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राजिम मेले में डेढ़ माह से भी कम समय बचा हुआ है। 12 फरवरी से 26 फरवरी के बीच राजिम मेला का आयोजन किया जाना है। जिसके लिए प्रशासन स्तर पर नदी की सफाई के लिए अब तक कोई व्यवस्था नहीं की गई है। 

श्यामकिशोर शर्मा- राजिम। छत्तीसगढ़ के राजिम  मेला को अभी डेढ़ माह से भी कम समय बचा हुआ है। 12 फरवरी से 26 फरवरी के बीच राजिम मेला का आयोजन किया जाना है। जिसके लिए प्रशासन स्तर पर नदी की सफाई के लिए अब तक कोई व्यवस्था नहीं की गई है। सबसे ज्यादा प्रदूषण महानदी में है जो छत्तीसगढ़ की सबसे लंबी जीवनदायिनी नदी है। महानदी को देखने पर ऐसा लगता है कि नदी के ऊपर एक फीट से ऊपर काई की परत चढ़ी हुई है। घास, कटीली झाड़ियां एवं ऊबड़-खाबड़ मैदान के रूप में दिख रहा है, कीड़े बजबजा रहे हैं। 

Mahanadi river filled with filth
गंदगियों से पटी महानदी 

मालूम हो कि, पिछले वर्ष जब मेला समाप्त हुआ तो उसके बाद से जिले के जिम्मेदार अधिकारियो ने नदी की ओर मुड़कर भी नहीं देखा। इतना ही नही पूरा साल बीत गया साफ-सफाई पर कोई ध्यान नही दिया गया। फलस्वरुप नदी में रेत के स्थान पर अब केवल कीचड़ युक्त पानी और कटीली झाड़ियां उगी हुई है। ऐसे में यदि मेले के दौरान साधु संतो एवं श्रद्धालुओं के स्नान के लिए डेम से पानी छोड़ा जाएगा तो कितनी भयानक स्थिति उत्पन्न हो जाएगी, यह शब्दो में कहना मुश्किल है। ऐसे में श्रद्धालुओं को बीमारी एवं खाज-खुजली से ग्रसित भी होना पड़ सकता है। यदि महानदी के एक-डेढ़ किलोमीटर की सफाई करने की योजना बनाई जाए तो कम से कम इतने बड़े क्षेत्रफल में 3 से लेकर 4 माह का समय लग सकता है। मेले की तैयारी चालू नहीं होने से ऐसा लगता है कि महानदी की सफाई के बिना ही मेला आयोजित कर दी जाएगी। 

महानदी में गंदगी, अधिकारी नहीं दे रहे ध्यान 

महानदी को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि नदी के बीच धार और रेत के स्थान पर कोई समतल भूमि है। जिस पर घास एवं कटीली झाड़ियां उगी हुई है। इस दिशा में हरिभूमि ने पूरे साल भर में कम से कम छह से आठ बार नदी के इस बद से बदतर हालात की न केवल खबर प्रकाशित किया बल्कि शासन-प्रशासन का ध्यान आकर्षित किया, पर क्या मजाल है कि जिले के किसी भी अधिकारियो के कानो में जू रेंगी हो। इस दिशा में अधिकारियो ने जरा भी ध्यान नही दिया। अब मेला जब सिर पर है तो बैठकें होने लगी है। 25 दिसंबर को राजिम रेस्ट हाऊस में अफसरो की एक बैठक हुई उसी दिन भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के जन्मदिवस को देश भर में मनाया गया। श्री वाजपेई की सोच थी कि, नदियों को प्रदूषण मुक्त किया जाए एवं नदियों को आपस में जोड़ने की कार्य योजना बनाई जाए उनका सपना और सोच यहां धरातल में कहीं नजर नही आई। राजिम में तीन नदियां आपस में जुड़ी जरूर है किंतु नदी के प्रदूषण हटाने के लिए कोई कार्ययोजना नहीं है।

