर-चांपा जिले में मध्याहन भोजन योजना का बुरा हाल है। आचार, पापड़ और सालाद तो दूर सप्ताह में दो दिन तरीके से हरी सब्जी भी नहीं मिलती। शासन द्वारा संचालित मध्याह्न भोजन योजना अंतर्गत बच्चों को सप्ताह के छह दिन मीनू के अनुसार पौष्टिक भोजन देना है, जिसमें हरी सब्जी, सोयाबीन की बड़ी के अलावा सप्ताह में एक दिन खीर और प्रतिदिन चना-मुर्रा के साथ मौसमी फल देने का नियम है, लेकिन जिले के अधिकांश स्कूलों में इसका पालन नहीं हो रहा है। गुरुवार 29 अगस्त को नवागढ़ ब्लॉक के तुस्मा के प्रायमरी व मीडिल स्कूल में बच्चों को हरी सब्जी की जगह आलू व सोयाबीन की बड़ी दी गई। दाल के नाम पर पानी ही रहा। आचार, पापड़ और मीठा के साथ चना-मुर्रा और मौसमी फल का कहीं पता नहीं था। यही हाल तनौद स्कूल में देखने को मिला। यहां पर भी बच्चों को आलू की सब्जी परोसा गया।