प्रेमलाल पाल- धरसीवा/कूंरा। छत्तीसगढ़ की राजधानी से लगते धरसीवां विकास खंड के सिलतरा में शासकीय प्राथमिक शाला की जमीन पर ही एक निजी स्कूल की बहुमंजिला इमारत बन गई। इतना ही नहीं शासकीय प्राथमिक शाला की जमीन पर शासकीय प्राथमिक शाला के ठीक सामने ही निजी प्राथमिक शाला को जिला शिक्षा कार्यालय ने मान्यता भी दे दी। इस मामले को कलेक्टर डॉ. गौरव सिंह ने गंभीरता से लेते हुए जांच के आदेश दिए। कलेक्टर के आदेश पर तहसीलदार जयेंद्र सिंह ने मौके पर जाकर जांच की तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं।
कलेक्टर डॉ. गौरव सिंह के निर्देश पर शनिवार 10 अगस्त को तहसीलदार धरसीवां जयेंद्र सिंह व सिलतरा के पटवारी शासकीय प्राथमिक शाला परिसर पहुंचे। उन्होंने शासकीय स्कूल परिसर में निर्मित बहुमंजिला निजी स्कूल को देखा और शासकीय स्कूल की प्रधान पाठक सहित अन्य टीचरों से एवं निजी स्कूल के प्राचार्य केआर साहू से बात की।
पटवारी ने कहा जमीन शासकीय स्कूल की
इस दौरान सिलतरा के पटवारी पंचराम गायकवाड़ ने बताया कि, पूर्व में शासकीय प्राथमिक शाला की ओर से सीमांकन की मांग पर सीमांकन किया गया था। जिसमे यह पूरी जमीन शासकीय स्कूल की है। शासकीय स्कूल की जमीन पर ही निजी स्कूल बना है।
निजी स्कूल के प्राचार्य ने स्वीकारा
निजी स्कूल के प्राचार्य केआर साहू ने इस बात को स्वीकारा की जिस जमीन पर उनका स्कूल बना है वह शासकीय स्कूल की जमीन है। साल 1995 से हाई स्कूल प्रारंभ हुआ, इसके बाद हायर सेकेंडरी शुरू हुआ और 2019 में उन्होंने जिला शिक्षा कार्यालय से प्राथमिक शाला की मान्यता प्राप्त कर नर्सरी से कक्षाएं शुरू की।
परेशानी का कारण बन गया निजी स्कूल
इधर शासकीय स्कूल के प्रधान पाठक व टीचरों ने बताया कि, शासकीय स्कूल की जमीन पर उसी परिसर में निजी स्कूल होने से अक्सर समस्याएं आती हैं। टीचरों ने बताया कि, उसी परिसर में निजी स्कूल होने से हमेशा खतरा भी बना रहता है। क्योंकि मुख्य द्वार बन्द नहीं कर पाते। सामने ही तालाब है, लंच के समय निजी स्कूल के कारण गेट बन्द न होने से बच्चे बाहर भी निकलते रहते हैं और सामने ही तालाब है। यदि निजी स्कूल इस परिसर में न होता तो मुख्य द्वार का गेट बन्द रहता, वहीं बच्चों के लिए मैदान भी बेहतर रहता।
सरकारी हाईस्कूल गांव के बाहर बनी
अब जाकर शासकीय स्कूल की करीब आधी जमीन पर निजी स्कूल का कब्जा हो गया। जब शासकीय हाई व हायर सेकेंड्री स्कूल की मंजूरी हुई तो शासकीय स्कूल परिसर में निजी स्कूल होने से शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय गांव के अंतिम छोर पर हाइवे की सर्विस रोड किनारे बनाना पड़ा। औद्योगिक क्षेत्र होने के चलते शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के सामने से निरंतर भारी वाहनों की आवाजाही होती है, जिससे हमेशा दुर्घटना की आशंका भी बनी रहती है।
जांच प्रतिवेदन कलेक्टर को भेजेंगे
जांच अधिकारी तहसीलदार जयेंद्र सिंह ने कहा कि, यह तो स्पष्ट है कि जिस जमीन पर निजी स्कूल संचालित हो रहा है वह शासकीय स्कूल की जमीन है। वह इस मामले की जांच रिपोर्ट कलेक्टर महोदय को भेजेंगे।
सवालों के घेरे में जिला शिक्षा कार्यालय
शासकीय प्राथमिक शाला के ठीक सामने शासकीय प्राथमिक शाला की ही जमीन पर निजी प्राथमिक शाला को जिला शिक्षा कार्यालय ने साल 2019 में मान्यता दे डाली। जिसका विपरीत प्रभाव शासकीय प्राथमिक शाला की छात्र संख्या पर पड़ने लगा। आखिर कैसे और किस नियम के तहत शासकीय प्राथमिक शाला की जमीन पर उसी के ठीक सामने एक निजी प्राथमिक शाला को मान्यता दी गई? यह ज्वलंत सवाल उठने लगा है। आमतौर पर देखा जाए तो धरसीवा क्षेत्र में ऐंसे कई निजी स्कूल संचालित हैं जिनके पास खुद का खेल मैदान तक नहीं, तो किसी के पास खुद की बिल्डिंग तक नहीं लेकिन उन्हें मान्यता दे दी गई। लेकिन यहां तो मामला उससे भी आगे है, शासकीय प्राथमिक शाला की जमीन पर उसी के ठीक सामने निजी प्राथमिक शाला को जिला शिक्षा कार्यालय ने मान्यता दी है।
दशकों पहले कुछ इस तरह से ग्रामीणों ने लिया था निर्णय
जिनके नाम से सिलतरा शासकीय स्कूल परिसर में निजी स्कूल बना है वह नेकदिल इंसान थे। जब सिलतरा में सिर्फ शासकीय प्राथमिक शाला थी, तब गांव के बच्चे छटवीं- सातवी- आठवीं की पढ़ाई के लिए अन्यत्र जाते थे। इसलिए उन्होंने गांव में अपनी जमीन पर माध्यमिक शाला के लिए भवन बनाकर दान देने का मन बनाया। लेकिन उनकी जमीन ग्राम पंचायत के आस पास थी, लिहाजा उस समय यह तय हुआ कि जमीन को ग्राम पंचायत सार्वजनिक हित में उपयोग कर लेगी।
दानस्वरूप जगमोहन लाल जी ने बनवाए कमरे
भवन शासकीय प्राथमिक शाला की जमीन पर उसी परिसर में बना दिया जाए। इस तरह दान दाता जगमोहन लाल जी की ओर से शासकीय प्राथमिक शाला के सामने कमरों का निर्माण हुआ। लेकिन तब तक शासकीय स्तर पर ही शासकीय माध्यमिक शाला की मंजूरी के साथ सरकारी स्तर पर भवन का निर्माण भी हो गया। तब दानदाता के द्वारा निर्मित कमरों में हाईस्कूल खोलने की बात उठी। लेकिन उसमें शर्त यह रखी गई कि, शासकीय हाई स्कूल का नाम जगमोहनलाल जी के नाम पर हो, जिसे माध्यमिक शिक्षा मंडल से मंजूरी नहीं मिली। फिर दानदाता के भवन में जगमोहन लाल जी के नाम से निजी हाईस्कूल शुरू हो गया। धीरे- धीरे निजी स्कूल अपना दायरा बढ़ाता गया और 4 कमरों से बहुमंजिला इमारत तक पहुंच गया।