श्रद्धालुओं को मेले में दर्शन से होना पड़ता है वंचित

बड़ी बात यह है कि, यहां के नियमित स्थानीय श्रद्धालुओं को राजिम मेला के दौरान 15 दिन भगवान श्री राजीव लोचन एवं कुलेश्वर महादेव के दर्शन से वंचित होना पड़ता है। साल भर तो भगवान के दर्शन प्राप्त हो जाते हैं किंतु असली मेला के दौरान वे भगवान के दर्शन से वंचित हो जाते हैं। क्योंकि लाइन लगाना पड़ता है। नियमित रूप से मंदिर जाने वाले श्रद्धालुओ में मधुसूदन शर्मा,रमेश तिवारी,सुनील तिवारी,बलराम देवांगन,इंजीनियर ऋषि सेन,सतीश गंभीर जैसे कम से कम सौ श्रद्धालु शामिल होंगे। इनका कहना है कि उज्जैन महाकाल की तर्ज पर राजिम मेले के अवसर पर आधार कार्ड से मंदिर में सीधे प्रवेश की व्यवस्था होनी चाहिए। 

bad roads
ख़राब रास्ते 

अब तक नहीं की गई है तैयारी .

राजिम मेला की पहचान छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि पूरे देश और दुनिया में है। मेले के दौरान करीब पांच हजार से अधिक संत महात्मा,नागा साधुओं की मंडली यहां पहुंचती है। माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक 25 से 30 लाख लोग पहुंचते है। नदी के बीच मेला भरता है। मुक्ताकाशी एक ही मंच है, जहां साधु-संतो के प्रवचन होते है,नेताओं की भाषणबाजी होती है और उसी मंच में सांस्कृतिक कार्यक्रम भी। शाम को जब भीड़ जुटती है तो उसी दौर में प्रवचन शुरू किया जाता है। फिर गंगा आरती होती है, नेताओं के भाषण होते है, तब कहीं सांस्कृतिक कार्यक्रम की शुरूआत की जाती है। तब तक चार घंटा से सांस्कृतिक कार्यक्रम देखने के लिए पहुंचे दर्शक ऊब चुके होते है। जबकि होना ये चाहिए कि साधु-संतो के लिए अलग से मंच हो और सांस्कृतिक कार्यक्रम का अलग मंच। जिन दर्शको,श्रद्धालुओं को जो अच्छा लगे वहां वे पहुंचकर देखेंगे-सुनेंगे। 

मेले को लेकर अभी तक असमंजस की स्थिति 

खास बात यह है कि 6 वर्षों से मेला के लिए 54 एकड़ भूमि आरक्षित है। इन वर्षो में जिले के कई कलेक्टर बदल गए, जिले के प्रभारी मंत्री चेंज हो गए। यहां तक कि, सरकार भी बदल गई। प्रशासन के आला अधिकारी आते हैं, निरीक्षण का सिर्फ नौटंकी चलता हैं। उसी-उसी को क्या निरीक्षण करेंगे। पिछले 6 साल से निरीक्षण ही चल रहा है राजिम की जनता जानना चाहती है कि आखिर निरीक्षण में क्या होता है इसे भी तो बताया जाए। पांच वर्ष बाद भी सुरक्षित किए गए मेला स्थल में न तो चौड़ा रोड बना है न ही यातायात की सुगम व्यवस्थाएं है। कार्ययोजना तो यह थी कि साधु संतों को कुटिया में न रुकवाकर आरक्षित मेला स्थल पर भव्य भवन का निर्माण होगा। किंतु अभी वहां पीने के पानी के लिए एक हैंड पंप भी नहीं लगाया जा सका है। जब-जब मेला आता है आला अधिकारी आते है, निरीक्षण करते है फिर चले जाते है। पिछले सालो की तरह शासन-प्रशासन में शंका एवं असमंजस की स्थिति बनी हुई है कि मेला का आयोजन कहां होगा?  

