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रायपुर दक्षिण का मतलब भाजपा की जीत की गारंटी रहा है, क्योंकि रायपुर दक्षिण से अब तक कांग्रेस का कोई भी प्रत्याशी जीत क्या जीत के आसपास भी नहीं पहुंचा है। 

रायपुर। रायपुर दक्षिण में 13 नवंबर को उपचुनाव होने जा रहा है। अब तक का इतिहास देखा जाए, तो रायपुर दक्षिण का मतलब भाजपा की जीत की गारंटी रहा है, क्योंकि रायपुर दक्षिण से अब तक कांग्रेस का कोई भी प्रत्याशी जीत क्या जीत के आसपास भी नहीं पहुंचा है। रायपुर दक्षिण के बनने से पहले रायपुर शहर में भी भाजपा का दबदबा रहा। बृजमोहन अग्रवाल के तिलिस्म को कोई भी नहीं तोड़ पाया। यह पहला मौका होगा, जब रायपुर दक्षिण में बृजमोहन अग्रवाल के स्थान पर भाजपा का कोई दूसरा प्रत्याशी मैदान पर होगा। अब तक कांग्रेस को जीत न मिलने के कारणों का खुलासा यहां पर हारने वाले कांग्रेस के प्रत्याशी प्रमोद दुबे, कन्हैया अग्रवाल करते हैं।

रायपुर दक्षिण के अपराजेय योद्धा बृजमोहन अग्रवाल के लोकसभा सांसद बनने के बाद यहां की सीट खाली हुई है। अब इस सीट पर 13 नवंबर को चुनाव होना है। ऐसे में यह माना जा रहा है कि इस सीट से भाजपा के जिस भी प्रत्याशी को टिकट मिलेगा, उसके लिए जीत मुश्किल नहीं होगी। भाजपा का कहें या फिर बृजमोहन अग्रवाल का, यहां पर बड़ा वोट बैंक है। इसमें कभी भी कांग्रेस का कोई भी प्रत्याशी सेंध नहीं मार सका है।

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लगातार जीते बृजमोहन

छत्तीसगढ़ के अलग होने के बाद जब 2008 में परिसीमन किया गया, तो रायपुर शहर और रायपुर ग्रामीण की दो सीटों को चार सीटों में बांटा गया, तो रायपुर दक्षिण विधानसभा सामने आई। इस सीट से रायपुर शहर का चुनाव लड़ने वाले बृजमोहन अग्रवाल को टिकट दिया गया। 2008 और 2013 में भी वे जीते और मंत्री बने। इसके बाद 2018 के चुनाव में भाजपा के हाथ से सत्ता चली गई, इसी के साथ रायपुर शहर की चार में से तीन सीटें भी चली गईं, लेकिन रायपुर दक्षिण में बृजमोहन का दबदबा कायम रहा और वे जीत गए। इसके बाद 2023 के चुनाव में तो बृजमोहन अग्रवाल रिकार्ड 68 हजार मतों से जीते। इसी के साथ भाजपा की सत्ता में वापसी होने पर उनको मंत्री बनाया गया, लेकिन भाजपा के राष्ट्रीय संगठन ने उनको 2024 में लोकसभा का चुनाव लड़वाया और वे यहां भी जीत गए। रायपुर दक्षिण से पहले बृजमोहन अग्रवाल 1990 से लगातार रायपुर शहर की सीट से जीतते रहे हैं। 35 साल तक बृजमोहन अग्रवाल का तिलिस्म कोई नहीं तोड़ सका है।

अपने ही करते हैं कमजोर : कन्हैया

कांग्रेस प्रत्याशी रहे कन्हैया अग्रवाल का कहना है कि यहां पर कांग्रेस के अपने ही कार्यकर्ता चुनाव के अंतिम दिनों में घर बैठ जाते हैं, इसलिए कांग्रेस को यहां से जीत नहीं मिल पाती। चुनाव के समय पार्टी के कार्यकर्ता पूरी तरह से सक्रिय हो कर काम करते हैं। पार्टी के जो कमिटेड वोट हैं वह पूरे मिलते हैं, लेकिन ऐसे वोट जिन्हें कार्यकर्ताओं की मेहनत से लिया जा सकता है, वो नहीं मिलते। कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की गड़बड़ी के चलते पार्टी यहां से हार जाती है। उनका कहना है कि चुनाव के अंतिम चार दिनों में कार्यकर्ता क्षेत्र में जाते ही नहीं।

बृजमोहन की सक्रियता जीत का कारण : प्रमोद

रायपुर दक्षिण सीट में कांग्रेस को लगातार हार का सामना क्यों करना पड़ता है? ऐसे कौन से कारण हैं, जिसके कारण कांग्रेस को यहां सफलता नहीं मिल पाती, इसे लेकर कांग्रेस के कार्यकर्ताओं से चर्चा की गई। उनके सामने चुनाव में रहे कुछ कांग्रेस प्रत्याशियों से यह जानने का प्रयास किया गया। कांग्रेस में इस सीट से प्रत्याशी चयन और अन्य मामलों पर उनका कहना है कि कार्यकर्ताओं की भावनाओं को ध्यान न रखने के कारण यहां पर पार्टी को हार का सामना करना पड़ता है। दक्षिण विधानसभा क्षेत्र में पढ़ लिखे मध्यम और निम्न वर्ग के लोग निवास करते हैं। वे यहां पर न्यूट्रल रहकर हार जीत के नतीजों को परिवर्तित करते हैं। बृजमोहन अग्रवाल छात्र नेता के रूप में शहर में काम किया उनके उस समय से जो संबंध हैं, उसे वे विधानसभा चुनाव के दौरान भुनाने में सफल रहते हैं, जिनके कारण वे लगातार सफल रहें। पूर्व महापौर सफल रहते हैं, जिनके कारण वे लगातार सफल रहें। पूर्व महापौर और निगम सभापति प्रमोद दुबे से इस संबंध में जानना चाहा कि कांग्रेस को आखिर दक्षिण विधानसभा क्षेत्र में सफलता क्यों नहीं मिल पाती। उन्होंने कहा, दक्षिण विधानसभा क्षेत्र में अधिकांश मतदाता पढ़-लिखे और मध्यम वर्ग से संबंधित हैं। यहां पर टिकट वितरण के समय कांग्रेस कार्यकर्ताओं की भावनाओं का ध्यान रखकर टिकट वितरण नहीं किया जाता, ऐसे में कार्यकर्ता हतोत्साहित हो जाते हैं। चुनाव में कांग्रेस और भाजपा दोनों के 40 हजार से अधिक वोट पड़ते ही हैं। शेष डेढ़ लाख मतदातओं के न्यूट्रल वोट प्रत्याशी सक्रियता को देखकर लोग देते हैं। यहां पर बृजमोहन अग्रवाल की बात लें तो उनकी सक्रियता के चलते उन्होंने अधिक लोगों तक पहुंच बनाई। उनका मानना है कि छात्र राजनीति से उठकर आए बृजमोहन अग्रवाल ने उन संबंधों को बखूबी भुनाया। यहां पर कांग्रेस पार्टी को चाहिए कि सक्रिय कार्यकर्ता पर दांव लगाने से यहां पर की बाजी पलट सकती है।

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