Logo
यदि कुछ करने का जज्बा व जुनून हो तो व्यक्ति कुछ भी हासिल कर सकता है। जन्म से ही मूक बधिर बच्चे अपने पैरों पर खड़ा हो सकें इसके लिए विधायक की पहल...

सचिन अग्रहरि - राजनांदगांव।  राजनांदगांव के तत्कालीन विधायक उदय मुदलियार की पहल पर 1995-96 में इस संस्था की नींव रखी गई थी। हेमंत कहते हैं कि उन्होंने उदय भाई के कहने पर गायत्री परिवार के साथी यशवंत भाई ठक्कर और जुगल किशोर लड्डा से बात की। मूक बधिर शाला शुरू करने का जैसे ही उन्होने प्रस्ताव दिया, वे भी तत्काल राजी हो गए। श्री ठक्कर ने उन्हें रामदरबार के समीप अपने दस कमरे का एक मकान निशुल्क देने का ऐलान भी कर दिया। वे कहते हैं कि जब जगह मिल गई तो मूक बधिर बच्चों की तलाश शुरू की गई। 

सोमनी-ईरा गांवों के आसपास दौरा कर दो बच्चों को यहां लाया गया और उन बच्चों को शिक्षा देने के साथ इस स्कूल की नींव रखी गई। श्री तिवारी ने बताया कि, धीरे-धीरे स्कूल में बच्चों की संख्या बढ़ती गई और वर्तमान में 104 बच्चे आवासीय शाला में अध्ययनरत हैं। पिछले 28 सालों में करीब 1400 बच्चों को यहां ऐसे शिक्षा दी गई कि वे अपने पैरों में खड़े हो चुके हैं। कुछ बच्चे सरकारी नौकरी भी कर रहे हैं।

हर क्षेत्र में दबदबा

आस्था मूक-बधिर स्कूल के बच्चों का हर क्षेत्र में दबदबा कायम है। सांस्कृतिक आर्याजनों की प्रस्तुति को लेकर इस स्कूल के बच्चों को राष्ट्रीय अवार्ड मिला है। वहीं पैराजूडो खेल के क्षेत्र में भी यहां के मूकबधिर बच्चों ने कई पुरस्कार अर्जित किए हैं। यहां मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ के बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।

तत्कालीन विधायक उदय मुदलियार की पहल पर 1995-96 में इस संस्था की रखी गई थी नींव

28 साल पहले शहर के गायत्री परिवार से जुड़े मित्रों की एक सोच ने देश के करीब 1400 मूक-बधिर बच्चों के जीवन में ऐसा परिवर्तन ला दिया कि अब वे न सिर्फ शिक्षित हो गए, बल्कि रोजगार की दिशा में भी उन्होंने अपना अच्छा खासा मुकाम हासिल कर लिया है। शहर के आस्था मूकबधिर स्कूल में पढ़े बच्चे देश में सरकारी नौकरी भी कर रहे हैं। 1995 में इस संस्था की नींव रखने वाले हेमंत तिवारी कहते हैं कि इन मूकबधिर दिव्यांग बच्चों में ईश्वर सच में वास करते हैं। यही कारण है कि उन्हें संस्था के संचालन या उसकी प्रगति में कभी कोई दिक्कत यह परेशानी नहीं आई। संस्कारधानी शहर के सभी लोगों ने इस संस्था को आगे बढ़ाने में हमेशा हर संभव मदद भी की।

दानदाताओं से मिली जमीन

संस्था की स्थापना के कुछ सालों बाद किशनलाल अरोरा ने बसंतपुर के समीप अपनी जमीन संस्था को दान दी। यहां संस्था ने लोगों और सरकारी मदद लेकर कमरों का निर्माण कराया। इस बीच राजनांदगांव सिंधी समाज के एक प्रतिष्ठित समाजसेवी ने स्कूल से लगी जमीन दान कर दी। जिससे इस स्कूल का कैंपस अब काफी बढ़ गया है और बच्चो की गतिविधियों के संचालन में आने वाली दिक्कतें भी दूर हो गई है।

शहरवासियों का जुड़ाव

स्कूल की नींव रखने वाले एवं आस्था के संरक्षक जुगल किशोर लड्डा ने कहा कि वे अकेले इस संस्था को नहीं चला रहे हैं, बल्कि पूरे शहर और जिले के लोगों का जुड़ाव यहां अध्ययनरत बच्चों के साथ है। यही कारण है कि संस्था को दूध, सब्जियां, फल और अनाज आदि दान से मिल जाता है। समाजसेवा विभाग से जो फंड मिलता है, उससे बच्चों को भोजन और स्कूल स्टाफ के वेतन तथा संधारण में खर्च किया जाता है।

5379487