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विधानसभा इलाके में चार बड़े प्रतिष्ठित निजी स्कूल... ना सिर्फ रायपुर बल्कि प्रदेश के शीर्ष निजी विद्यालयों में इनकी गिनती होती है।

रुचि वर्मा  - रायपुर। विधानसभा इलाके में चार बड़े प्रतिष्ठित निजी स्कूल... ना सिर्फ रायपुर बल्कि प्रदेश के शीर्ष निजी विद्यालयों में इनकी गिनती होती है, लेकिन आसपास के चार गांवों का दुर्भाग्य है कि इन स्कूलों में उनके बच्चे आरटीई के तहत यानी सरकारी खर्चे पर नहीं पढ़ सकते। आंकड़े तो यही बताते हैं। इन स्कूलों में पहली से बारहवीं कक्षा तक आरटीई कोटे से लगभग 500 विद्यार्थी अध्ययनरत हैं। इन स्कूलों के तीन किलोमीटर के दायरे में आने वाले गांवों में मुख्य रूप से नरदहा, सेमरिया, धनसुली और सकरी है, जहां आबादी सर्वाधिक है। इन 500 छात्रों में से लगभग 300 ही ऐसे हैं, जो इन गांवों में रहते हैं। कहा जा रहा है कि बाकी 200 में से कई फर्जी किरायानामा के आधार पर चयनित हो सकते हैं। 

ग्रामीणों का कहना है, अपने बच्चों के लिए वे हर साल कोशिश करते हैं, पर सफलता नहीं मिल रही। शायद चयन में ही गड़बड़ी हो सकती है। यहां यह बताना लाजिमी है कि आरटीई कोटे के लिए बच्चों का चयन नोडल एजेंसी करती है। हरिभूमि ने इन चार गांवों के ग्रामीणों, पूर्व सरपंच सहित वर्तमान पदाधिकारियों से भी बात की और इन क्षेत्रों में आरटीई का हाल जाना। लंबे समय से जब आरटीई कोटे से इन स्कूलों में गांव के बच्चों का चयन नहीं हुआ तो ग्रामीणों ने पतासाजी की। तब उन्हें पता चला कि लोग इन गांवों के नाम से फर्जी किरायानामा तैयार करवा रहे हैं। इन फर्जी पते-ठिकाने के आधार पर वे इन स्कूलों में अपने बच्चों को प्रवेश दिला चुके हैं। इन गांवों के कुछ ग्रामीणों ने यह भी बताया कि गांव के ही कुछ लोग दोस्ती-रिश्तेदारी में अपना आधार कार्ड फर्जी किरायानामा के लिए दे देते हैं। संबंध खराब ना हो, इसलिए वे उनसे सीधे कुछ नहीं कहते। नोडल प्राचार्य से फिजिकल वेरिफिकेशन की मांग की जा चुकी है, लेकिन इस ओर कोई ध्यान ही नहीं देता।

आवेदन करते-करते उम्र ही निकल गई 

आरटीई के अंतर्गत प्रवेश प्राप्त करने छात्रों की आयु सीमा निर्धारित है। 3 से 6 वर्ष तक के बच्चे के ही आवेदन नर्सरी कक्षाओं अथवा पहली कक्षा में प्रवेश के लिए स्वीकार किए जाते हैं। गांव पहुंचने पर कई ग्रामीण ऐसे मिले, जो बीते 3 से 4 साल तक आवेदन करते रहे, लेकिन उनके बच्चों का नाम आरटीई सूची में आया ही नहीं। जब आरटीई आवेदन की उम्र ही निकल गई तो कुछ ने सरकारी स्कूलों में अपने बच्चों का दाखिला करवा दिया तो कुछ ने पैसे जोड़कर अपेक्षाकृत छोटे निजी विद्यालयों में प्रवेश करवाया। हरिभूमि से बातचीत में उन्होंने अपनी पीड़ा साझा की।

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निकाल रहे रिश्तेदारी

ग्रामीणों ने बताया कि,  कई ऐसे हैं जो गांव में नहीं रहते हैं बल्कि उनके रिश्तेदार यहां रहते हैं। ऐसे में वे रिश्तेदार के पते के आधार पर बच्चों को दाखिला करवा रहे हैं। ऐसे केस थोक में है, जबकि माता-पिता के पते के आधार पर ही बच्चों को दाखिला दिया जाता है। वे कहते हैं कि, हमारे गांव की जमीन पर ही स्कूल बना है और हमारे बच्चों का ही यहां प्रवेश नहीं हो पा रहा है। नरदहा के पूर्व सरपंच अनिल टंडन ने बताया, हम कई बार भौतिक सत्यापन की मांग कर चुके हैं, लेकिन कोई ध्यान ही नहीं देता है। यही स्थिति रही तो हमें धरना-प्रदर्शन का सहारा लेना पड़ेगा।

कभी नहीं होता चयन 

धनसुली के सरपंच पप्पु चेलक ने बताया कि , हमारे बच्चों का चयन कभी भी नहीं होता है। अभी तक सिर्फ 2-4 का ही संयोगवश हुआ है। किससे क्या कहें, समझ नहीं आता है। 

आए थे किरायानामा बनवाने 

सकरी सरपंच नारायपण प्रसाद ने बताया कि, फर्जी किरायानामा बनते रहा है। इस बार भी दो लोग आए थे किरायानामा बनवाने के लिए। मैंने मना कर दिया। हमारे बच्चों का हक मार रहे हैं। 3 किमी दायरे का भी विवाद चलता रहता है। 

स्कूलों की गलती नहीं 

निजी स्कूल संघ के अध्यक्ष राजीव गुप्ता ने बताया कि, दस्तावेज सत्यापन की जिम्मेदारी नोडल अधिकारी की होती है। इसमें स्कूलों की गलती नहीं है। जो नाम सत्यापन और चयन उपरांत प्राप्त होते हैं, उन्हें ही प्रवेश दिया जाता है। 


 

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