जगदलपुर। बस्तर के सर्वाधिक नक्सल प्रभावित गांवों में लाल आतंक से ग्रामीण परेशान हैं। नक्सली ग्रामीणों को पुलिस मुखबिर बताकर हत्या कर रहे हैं। शासन ने संभाग के 300 आत्मसमर्पित नक्सलियों एवं 18 नक्सल पीड़ितों को सहायक आरक्षक नियुक्त किया है, जो बस्तर ओलंपिक में खिलाड़ी के रूप में शामिल हुए। हरिभूमि ने कुछ नक्सल पीड़ित युवाओं से चर्चा की।
बीजापुर जिले के गंगालूर में वर्ष 2006 में लच्छू हेमला को नक्सलियों ने टंगिया से मारकर हत्या की थी, जिसके बाद मृतक का परिवार सलवा जुड़म शिविर में आश्रय लिया। लच्छू के पुत्र संतोष को शासन ने दो महीने पहले ही सहायक आरक्षक पद पर नियुक्त किया है। संतोष ने बताया कि गांव में पिता के निर्दोष होने के बाद भी नक्सलियों ने हत्या की,जिससे मां के साथ गांव छोड़ दिया और जिला मुख्यालय बीजापुर में रहने लगे। कबड्डी व खो-खो खेलने के लिए बस्तर ओलंपिक में पहुंचा हूं। विजय कुमार तालापल्ली ने बताया कि भाई गणेश की नक्सलियों ने पुलिस मुखबिर के आरोप में वर्ष 2008 में हत्या की। सरकार ने सहायक आरक्षक बनाया है। दोनों ने कहा कि नक्सली निर्दोष ग्रामीणों को मुखबिर बताकर हत्या कर रहे हैं। उनका यह क्रूर और अमानवीय चेहरा बस्तर विकास में बाधक बन रहा है।
इसे भी पढ़ें...आत्मसमर्पित नक्सलियों का अंतागढ़ दौरा : स्कूली बच्चों से की खास बातचीत, बस्तर में गृह मंत्री अमित शाह से मिलेंगे
नक्सलियों ने मारी गोली
सुकमा जिले के दोरनापाल थाना क्षेत्र के युवा नक्सल पीड़ित खिलाड़ी ने बताया कि वर्ष 2013 में नक्सलियों ने गांव में पहुंच कर पुलिस मुखबिर के आरोप में बाएं हाथ एवं दाएं पैर में गोली मारी, जिससे मैं दिव्यांग हो गया। शासन ने पुलिस में नियुक्त दी और चलने के लिए ट्राइसिकल दिया है।
आईडी ब्लॉस्ट से पैर से हुआ खराब
पामेड़ निवासी पोड्यामी मुन्ना ने बताया कि एसपीओ रहते समय वर्ष 2010 में नक्सल मुव्हमेंट के दौरान जंगल में आईडी ब्लॉस्ट हुआ, जिससे बायां पैर खराब हो गया। शासन ने सहायक आरक्षक बनाया है वर्तमान में दोरनापाल थाना में पदस्थ हूं। आने-जाने के लिए ट्राइसिकल मिला है। बस्तर ओलंपिक में खिलाड़ी के रूप में आया हूं।