आरक्षित स्थल पर दो ही नदी का संगम 

राजिम मेला के लिए 54 एकड़ भूमि राजिम एवं चौबेबांधा के बीच आरक्षित की गईं है। जो मुख्य मार्ग से 200 मीटर सकरी एवं घुमावदार मार्ग से होकर जाती है। यदि स्थल पर जाकर देखे तो स्थाई निर्माण के रूप में बिजली का सब स्टेशन एकमात्र है। बाकी पूरे स्थल में न तो जमीन का समतलीकरण हुआ है एवं न ही कुछ स्थाई निर्माण। नदी किनारे एक पचरी जरूर है किंतु वह केवल 50 से 100 लोगो के खड़े रहने लायक है। आरक्षित स्थल गढ्ढे एवं ऊबड़-खाबड़ है। पूरे स्थल पर अव्यवस्था एवं गंदगी पसरी हुई है। राजिम से चौबेबांधा पुल तक पूरी रोड उखड़ी हुई है पूरे मार्ग में बड़े-बड़े गढ्ढे है अगर एक चार पहिया भी वहां से गुजर जाए तो धूल का गुब्बार इतना उड़ता है कि पीछे वाला व्यक्ति को कुछ भी दिखाई नहीं देता। 

दो दिन पहले अधिकारियों ने किया निरीक्षण 

मार्ग सकरी एवं खस्ताहाल होने से एक सवा माह में इन सभी अव्यवस्थाओं को ठीक कर पाना प्रशासन के लिए चुनौती से कम नही रहेगा? यदि स्नान के लिए कुंड नए मेला स्थल में बनाया जाता है तो यहां पर केवल दो नदियां ही मिलती है, फिर त्रिवेणी संगम स्नान कैसे कहलाएगा? क्योंकि महानदी एवं अन्य दो नदियां पैरी और सोंढुर नीचे की ओर आकर कुलेश्वर मंदिर के पास मिलती है। शासन-प्रशासन के आला अधिकारियों ने 2 दिन पूर्व स्थल निरीक्षण तो किया किंतु कोई ठोस निर्णय पर नही आ पाए। खास बात यह है कि जिले के आला अधिकारी राजिम से 45 किमी दूर जिला मुख्यालय गरियाबंद में रहते है। यह स्वाभाविक भी है। ये अधिकारी आखिर कितनी बार उसी-उसी चीजो को देखने के लिए राजिम आएंगे? मेला जैसे ही खत्म होता है तो पूरे एक साल में कोई भी अधिकारी राजिम की ओर मुड़कर देखना पसंद नही करते, यह राजिम के लिए बहुत बड़ा दुर्भाग्य की बात है। पैरी एवं सोंढुर नदी पूरी तरह सुखी हुई है,दोनों पुल में रेलिंग टूटी हुई है,रोड में गढ्ढे एवं ऊबड़-खाबड़ है। नया मेला स्थल राजिम शहर से दूर सुनसान जगह पर है, जहां सुरक्षा भी अहम मुद्दा होगा।

नए मेला स्थल का किया गया निरीक्षण- एसडीएम 

एसडीएम महाराणा ने कहा कि, 25 दिसंबर को रेस्ट हाऊस राजिम में विधायक रोहित साहू की मौजूदगी में जिले के सभी विभागों के अफसरों की बैठक आयोजित की गई थी। नए मेला स्थल का निरीक्षण किया गया। फाइनल डीसिजन अभी नहीं हुआ है, फैसला होना अभी बाकी है।

शासन जहां चाहेगी, वहां आयोजित होगा मेला- सीएमओ 

सीएमओ चंदन मानकर ने कहा कि, प्रथम बैठक में छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल के प्रबंध निदेशक विवेक आचार्य जी आए थे। बैठक हुई है, शासन जिस स्थान पर चाहेगी वहां मेला लगेगा। शासन के निर्देश पर ही सबकुछ होगा।

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