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पूरे देश के लगभग 70 हजार किलोमीटर रेल रूट के नियमित निरीक्षण के लिए नई अल्ट्रासोनिक मशीन लगाई जाएगी। 

रायपुर। बीते दो सालों से पटरियों की खराबी के कारण रेल हादसे बढ़ गए हैं। ड्राइवर की गलतियों से होने वाले रेल हादसों पर नियंत्रण की कोशिशों के बीच रेलवे का ध्यान अब खराब पटरियों के स्वास्थ्य पर भी होगा। पूरे देश के लगभग 70 हजार किलोमीटर रेल रूट के नियमित निरीक्षण के लिए नई अल्ट्रासोनिक मशीन लगाई जाएगी, जो ट्रैक का अल्ट्रासाउंड करके उसकी स्थिति बताएगी। इससे पटरियों में खराबी के कारण होने वाले हादसों पर काफी हद तक नियंत्रण लग सकेगा।

रेल बोर्ड का मनना है कि,  नई अल्ट्रासाउंड मशीन से निरीक्षण के बाद क्रैक पटरियों के कारण होने वाली ट्रेन दुर्घटनाओं में के कारण होने वाली ट्रेन दुर्घटनाओं में करीब 85 प्रतिशत तक कमी आ जाएगी। पटरियों के निरीक्षण के लिए नई अल्ट्रासाउंड मशीन लगाई जा रही है। अभी साबरमती जोन में शुरुआत हो चुकी
है, जिसके बाद में सभी रेलवे जोनों में इसे लगाना है। बिलासपुर जोन में भी जल्द कार्य शुरू होगा।

एक मशीन की लागत छह लाख तक

फेज अरेंय के जरिए पटरियों की जांच, वेल्डिंग की गुणवत्ता, जंग की स्थिति व अन्य दोषों का आसानी से पता लगाया जा सकता है। इसमें एक विशेष प्रकार का अल्ट्रासोनिक ट्रांसड्यूसर अरेंय होता है, जो ध्वनि तरंगें छोड़ती है। इन तरंगों का अध्ययन विभिन्न कोणों और गहराइयों के पैमाने पर किया जाता है। पटरियों पर मशीन के ले जाते ही ध्वनि तरंगों की तुरंत प्रतिक्रिया होने लगती है और ट्रैक के आंतरिक ढांचे की वास्तविक तस्वीरें उभरने लगती हैं। नई मशीन पूरी तरह स्वदेशी तकनीक पर आधारित है। इसे स्टील अथारिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड, सेल ने विकसित किया है। एक मशीन की लागत लगभग छह लाख है। इसके जरिए पटरियों की अत्यंत छोटी खामियों का पता चलने से रेलवे की सुरक्षा में वृद्धि होगी, क्योंकि पुरानी मशीन की तुलना में नई मशीन तेज निरीक्षण करती है। एक साथ कई कोणों की जांच होने से समय की बचत होती है।

क्रेक पटरियों की मिलेगी सही जानकारी

रेलवे के अनुसार,  ट्रेन हादसों के तीन बड़े कारण होते हैं। पायलट की गलतियों के अलावा ट्रैक में खराबी और कभी-कभी पटरियों पर किसी जानवर या कठोर वस्तु के आ जाने से ट्रेन दुर्घटना की आशंका बढ़ जाती है। रेल पटरियों की छोटी-सी खामियों का पता अल्ट्रासोनिक मशीन से लगाकर उसे दूर भी किया जा सकेगा। पटरियों की जांच पहले भी ऐसी ही मशीन से की जाती थी, किंतु तब काफी समय लगता था और छोटे-छोटे क्रेक का पता नहीं चलता था। पुरानी मशीन से की जाती थी, किंतु तब काफी समय लगता था और छोटे-छोटे क्रेक का पता नहीं चलता था। पुरानी मशीन से पटरियों के अंदर बड़े वैक्यूम का पता आसानी से लगा लिया जाता है, लेकिन अत्यंत छोटा वैक्यूम बनने या मामूली खराबी आने पर कई बार पता नहीं चल पाता है। यहां तक कि सिंगल मशीन लेकर पटरियों की जांच करते वक्त अगर थोड़ा सा भी हाथ हिल गया, तो मर्ज का पता नहीं चल पाता था। रेल हादसों की यह भी एक बड़ी वजह होती है । 

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