कुलदीप साहू- नगरी। छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के कुर्सीघाट बोराई में हर साल भादो माह की नियत तिथि पर आदिवासी देवी देवताओं के न्यायधीश भंगा राव माई की जात्रा होती है। जिसमें बीस कोस बस्तर और सात पाली ओडिशा सहित सोलह परगना सिहावा से देवी- देवता आते हैं। सदियों से चली आ रही इस अनोखी प्रथा और न्याय के दरबार का साक्षी बनने शनिवार को हजारों की तादाद में लोग पहुंचे।
इस जात्रा से इलाके के सभी वर्ग और समुदाय के लोगों की आस्था जुड़ी हुई है। कुवरपाट और डाकदार की अगुवाई मे यह जात्रा पूरे विधि- विधान के साथ संपन्न है। बताया जा रहा है कि, कुर्सीघाट में सदियों पुराना भंगाराव माई का दरबार है। इसे देवी देवताओं के न्यायालय के रूप में जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि, भंगाराव माई की मान्यता के बिना क्षेत्र में कोई भी देवी देवता कार्य नहीं कर किया जा सकता है। वहीं इस विशेष न्यायालय स्थल पर महिलाओं का आना प्रतिबंधित है। मान्यता है कि, आस्था व विश्वास के चलते जिन देवी देवताओं की लोग उपासना करते है। लेकिन वहीं देवी देवता अपने कर्तव्य का निर्वहन न करे तो उन्हे शिकायत के आधार पर भंगाराव माई सजा देते हैं।
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शैतान देवी- देवताओं की होती है शिनाख्ती
यहां सुनवाई के दौरान देवी देवता एक कठघरे में खड़े होते हैं। यहां भंगाराव माई न्यायाधीश के रूप में विराजमान होते है। माना जाता है कि, सुनवाई के बाद यहां अपराधी को दंड और वादी को इंसाफ मिलता है। जहां गांव में होने वाली किसी प्रकार की कष्ट, परेशानी को दूर न कर पाने की स्थिति में गांव में स्थापित देवी-देवताओं का ही दोष माना जाता है। विदाई स्वरूप उक्त देवी देवताओं के नाम से चिन्हित बकरी या मुर्गी और लाट, बैरंग, डोली को नारियल फुल चावल के साथ लेकर ग्रामीण साल में एक बार लगने वाले भंगाराव जात्रा में पहुंचते है। यहां भंगाराव माई की उपस्थिति में कई गांवों से आए शैतान, देवी-देवताओं की एक- एक कर शिनाख्ती की जाती है। इसके बाद आंगा, डोली, लाड, बैरंग के साथ लाए गए मुर्गी, बकरी, डांग को खाईनुमा गहरे गड्ढे किनारे फेंक दिया जाता है। ग्रामीण इसे कारागार कहते हैं।
आरोप सिद्ध होने पर सुनाया जाता है फैसला
पूजा अर्चना के बाद देवी देवताओं पर लगने वाले आरोपों की गंभीरता से सुनवाई होती है। आरोपी पक्ष की ओर से दलील पेश करने सिरहा, पुजारी, गायता, माझी, पटेल सहित ग्राम के प्रमुख उपस्थित होते है। दोनों पक्षों की गंभीरता से सुनवाई के पश्चात आरोप सिद्ध होने पर फैसला सुनाया जाता है। मान्यता है कि दोषी पाए जाने पर इसी तरह से देवी- देवताओं को सजा दी जाती है। कुंदन साक्षी ने बताया कि, इस साल यह जात्रा इसलिए और महत्वपूर्ण हो गई है। क्योंकि, कई पीढ़ी बाद इस बार देवता ने अपना चोला बदला है।